महाराष्ट्र -गाथा के निहितार्थ 



महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ता में आने से रोके जाने के बाद देश के गैर भाजपाई खेमें में जश्न मनाया जा रहा है ,मनाया भी जाना चाहिए किन्तु महाराष्ट्र गाथा के निहितार्थ भी समझना बहुत जरूरी है ।सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या भाजपा के मिशन 2024  को इन्हीं बेमेल गठबंधनों के जरिये विफल किया जा सकेगा या कोई दूसरा रास्ता भी खोजना पडेगा ?भाजपा महाराष्ट्र में सत्ता की थाली हाथ से निकल जाने से घायल सांप की तरह बिलबिलाई बैठी है ,आने वाले दिनों में उसकी प्रतिक्रिया कैसी होगी,कोई नहीं जानता ।
भाजपा ने देश  की राजनीति को एक नए तरीके से संचालित करने का श्रीगणेश किया था ।हिंदुत्व उसकी नीव में था ही किन्तु भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत का भी संकल्प लिया था ।हिंदुत्व की जमीन पर तीन दशक तक उसके साथ महाराष्ट्र की राजनीति में रही शिवसेना के भाजपा  से  अलग होने से उसे क्या भाजपा को पूरे देश में चुनौतियों का सामना करना पडेगा या फिर केवल महाराष्ट्र में ?ये तय किया जाना जरूरी है। महाराष्ट्र के बाहर भाजपा के जितने भी सहयोगी दल हैं उनमें  से एक भी शिवसेना जैसा कट्टर  हिंदूवादी दल नहीं है ,इसलिए महाराष्ट्र के बाहर भाजपा के  लिए  स्थितियां अभी भी काबू के बाहर नहीं हैं ।
यकीनन महाराष्ट्र में परिस्थितियों का आकलन करने में मोदी-शाह की जोड़ी से चूक हुई है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है  कि  वे आगे भी ऐसी ही गलतियां करेंगे ,मुझे लगता है की महाराष्ट्र में मिली नाकामयाबी के बाद भाजपा अब और अधिक फूंक-फूंक कर कदम रखेगी ।अब उसे अपने सहयोगी दलों की एनडीए के प्रति निष्ठाओं को नए सिरे से जांचना-परखना होगा ,शायद भाजपा नेतृत्व ऐसा करे भी क्योंकि एहतियात अब भाजपा की सबसे बड़ी जरूरत है ।
राजनीति में होने वाले प्रतिपल परिवर्तनों से रूबरू होने वाले जानते हैं  कि महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने वाले एनसीपी  प्रमुख अब इतने ताकतवर नहीं हैं  कि वे पूरे देश में भाजपा रोको अभियान  का नेतृत्व कर सकें ।महाराष्ट्र में उनकी अपनी जमीन है,महाराष्ट्र के बाहर एनसीपी शायद कुछ नहीं है ठीक उसी तरह जैसे की जेडीयू बिहार के बाहर या समाजवादी पार्टी यूपी के बाहर कुछ नहीं है ।भाजपा को अब केर-बेर का संग निभाकर ही रोका जा सकता है ।कांग्रेस की भूमिका इस अभियान में जरूर महत्वपूर्ण हो सकती है ,क्योंकि उसकी हैसियत आज भी राष्ट्रीय दल की है ,भले ही महाराष्ट्र में उसकी हैसियत एनसीपी के मुकाबले बहुत कम है ।
भाजपा का मिशन 2014  दक्षिणी राज्यों के भरोसे पूरा होने वाला नहीं है क्योंकि इन राज्यों की राजनीति भी महाराष्ट्र की ही तरह व्यक्तिपरक है ।दक्षिण के मुकाबले उत्तर भारत में भाजपा ज्यादा ताकत के साथ खड़ी रह सकती है ,संयोग से उत्तर भारत के तीन राज्य फिलहाल भाजपा की पकड़ से बाहर हैं ।बिहार,दिल्ली भी भाजपा के लिए अभी चुनौती  ही है ।पंजाब में उसके पास फिलहाल करने के लिए कुछ नहीं है ।भाजपा के पास अब देश जीतने के लिए बड़े मुद्दे भी नहीं बचे हैं,धारा 370  और राम मंदिर का मुद्दा पार्श्व में चला गया है ।केवल समान नागरिक संहिता और एनआरसी के बूते मिशन 2024  को हासिल नहीं किया जा सकता ,ऐसे में भाजपा क्या नया शिगूफा छोड़ दे कोई नहीं जानता,कम से कम मै तो नहीं जानता ।
महाराष्ट्र में गैर भाजपावाद का जो बीजारोपण हुआ है उसकी सफलता और असफलता ही इस नए और ठिठके अभियान का भविष्य तय करेगी ।एनसीपी और कांग्रेस में नेतृत्व का संकट है।दोनों के नेता उम्रदराज हैं और मिशन 2024  तक अपने आपको सक्रिय रख पाएंगे इसमने संदेह है ।बाकी के चार साल में किस पार्टी से कौन सा नेता उभर कर मोदी-शाह की जोड़ी का मुकाबला करेगा फिलहाल भविष्य के गर्भ में है इसलिए केवल अटकलबाजी के भरोसे कोई आकलन करना बेमानी होगा।अब देखना होगा की भाजपा के मुकाबले कौन सी पार्टी ,किस तैयारी के साथ खड़ी होती है ?
राजनीति में ये बेहयाई का सबसे खराब दौर है ।हाल की घटनाओं ने साबित कर दिया है की राजनीति मूल्यहीन  हो गयी है,कौन सा दल कब,किस रूप में आपके सामने खड़ा होगा कह पाना कठिन है ।कोई नहीं जानता था  कि भाजपा एनसीपी के साथ खड़ी हो जाएगी,कोई नहीं जनता था  कि शिवसेना एनसीपी ही नहीं बल्कि कांग्रेस के साथ खड़ी  हो जाएगी,किसे पता था  कि कांग्रेस शिवसेना का नेतृत्व स्वीकार कर लेगी ?कोई नहीं जानता था  कि एनसीपी भी शिवसेना के साथ गलबहियां कर लेगी ।यानि जो कभी अकल्पनीय था वो आज सब हकीकत बन चूका है ।कोई किसी के लिए अस्पृश्य नहीं रहा और ये सब हुआ है कांग्रेस के प्रभु के कारण ।कांग्रेस आज देश के किसी भी प्रदेश में इतनी ताकतवर तो नहीं है  कि भाजपा को उखाड़ फेंके ! 
भाजपा देश में यदि 70  से 41  फीसदी पर आई है तो अपने प्रयोगों की वजह से अन्यथा भाजपा तो अजेय बनती जा रही थी,उसके नेतृत्व को अवतारों में शुमार किया जाने लगा था ,और सचमुच देश के अन्य सभ दल भाजपा के संगठन और नेतृत्व के मामले में अप्रासगिक लगने लगे थे ,बल्कि आज भी हैं,लेकिन कल क्या होगा कोई नहीं जानता ।कल देश के किस हिस्से से भाजपा को चुनौती देने वाला नतृत्व उभरेगा और वो किस दल का होगा ,कहना कठिन है ।मुमकिन है की आने वाले दिनों में राजनीति का संविद शास्त्र कोई नया अध्याय लिख  डाले ।शिवसेना की तरह कोई और सेना अन्य तथाकथित बड़े राजनीतिक दलों की जरूरत बनकर सामने आ जाये !फिलहाल समय महाराष्ट्र के शरद पवार और शिवसेना के उद्धव ठाकरे को बधाई देने का है ।कल की बात कल करेंगे ।
@ राकेश अचल