बुलडोज़र राज नया आगाज

****
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार का एक साल पूरा होते-होते एक ही बड़ा काम ठीक नजर आता है और वो है सूबे में 'बुलडोजर राज' की वापसी ।किसी जमाने में प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने बुलडोजर चलाकर  बिल्डरों की नींद हराम कर दी थी ,अब यही काम मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी शुरू किया है ।गनीमत ये है कि इस बार सरकार के निशाने पर बिल्डर नहीं कथित माफिया हैं ।इंदौर में जीतू सोनी के बाद ग्वालियर में डॉ भल्ला सरकारी बुलडोजरों की चपेट में आ चुके हैं ।
हर सरकार को अधिकार होता है कि वो अपनी सरकार को अपने ढंग से चलाये,भले ही इसके लिए बुलडोजरों की जरूरत हो या पुलिस की लाठी-गोली की ।सरकार सर्वशक्तिमान होती है ,ये प्रदर्शित करना ही नहीं अपितु प्रमाणित करना भी आवश्यक होता है ।किस्मत से मुख्यमंत्री बने स्वर्गीय बाबूलाल गौर ने अपने जमाने में पूरे प्रदेश में न जाने कितने शहरों में अवैध निर्माण के खिलाफ बुलडोजर चलाये,कुछ इमारतें भी नेस्तनाबूद करैं थीं लेकिन बाद में बुलडोजर अपने-अपने शेड्स में वापस लौट गए ।बुलडोजरों के दम पर जिनकी चांदी कटना थी ,कट गयी और किसी का कुछ नहीं बिगड़ा ।
प्रदेश में  इस समय सरकार के बुलडोजर उन लोगों के खिलाफ चल रहे हैं जो सरकार की नजर में माफिया हैं। इंदौर में सांध्य  अखबार के मालिक जीतू सोनी का सम्राज्य सरकार के बुलडोजरों ने जमींदोज कर दिया ।कहा जाता है कि सोनी  सरकार से बा-बस्ता अफसरों और नेताओं के काले कारनामे उजागर करने की धृष्टता कर रहे थे ।उन्होंने  'हनीट्रैप' में शामिल लोगों के चेहरे दिखाना शरू कर दिए थे,आज बेचारे खुद सूरत दिखने लायक नहीं हैं और पुलिस के ईनामशुदा अपराधी है। ग्वालियर में डॉ भल्ला के साथ भी यही हुआ।वे भाजपा राज में एक आयोग के सदस्य बनाये गए थे । उन्हें मंत्री का दर्जा हासिल था जो शायद अब भी उनसे छीना नहीं गया है ।भल्ला साहब पेशे से चिकित्स्क हैं लेकिन जमीन-जायदाद के कारोबार में उनका दखल उन्हें सरकार की नजर में माफिया बना गया ।
प्रदेश में तरह-तरह के माफिया हैं ,इससे कोई इंकार नहीं कर सकता।माफिया हर राज में होते हैं ,चूंकि प्रदेश में भाजपा डेढ़ दशक तक शासन में रही इसलिए उसके राज में भी माफिया पनपे और खूब पनपे ।अब सरकार बदल गयी है इसलिए माफिया भी बदले जाना हैं और इंदौर से ये सिलसिला शुरू हो गया है ।एक अघोषित परम्परा है कि जिसका राज,उसके माफिया ।माफिया का अर्थ मोटे तौर पर विधि विरोधी कार्यों में सलंग्न व्यक्ति या व्यक्तियों का  गिरोह होता है ।भारत में हर राज्य में माफिया हैं,कहीं सहकारिता में तो कहीं शिक्षा में,कहीं कोयले में तो कहीं पत्थर में ,कहीं  रेत में तो कहीं जंगल में ।
 कुछ शब्दों का इस्तेमाल हम अपनी सहूलियत के हिसाब से अक्सर करते रहते हैं, लेकिन उसके मतलब नहीं समझ पाते। इनमें विदेशी शब्दों की तादाद कुछ ज्यादा है। इन्ही शब्दों में से एक शब्द है 'माफिया' जो मूल रूप से इटली से प्रचलित हुआ है। इसका इस्तेमाल आम तौर पर हम सब उन लोगों के लिए करते हैं, जो दबंग किस्म के होते हैं या जिनके संरक्षण में अपराध फलता-फूलता है। लेकिन माफिया शब्द का असल मतलब हम में से कम हीं लोग जानते हैं।माफिया शब्द के मायने और किस्से बड़े हीं दिलचस्प हैं। ये सम्पूर्ण शब्द नहीं बल्कि एक शॉर्ट फॉर्म है। यह शब्द अंग्रेजी के पांच अक्षरों एम ए एफ आई ए (MAFIA) के मेल से बना है। इस शब्द का इजाद सबसे पहले इटली से हुआ। इसका फुल फॉर्म होता है 'मोर्टे अला फ्रांकिया इटैलिना आमेल्ला'। इसका हिंदी अर्थ है 'इटली में आए हुए फ्रांसीसियों को मार दो'।
भारत में माफ़िय शब्द का इस्तेमाल कब और किसने शुरू किया ,मुझे नहीं मालूम लेकिन इस शब्द के उच्चारण भर से एक डरावनी तस्वीर उभरने लगती है ।
सियासत में माफिया कब शामिल हुए ,ये भी शोध का विषय है ,लेकिन अब माफिया और सियासत एक ही सिक्के के दो पहलू बन चुके हैं ।जहां सियासत होगी ,वहां माफिया भी अवश्य  होगा ।आज देश में कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है जो सियासत या माफिया से अछूता हो ।बावजूद इसके सरकारें माफिया के खिलाफ अभियान चलातीं हैं ताकि जनता के मन से माफिया का भय कुछ कम हो जाये ।कमलनाथ की सरकार शायद यही कर रही है ।सरकार के इस अभियान का समर्थन करने में किसी का कुछ नहीं जाता बा-शर्त कि अभियान बिना किसी पक्षपात के चले।माफिया की जाती-बिरादरी और रसूख न देखा जाये ।
दूसरे शहरों का तो हमें नहीं पता लेकिन हमारे अपने ऐतिहासिक शहर ग्वालियर में हर किस्म के माफिया हैं।सरकारी जमीने,अवैध निर्माण,दवा,चिकित्सा,शिक्षा रेत,पत्थर जैसे तमाम कारोबार इन्हीं माफियाओं के हाथ में हैं ।हर राजनीतिक दल में इनका रसूख है ।कुछ में इनके प्रतिनिधि हैं और कुछ में इनका परोक्ष प्रतिनिधित्व होता है ।इन्हें चिन्हित करना बहुत आसान है लेकिन इनके खिलाफ कार्रवाई करना आसान नहीं ।इन्होने शहर की सूरत बिगाड़ दी है ।नदी-नाले तक नहीं छोड़े लेकिन कोई कुछ नहीं कर पाता।बुलडोजर भी इन्हें देखकर वापस लौट जाते हैं ।अदालती फैसलों का इन पर कोई असर नहीं होता ।कमलनाथ सरकार यदि प्रदेश के प्रत्येक शहर में माफिया राज को समाप्त करने का संकल्प ले ले तो मेरा दावा है कि अगले चार साल उसके निष्कंटक बीत जायेंगे अन्यथा  ये माफिया सरकार को कहीं का नहीं छोड़ेगा ,क्योंकि माफिया की जड़ें गहरीं और हाथ क़ानून के हाथों से भी अधिक लम्बे हैं ।
मेरा अपना अनुभव है कि सरकार जब वास्तविक माफिया के खिलाफ कार्रवाई करती है तो उसका विरोध सीमित होता है।अखबारों में कुछ प्रायोजित खबरें छपने और ज्ञापनबाजी से आगे कोई नहीं जाता ।माफिया समर्थक सियासी दल और सामाजिक संगठन ब्यान और ज्ञापन देकर  विरोध की रस्म अदा कर लेते हैं ।आज भी यही सब हो रहा है ,इसलिए इस अभियान को जारी रखने के साथ है इसे पारदर्शी बनाये रखने की आवश्यकता है। 
(खुलकर प्रतिक्रिया दीजिए, गारंटी है कि  आपके ऊपर बुलडोजर नहीं  चलेगा।😋)
@ राकेश  अचल