बढ़ते हुए शाहीन बाग़  *******************

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भाजपा शासित देश में छह साल में पहली बार हो रहा है की  विरोध का एक शाहीन बाग़ अब पूरे देश में फैलता जा रहा है। विरोध का प्रतीक शाहीन बाग़ प्रायोजित है या नहीं,ये मुद्दा अलग है लेकिन असल बात ये है की  विरोध बढ़ रहा है और सरकार शंका समाधान करने में नाकाम हो रही है ।दिल्ली का शाहीन बाग़ भविष्य का जलियांवाला बाग़ न बन जाए इसके लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है ।
देश को अचानक ''नागरिकता'' कानून और रजिस्टरों के हवाले करने के प्रयास में सरकार से कहाँ चूक हो गयी ये कहना कठिन है लेकिन ये एक ऐसा उलटा पांसा है जिसमें सभी उलझते नजर आ रहे हैं । देश में सत्तर साल में नागरिकता कोई मुद्दा क्यों नहीं थी ?इस सवाल को भी खंगाला जाना चाहिए।क्या सचमुच इतने बड़े देश के पास अपने नागरिकों की सही पहचान का कोई औजार है ही नहीं या फिर ये सब जनता को परेशान करने के लिए है ?
देश में जन्म-मृत्यु पंजीयन की व्यवस्था है ,मतदाता पहचान पत्र की व्यवस्था है और तो और बाद में सबके लिए आधार कार्ड की व्यवस्था कर दी गयी।फिर भी कोई गैर भारतीय भारत में कैसे रह सकता है ,ये बताने वाला कोई नहीं है ।देश की 130  करोड़ से अधिक आबादी के पास यदि पहचान का कोई प्रामाणिक दस्तावेज नहीं है तो फिर जाने दीजिये सब कुछ भाड़ में ।देश यदि राम भरोसे चल रहा है तो चलने दीजिये ।क्या जरूरत है नागरिकता क़ानून या किसी एनआरसी आदि की ।और यदि ये सब जरूरत है तो सरकार को उपलब्ध दस्ताबेजों में से अपना पंजीयन बना लेना चाहिए ।
मुझे सरकार के इस आरोप में बिलकुल  भरोसा नहीं है की इन कानूनों के विरोध में चल रहा आंदोलन प्रयोजित है ,या आंदोलन में शामिल महिलाओं को दिहाड़ी दी जा रही है। यदि पैसे लेकर इस  तरह के आंदोलन संचालित किये जा सकते हैं तो सरकार के पास तो पैसा ही पैसा है ।ऐसे तमाम आंदोलनों की हवा आसानी से निकाली जा सकती है ।पर आंदोलनों की हवा निकलने के बजाय और तेज होती जा रही है ।दिल्ली के बहार देश के दुसरे हिस्सों में भी ये आंदोलन तेजी से अपने पैर पसार रहा है ।
नागरिकता संशोधन क़ानून  और एनआरसी जैसे प्रावधान्न का विरोध करने वाले यदि देशद्रोही हैं तो सरकार को इन सबके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज कर जेल भेज देना चाहिए और यदि आन्दोलन देशद्रोह नहीं है तो आंदोलनकारियों की शंकाओं का समाधान क्र आंदोलनों को समाप्त करा लेना चाहिए क्योंकि कोई भी आंदोलन देश की सेहत के लिए अच्छा नहीं है ।सरकार आंदोलनकारियों से न बात कर रही है और न क़ानून का सहारा ले रही है इससे लगता है की कहीं न कहीं सरकार बैकफुट पर है ।अंकशास्त्र के आधार पर संसद में जीती सरकार सड़क पर पराजित होती दिखाई दे रही है ।पराजय का यही दंश सरकार को खाये जा रहा है। सरकार का ध्यान आंदोलन को समाप्त करने के बजाय दिल्ली विधानसभा चुनावों पर अधिक है ।
देश में जम्मू-कश्मीर और राम मंदिर जैसे विवादित मुद्दों के समाधान के बाद भी यदि देश अशांत है तो इसे सरकार की नाकामी माना जाएगा ।सरकार ही अशांति के रास्ते खोलती जा रही है ।मै कहता हूँ की सरकार को अपने एजेंडे की पूर्ती के लिए जो भी करना है,कारे,कौन रोकने वाला है लेकिन जनता की भावनाओं को समझना और उसे सम्मान देना भी सरकार का ही दायित्व है ।आज की सरकार देश की अब तक की तमाम सरकारों में से सबसे अधिक अविश्वसनीय सरकार है ।इस देश ने अलप अवधि की सरकारों से लेकर दीर्घ अवधि की तमाम सरकारें देखी हैं लेकिन जितनी फजीहत इस सरकार की हो रही है उतनी किसी अन्य सरकार की नहीं हुई ।ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है ।देश को एक भरोसेमंद सरकार की जरूरत थी,देश की जनता ने अपनी समझ से ऐसी ही सरकार चुनी थी लेकिन जनता के साथ धोखा हो गया ।सरकार वैसी नहीं निकली जैसी जनता चाहती थी ।
देश की सबसे बड़ी अदालत के निर्देश पर सरकार ने जनता की शंकाओं का समाधान करने के लिए कुछ उपाय किये थे लेकिन उनका कोई सकारात्मक   परिणाम नहीं  आया,तो सरकार ने विरोध रैलियों के समर्थन में रैलियां निकालना शुरू कर दीं किन्तु वे भी इस आंदोलन को समाप्त नहीं करा सकीं ।देश को महत्वपूर्ण मुद्दों से भटकाकर रेलों में उलझाने से बात बनने वाली है ही नहीं,ये तो ठीक वैसा ही हुआ जैसा किसी शतुरमुर्ग का रेट में सर छिपा लेना ।सरकार को हकीकत का सामना करना चाहिए और हर स्तर पर करना चाहिए 
बात को लंबा न खींचते हुए मै तो बार-बार यही कहना चाहूंगा की सरकार हठधर्मिता छोड़े और शाहीन बाग़ में बैठे लोगों से बात करे ताकि ये बाग़ जलियांवला बाग़ की पुनरावृत्ति का कारण न बने ।भारत में चीन की तरह आंदोलनकारियों पर टैंक चलने की कोई नजीर  नहीं है,यहां सारी समस्याएं बातचीत से हल होती आयीं हैं और आगे भी ऐसा ही होगा ,ऐसा ही होना चाहिए ।जड़ता किसी समस्या का समाधान नहीं दे सकती ।आपको बता दें की शाहीन बाग़ आंदोलन को एक महीने से अधिक का समय हो चुका है ।
@ राकेश अचल