भाजपा में नड्डा युग ( राकेश अचल )


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भाजपा के ग्यारहवें राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में श्री जगत प्रकाश नड्डा की ताजपोशी एक ऐसे समय में हुई है जब पूरी पार्टी एक संक्रमणकाल से गुजर रही है। नड्डा के पूर्ववर्ती अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई में भाजपा जिस आक्रामकता के साथ आगे बढ़ी थी उसी वेग के साथ नीचे की और भी खिसकी है ऐसे में जगत प्रकाश नड्डा के सर पर भाजपा का ताज रखा जाना एक महत्वपूर्ण घटना है।नए अध्यक्ष के रूप में मै श्री नड्डा को हार्दिक बधाई देता हूँ ।
नड्डा  मेरे हमउम्र हैं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के रास्ते भाजपा की राजनीति में आये हैं ।उनका राजनीतिक जीवन भी अभी कुल जमा २६ साल का है लेकिन इन ढाई दशकों में उन्होंने एक संजीदा राजनेता के रूप में अपनी छवि बनाई है ।कहने को वे सर्वसम्मत अध्यक्ष हैं लेकिन हकीकत में वे मोदी और शाह की जोड़ी की पसंद के अध्यक्ष हैं इसलिए उन्हें कोई अस्वीकार नहीं कर सकता ।मोदी और शाह की जोड़ी का भाजपा के शीर्ष पर जिस तरह से प्राकट्य हुआ था उसके बारे में आज जिक्र करने की जरूरत नहीं है लेकिन ये स्वीकार करना होगा की नड्डा बिना किसी विरासत के भाजपा के शीर्ष पद पर पहुंचे हैं ।
आज जब की भाजपा तेजी से राज्यों से उखड़ती जा रही है और उसके साथी राजनितिक दल जिस तेजी से उसका साथ छोड़ रहे हैं तब नड्डा के लिए चुनौती है की वे पार्टी नेतृत्व के प्रति बढ़ती घृणा को कैसे रोकें ।सीएए एनआरसी जैसे मुद्दों को लेकर भाजपा के प्रति पूरे देश में जो असंतोष है उसे रोकने के लिए जेपी क्या जादू करते हैं ये देखने की बात होगी ।उनके नेतृत्व में पहला विधानसभा चुनाव दिल्ली का ही लड़ा जाना है जहां पिछले चुनाव में भाजपा समूल उखाड़ दी गयी थी। नड्डा यदि इस चुनाव में तीन के स्थान पर तरह सीटें भी ले आते हैं तो ये उनकी उपलब्धि मानी जाएगी ।
हकीकत ये है की भाजपा में नड्डा युग का श्रीगणेश तो हो गया है किन्तु उस पर छाया मोदी और शाह युग की ही रहने वाली है क्योंकि इन दोनों की आक्रामकता के आगे नड्डा नगण्य हैं ।नड्डा एक मितभाषी नेता हैं ,वे मोदी और शाह की भाषा में बोल पाएंगे कहना कठिन है।क्योंकि अभ्यास के बिना ये नामुमकिन है ।नड्डा के पास मोदी और शाह जैसी न देह की भाषा है और न ही कर्कशता ।उनके तरकस में कैसे तीर होंगे कोई नहीं जानता ।नड्डा का ऊर्जा स्तर भी मोदी और शाह के जैसा नहीं है लेकिन कम भी नहीं हैं।इसलिए उनकी क्षमताओं पर सनेह करना भी उनके साथ अन्याय होगा ।मैंने भाजपा के पहले से लेकर दसवें अध्यक्ष को आते-जाते और काम करते देखा है लेकिन लाकृष्ण आडवाणी और अमित शाह जैसे अध्यक्ष पार्टी को किस्मत से मिले हैं ।आडवाणी को मार्गदर्शक मंडल  में डाल  दिया  गया है और शाह अभी क्रीज पर जमे हुए हैं ।शाह चाहते तो एक पारी और खेल सकते थे किन्तु मिशन 2024  के लिए उन्होंने अपने आपको मुक्त कर लिया है ।बिना उनके भाजपा को अगला आम चुनाव जिता पाना आसान काम नहीं है ।
यहां एक बात और ध्यान देने वाली है की नड्डा भाजपा के उत्तर भारत से आते हैं।भाजपा ने अब तक केवल तीन दक्षिण भारतीयों को इस पद के लिए चुना इनमें से वेंकैय्या नायडू को छोड़ कोई कामयाब नहीं हुआ।बंगारू ने टीवी पर रिश्वत लेते हुए पार्टी की साख खराब की तो जन कृष्णामूर्ति भी पार्टी को कोई ताकत नहीं दे पाए ।भाजपा पिछले ३९ साल में किसी महिला को तो कमान देने का साहस जुटा ही नहीं पाई ,लेकिन ये पार्टी के अंदरूनी मामले हैं ।पार्टी की नीति और नियत को लेकर हम सवाल खड़े करें तो बेकार है ।ये सवाल मानसिकता से जुड़े सवाल हैं और इनका उत्तर समय ही दे सकता है 
फिलहाल जेपी  के पास संगठन  और सरकार दोनों का सुदीर्घ अनुभव है इसलिए उम्मीद की जा सकती है की वे अपनी नयी पारी शान्ति और सुकून के साथ पूरी खेल लेंगे ,उन्हें पार्टी में सभी गुटों का सहयोग मिलेगा और शायद ही किसी राज्य में कोई कठिनाई आये ।वे कामयाब हों और उनका कार्यकाल पार्टी में याद किया जाये इन्हीं शुभकामनाओं के साथ उन्हें फिर बधाई देता हूँ ।