चौबे जी का दुबे हो जाना  ( राकेश अचल )


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मध्यप्रदेश के इतिहास में दस्यु उन्मूलन में क्षेत्र में एक अलग अध्याय लिखने वाले मध्यप्रदेश पुलिस के पूर्व एडीजी राजेंद्र चतुर्वेदी को जेल में हुई भर्तियों में लेनदेन के आरोप में ईओडब्ल्यू की विशेष अदालत ने पांच साल कैद और जुर्माने की सजा सुनाई तो मुझे बिलकुल हैरानी नहीं हुई ,लेकिन हैरानी इस बात की है की छब्बे बनने जा रहे चौबे जी दुबे बनकर रह गए ।भ्र्ष्टाचार के मामले में सजा पाने वाले भापुसे के इस जांबाज अफसर का नाम है राजेंद्र चतुर्वेदी ।
राजेंद्र चतुर्वेदी १९८० के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के प्रिय अफसरों में थे। वे पहले ग्वालियर के एसपी रहे फिर उन्हें दस्यु सरगना मलखान सिंह के समर्पण के लिए ग्वालियर से भिंड भेज दिया गया ।राजेंद्र चतुर्वेदी की कामयाबी में उनकी पत्नी [शायद उनका नाम दीपा  था]का बड़ा हाथ था । दीपा जी ने अपने पति के दस्यु उन्मूलन अभियान में बराबरी की भूमिका निभाते हुए उनके साथ बीहड़ों में जाकर न केवल दस्यु सरगना मलखान सिंह को अपना भाई बना लिया था बल्कि बाकायदा उससे राखी भी बंधवाई थी ।
दस्यु सरगना मलखान सिंह के गिरोह की उन दिनों चंबल में टूटी बोल रही थी इसलिए उसे समर्पण के लिए राजी कर लेना दीपा और उनके पति राजेंद्र की एक बड़ी उपलब्धि थी। किस्सा पूरा फिल्मी है लेकिन विस्तार में जाना अभी सम्भव नहीं ।मलखान समर्पण  न करता तो मारा जाता क्योंकि मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने कमर कस ली थी  कि या तो डाकू समर्पण करने या मौत के घाट उतार दिए जाएँ ।मलखान ने पुलिस की गोली से मरना स्वीकार नहीं किया और समर्पण का रास्ता चुना ।महीनों तक दीपा बीहड़ में जाकर मलखान को समझाती,मनाती रही और अंत में उन्हें कामयाबी भी मिली ।कहते हैं कि इस समर्पण अभियान में भी दीपा के पति राजेंद्र चतुर्वेदी ने नामा बनाया और खूब बनाया ,शायद इसी बात को लेकर पति-पत्नी में अनबन भी खूब रही ।
राजेंद्र चतुर्वेदी की पत्नी दीपा बंगाली थीं और रसूखदार भी ।उनके देश के नामी पत्रकारों से सम्पर्क भी थे,इन्हीं के जरिये उन्होंने समर्पण से पहले ही मलखान का जमकर महिमा मंडन कराया ।राजेंद्र चतुर्वेदी बाद में मलखान के जरिये ही दस्युरानी फूलन देवी और दस्युराज घन्सा    उर्फ़ घनश्याम सिंह गिरोह का समर्पण करने में भी सफल हुए थे लेकिन इन सफलताओं के बावजूद चौबे जी का चरित्र बदला नहीं वे लगातार हरकतें करते ही रहे ।चौबे जी ने मुझे भी फूलन के समर्पण के वक्त रोकने की कोशिश की थी लेकिन मई उन्हें छकाकर अपने मकसद में कामयाब ही नहीं हुआ था बल्कि उनकी सारी पोल भी मैंने ही खोली थी 
कुछ वर्ष पहले राजेन्द्र चतुर्वेदी को राजधानी की पुलिस आपफीसर्स मेस में मैस के कर्मचारियों द्वारा नजरबंद कर लिया गया था । उनकी कार के पहियों की हवा निकाल दी गई है ताकि वो भाग न सकें। चतुर्वेदी चार महीने से अपने बेटे के साथ ऑफिसर्स मेस के कमरा नंबर 304 में रुके हैं। यहां उनके रहने व खाने का करीब 70 हजार रुपए का बिल हो गया है।  चतुर्वेदी बिल दिए बगैर ही बेटे के साथ चोरी-छिपे जाने की तैयार कर रहे थे, तभी कर्मचारियों ने उन्हें देखा और बिल देने को कहा।जब उन्होंने आनाकानी की तो कर्मचारियों ने उनकी कार नंबर एचआर 26 एक्यू 8826 के पहियों की हवा निकल दी और पत्थर का टेका लगाकर उसके चारों तरफ गमले लगा दिए। इसके बाद चतुर्वेदी अपने कमरे में चले गए। सातवीं बटालियन के कमांडेंट प्रमोद वर्मा के अनुसार उस समय चतुर्वेदी के पास बिल देने के लिए रुपए नहीं थे। 
भ्र्ष्टाचार के मामले में सजा सुनाये जाने के बाद चौबे जी को ऊपर की अदालतों में जाना पडेगा ,वहां से उन्हें राहत मिलती है या नहीं ये उनकी किस्मत पर निर्भर करता है फिलहाल वे एक बार फिर से चर्चा में हैं जो उनके अतीत के मुकाबले बेहद शर्मनाक लगती हैं ।
@राकेश अचल