देखना है जोर कितना बाजू-ऐ-कातिल में है 

देखना है जोर कितना बाजू-ऐ-कातिल में है
****************************************
अंग्रेज भारत न आये होते तो भारत के लोग कभी भी प्रतिकार करना नहीं सीखते ।अंग्रेजों के पहले बाहर से जो भी आततायी आये उनके साथ भारत के तमाम शासकों ने प्रतिकार के अलावा रोटी-बेटी का रिश्ता कायम कर अपनी कुर्सी बचाये रखी ,लेकिन अंग्रेजों के साथ ये नहीं हुआ।अंग्रेजों ने भारत के लोगों से रोटी-बेटी का रिश्ता तो दूर इंसानियत  का रिश्ता भी कायम नहीं किया ।अंग्रेजों की क्रूरता से भारतीय बाग़ी भी बने और सत्याग्रही भी ,इन्हीं दोनों के भरोसे कालांतर में देश आजाद हो गया लेकिन हमारी प्रतिकार ,सत्याग्रह की आदत बरकरार है ,हम चुनौतियों से नहीं डरते ।
देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह ने बीते रोज लखनऊ में एक मंच से पूरे देश के प्रतिकारियों को खुले आम धमकाया कि -जिसे जो करना है कर ले, सी ए ए क़ानून वापस नहीं होगा ।शाह साहब को ये क़ानून वापस लेना भी नहीं चाहिए,क्योंकि यदि उन्होंने जनता के प्रतिकार को देखते हुए ऐसा किया तो सरकार की और पार्टी की नाक कट जायेगी ! फिर कटी हुई नाक लेकर वे कहाँ-कहां जायेंगे  ?बेहतर है की वे अंग्रेजों की तरह कड़क बने रहें,शाहीन बाग़ को जलियावाला बाग़ में तब्दील कर दें लेकिन क़ानून किसी भी सूरत में वापस न लें ।
मै एक लम्बे आरसे से देख रहा हूँ की अब जो भी कुर्सी पर जनादेश लेकर आता है वो ही जनता की ऐसी-तैसी करने में जुट जाता है।भूल जाता है कि उसे जनता की सेवा का आदेश मिला है,जनता को धमकाने का नहीं ।चुनी हुई सरकारें जनता को धमकाती नहीं हैं बल्कि जनता से बात करती हैं ,भले ही जनता सत्याग्रही ही क्यों न हो ।अच्छी बात है कि सरकार सत्याग्रही कुनबे के ओढ़ने-बिछाने के कपड़े लूट रही है।शौचालयों में ताले डलवा रही है ,सड़कों पर बैठने नहीं दे रही है ।जनता को शायद इसका अधिकार है ही नहीं।जनता को तो जो सरकार करे उसे सर झुकाकर मान लेना चाहिए ।किसी क़ानून में मीन-मेख निकालने की क्या जरूरत है ?
हमारी चुनी हुई सरकारें भूल जातीं हैं की हम भारतीयों को क़ानून तोड़ने का दो सौ साल का तजुर्बा है ,यदि ये न होता तो आज न जाने कितने क़ानून अपना काम कर रहे होते !।गांधी जी ने नमक क़ानून तोड़ा था ,हम उनसे प्रेरणा लेकर ट्रेफिक क़ानून तोड़ते हैं ,सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ रखने का कानून तोड़ते हैं,निषेधाग्तयाएँ तोड़ते हैं ।हम कानूनों को तोड़े बिना रह ही नहीं सकते।हमने क़ानून तोड़े बिना रही ही नहिंन आती,जिसे जो करना है,कर ले !हम सी ऐ ऐ क़ानून भी तोड़ेंगे,हम एनसीआर भी नहीं मानेंगे एनआर सी भी नहीं मानेंगे ,क्योंकि हम जानते हैं की लाये गए कानूनों की मंशा क्या है ?वोट कबाड़ने के लिए लाये गए क़ानून तो हमें कतई बर्दाश्त नहीं है ।
हमें पता है कि धरनों,प्रदर्शनों,रैलियों ,हड़तालों,बंद आदि से ज्यादा कुछ नहीं होता।लिखने से तो बिलकुल ही कुछ नहीं होता ,हम लिख-लिखकर कागद कारे करते रहते हैं।लिखने से जुगाड़ हो तो इनाम-इकराम जरूर मिल जाते हैं और कुछ नहीं ।हम चालीस साल से लिख रहे हैं।असगर वजाहत साहब,मुनव्वर राणा साहब  हमसे पहले से लिख रहे हैं।उनसे पहले से लिखा जा रहा है ।लिखना एक सनातन परम्परा है ।परम्परा है इसलिए हमें लिखना पड़ता है ।हमारे लिखने से सरकारों पर कोई असर नहीं पड़ता ।लेकिन फिर भी सरकार है कि चुनौतियाँ देती है,धमकाती है। लाठी-गोली चलवाती है ।
गलत को सही कहना आदमी की प्रकृति और प्रवृत्ति दोनों है ।और जो गलत होता है वो अलग से समझ में आ जाता है ।गलत को सुधर लीजिये तो कहीं कोई टकराव होता ही नहीं है। रामचरित मानस लिखने वाले बाबा गोस्वामी तुलसीदास महाराज कह गए -'जहां सुमति तहँ,सम्पत्ति नाना '।अब राम को मानने वाले राम का चरित लिखने वालों की बात भी न मानें तो हम और आप क्या कर सकते हैं ।सुमति कायम करने में आखिर देर कितनी लगती है ।जितना समय आप असहमति के खिलाफ रैलियां आयोजित करने में और धमकियां देने में जाया कर रहे हैं ,उससे आधा वक्त भी यदि सुमति कायम करने में लगा दिया होता तो आज देश की तस्वीर कुछ और होती ।सबका साथ,सबका विकास 'का फार्मूला आखिर कहाँ खो गया है ।आप सबको साथ लेकर चलना ही नहीं चाहते! जो आपकी बात न माने वो राष्ट्रद्रोह,गद्दार,पाकिस्तानी और न जाने क्या-क्या ?
हम अपने गृहमंत्री जी की ताजा धमकी के बाद से ढंग से सो भी नहीं पा रहे ।हमारी नींद हराम हो गयी है ,राम जाने वे आने वाले कल में क्या का गुजरें ,आखिर पुराने पुण्यप्रतापी हैं ।वे ही नहीं उनका पूरा कुनवा पुण्यप्रतापी है ।अयोध्या में एक ढांचे को देखते-देखते छार-छार किसने किया था आखिर ? बहरहाल मै लिखना बंद नहीं कर रहा हूँ,कोई बंद नहीं कर रहा है। कोई धरना/प्रदर्शन बंद नहीं हो रहा ,होगा भी नहीं क्योंकि ये गांधी का देश है ,कबीर का देश है ।बुद्ध का देश है ,राम -कृष्ण का देश है ।मेरा देश है,तेरा देश है ,सबका देश है,यहां धमकियां  नहीं चलतीं ,थपकियाँ ,झपकियां चलतीं हैं ,सो इन्हें ही चलाइये ।
@ राकेश अचल