कबाब की हड्डी गले में फँसी = ( राकेश अचल ) =


***************************
अमूमन कबाब में हड्डी होती नहीं है। कबाब इतनी होशियारी से बनाया जाता है की उसमें कोई हड्डी रहे ही न ।कबाब बनाना और क़ानून बनाना एक जैसा काम है ।कबाब सही तरीके से बन गया तो लखनऊ में जैसे टुंडे के कबाब सर्वग्राही हो जाते हैं,और नहीं बना तो कबाब खाने वाले के ही नहीं बनाने वाले के गले की हड्डी भी बन जाते हैं ।सीएए जैसा कानूनी कबाब कुछ -कुछ ऐसा ही है।जिसने बनाया वो परेशान है और जिसके लिए बनाया वो भी और जिसका इससे कोई ताल्लुक नहीं उसका तो कहना ही क्या ।
निखालिश हिंदूवादी कानूनदाँ आखिर कबाब जैसा लजीज कबाब बना कैसे सकते हैं। लेकिन बेचारों ने कबाब बनाया ,लेकिन बनाना आता नहीं था सो कबाब में अनेक हड्डियां रह गयीं जो खाने वालों के गले में पहले चुभी और फिर बाहर नहीं निकलीं तो बनाने वालों के गले में फंस कर रह गयीं ।कबाब कीमे से बने या सोयाबीन से उसमें हड्डियां नहीं होना चाहिए ।हड्डियां स्वास्थ्य के लिए हमेशा से घातक होती हैं ।मुश्किल है कि सरकार के खानसामाओं ने एहतियात नहीं बरती और सारा शीराजा बिखर गया ।
सरकार भले ही कहे कि सीएए के खिलाफ सड़कों पर जमा हिन्दुस्तानी,पाकिस्तान समर्थक हैं लेकिन हकीकत ये है कि ये आरोप गलत है ,कानूनी कबाब का विरोध करने वाले ठेठ हिन्दुस्तानी हैं लेकिन उन्हें देशद्रोही कहना ही सबसे बड़ा देशद्रोह है।गले में फँसी हड्डी निकालने के लिए अब कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा ।सरकार के पास अब कोई लम्बी चौंच वाली सारस भी तो नहीं है जो गले में फँसी हड्डी निकाल सके ।सरकार के पास केवल बगुला भगत हैं जो मछलियां कहते हैं लेकिन हड्डियां नहीं निकालते ।
आज की सियासी भाषा में कहें तो सीएए के विरोध में उलझी सरकार को अब कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है ,क्योंकि गृहमंत्री श्री अमित शाह डंके की चोट पर कह चुके हैं कि सीएए किसी भी कीमत पर वापस नहीं होगा ।साहब ने डंका तो बजा दिया लेकिन अब उनके सहयोगी ही सीएए को लेकर विचलित दिखाई दे रहे हैं केंद्र सरकार ने पहले भी जनता के सामने जितने कानूनी कबाब परोसे उनके नतीजे गलत ही आये ।एक के बाद एक राज्य हाथ से निकल गए ।अब दिल्ली बचने के लिए पार्टी और संघ परिवार की यक्षिणी सेना लगी हुई है लेकिन हालत खराबहै,नाव डूबती दिखाई दे रही है ।
देश में शांति और समरसता के लिए जरूरी है कि फिलहाल सीएए को समीक्षा के लिए रख लिया जाए ।देश में रहने वालों की एक समग्र पंजी जरूरी है इसे सरकार अपने पास उपलब्ध दस्तावेजों से तैयार कर ले और फिर उसके अंतिम प्रकाशन के समय दावे/आपत्तियां आमंत्रित कर ले ,इससे घुसपैठियों की पहचान भी आसानी से हो जाएगी और जिन शरणार्थियों को धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर नागरिकता दी जाना है ,वो भी दी जा सकेगी । लेकिन ये काम जिद से ,नहीं होगा,इसके लिए व्यावहारिक बनना होगा ।परिपक्वता दिखाए बिना आप समस्या से पार नहीं पा सकते ।अभी भारतीय नागरिकता के जितने भी उपलब्ध रास्ते हैं उनके तहत किसी भी भारतीय के पास कोई एक ऐसा प्रमाणपत्र नहीं है जो नागरिकता का विकल्प हो ।बेहतर हो कि हम अपने हर नागरिक को एक नागरिकता प्रमाणपत्र उपलब्ध कराएं जिसके आधार पर हम दीगर जरूरी दस्तावेज हसिल कर सकें।अभी हम दीगर दस्तावेजों से अपने भारतीय नागरिक होने का प्रमाण देते हैं ।
विसंगति ये है कि सरकार एक जरूरी और राष्ट्रीय कार्य को भी राष्ट्रीय भावना से पूरा नहीं कर पा रही है। नागरिकता क़ानून में सनशोधन के बाद जितनी स्पष्टता होना चाहिए थे उतने भ्रम पैदा हो गए हैं, ये न विज्ञापनों से दूर हुए और न रैलियों से ,इन्हें दूर करने का एक ही उपाय है कि सब कुछ एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाकर पारदर्शी तरिके से हो ताकि बाद में किसी को भी सड़क पर न आना पड़े ,न जनता को,न पुलिस को और न नेताओं को ।देखिये ! आगे-आगे होता है क्या ?
@ राकेश अचल