बात बेबाक
चंद्र शेखर शर्मा 【पत्रकार】
बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ , देश मे बढ़ते महिला अपराधों , बलात्कार ,छेड़छाड़ की घटनाओं के बीच सोशल मीडिया में बालिका दिवस पर शेयर किए जा रहे शुभकामना संदेशों से लग रहा है कि देश अब सुरक्षित है , बेटियो पर कोई संकट नही है ना माँ के पेट में ना पेट से बाहर की दुनिया मे , फिर मंच पर बड़े शान से दिया जाने वाला नारा तो है ही "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" । मर्दो की घूरती हवसी निगाहों से बेटियों को बचाने कानून में धाराएं तो लंबी चौड़ी है , फांसी का फंदा तक तैयार है पर कानून के लंबे हाथ अपराधी की हैसियत और रुतबे के हिसाब से गिरेबाँ तक पहुंचते है । करोड़ो रुपये खर्च कर जागरूकता अभियान के सरकारी प्रयासों के बीच अपनी आबरू और सम्मान के लिए मर्दो से लोहा लेती निर्भया आज भी निर्भय नही हो पाई । आज भी सभ्य कहे जाने वाले मानव समाज मे जब लड़कियां जब सड़कों से गुजरती है तो इशारे करते मजनू , छेड़ते युवाओं की टोली किसी को नही दिखते किन्तु कोई लड़की मॉर्डन कपड़ो में या सिगरेट का कश लगाते दिख जाए तो सबकी आंखे खुल जाती है । बलात्कारी तो एक बार जिस्म और आत्मा को नोंच खसोट कर भाग जाता है पर समाज की शक्की निगाहे , न्याय की अंतहीन तारीख पर तारीख , काले कोट के आत्मा को छेदते चुभते सवाल ,औरत में ही नुक्स खोजता पुरुषवादी मानसिकता , पीड़िता को बलात्कार से ज्यादा पीड़ा देते है ।
आज बालिका दिवस है तो परम्परानुसार स्कूल की बच्चियों को रैली के रूप में सड़कों व गलियों में बेटी बचाओ के नारे व स्लोगन वाली तख्तियों से साथ घुमाते तथाकथित समाजसेवी और अफसरान को मन्दिर , बस स्टैंड व होटलों की चौखट में भीख मांगती बेटियाँ दिखाई नही देती । बच्चो से नारे लगवाए जुलूस निकलवाये और कर्तव्यों से मुक्ति पा ली । समाज मे जागृति आई कि नही इससे किसी को कोई सरोकार नही । बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे कितने ही लगा ले पर बेटी के पैदा होने पर चेहरे पर ख़ुशी आज भी दुर्लभ है । आधुनिकता का ढोंग करने वाले सख्त पी एन डी टी एक्ट के बावजूद सोनोग्राफी के जरिये गर्भ में लड़का है कि लड़की की जांच कुछ पैसे के हवसी सोनोग्राफी सेंटर संचालक ऐसी जांचों को कर , लड़की होने पर अवैध गर्भपात के लिए चुनिंदा नर्सिंग होम्स या झोलाछाप डॉक्टरों के हवाले कर मेडिकल एथिक्स का मजाक उड़ा रहे है । मुझसे भी कई ऐसे दांम्पत्ति वारिस की चाह में जांच सेंटर का पता करते कराते टकराते है , समझाने का प्रयास करता हूँ पर समझे कि नही नौ महीने बाद ही पता चलता है । आश्चर्यजनक किन्तु सत्य है की अपने आप को पढ़ी लिखी मार्डन कहने वाले शहरिया लोगो में ही गर्भस्थ शिशु की जाँच की कुलबुलाहट और बेटा की चाहत ज्यादा दिखाई देती है । गांव में तो आज भी सब उपरवाले की देन है ।
हम उन सौभाग्यशाली लोगों में से है जिन्हें लक्ष्मी रूपी बेटी मिली है ।
खैर कितना भी पढ़ लिख लो पुरुष वादी सोच औरत को मिलते मान , सम्मान, पद को पचा नही पाता ऐसे में प्रियंका , मायावती , ममता से भी कुछ लोगो के पेट मे दर्द होना स्वाभाविक है ।
और अंत मे
बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को बखूबी पहचानती हैं बेटियाँ ,
कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं बेटियाँ ।
एक मजबूर बाप आज फिर ख़ून बेच आया है ,
अपनी बेटियों के हाथ पर मेहंदी लगाने के लिए ।।
#जय_हो 24 जनवरी 2020 कवर्धा 【छत्तीसगढ़】