मौसम का मिजाज समझो ना ! 


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हम सब लकीर के फकीर हैं ।मौसम का मिजाज समझना ही नहीं चाहते ,भले ही मौसम के प्रतिकूल होने की वजह से हश्र कुछ भी क्यों न हो ?मौसम के हवाले से मै तीन बड़े आयोजनों का जिक्र करना चाहता हूँ ।पहला आयोजन है दिल्ली के प्रगतिमेदान में लगने वाला विश्व पुस्तक मेला ।जनवरी के पहले सप्ताह में लगता है ।ये वो समय होता है जब समूचे उत्तर भारत में कोहरा अपना कहर ढाना शुरू कर देता है। रेल देर से चलने लगतीं है,कभी-कभी बूंदा-बांदी भी हो जाती है और तापमान इतना गिर जाता है की हड्डियां तक बजने लगतीं हैं ,बावजूद इसके इस आयोजन का समय नहीं बदला जाता ।
दिल्ली पुस्तक मेले में पूरे देश से पुस्तक प्रेमी जमातें शामिल होती हैं लेकिन खराब मौसम की वजह से दिल्ली के बाहर के पुस्तक प्रेमी बड़ी संख्या में मेले में आने से रह जाते हैं ।और मेला दिल्ली का मेला होकर रह जाता है। जो बेचारे हिम्मत कर लम्बी यात्राएं कर जैसे-तैसे दिल्ली पहुँच भी जाते हैं वे या तो बीमार होकर लौटते हैं या फिर असुविधाओं का शिकार होते हैं ।मौसम के मिजाज को देखते हुए इस पुस्तक मेले का आयोजन जनवरी के बजाय फरवरी या अप्रेल में किया जा सकता है लेकिन कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी जो इसका समय नहीं बदला जाता ।
बदला भी नहीं जा रहा 
पुस्तक  मेले की तरह ही मध्यप्रदेश के  ग्वालियर में बीते सौ साल से होने वाला तानसेन समारोह भी मौसम की बलि चढ़ जाता है ।कलियुग में ये समारोह उत्तर भारत में हिन्दुस्तानी संगीत का महाकुम्भ माना जाता है। इसमें अब तो दुनिया के अलग-अलग देशों के संगीतज्ञ भी पधारने लगे हैं ।ये समारोह दिसंबर के दुसरे या तीसरे सप्ताह में होता है।बेचारे संगीतज्ञों की ही नहीं श्रोताओं की भी सर्दी के मारे कुल्फी जम जाती है लेकिन आयोजक समय बदलने को राजी नहीं ,पता नहीं उनकी क्या विवशता है ?
ग्वालियर में ही दिसंबर के आखरी सप्ताह में प्रगति मैदान से भी बड़े मैदान में श्रीमंत माधवराव सिंधिया व्यापार मेले का आयोजन किया जाता है। सर्दी के कारण मेले का उद्घाटन भले ही दिस्मबर के अंतिम समय में हो जाये लेकिन दुकाने जनवरी के दूसरे सप्ताह तक तैयार नहीं हो पातीं ।दुकाने तो दुकाने सरकारी प्रदर्शनियां तक नहीं लग पातीं ।मेले की अवधि में कोहरा और वर्षा कितने दिन धमाल मचाये,कोई नहीं जानता फिर भी समय बदलने को कोई तैयार नहीं ।मौसम की चाबुक ऐसी पड़ती है की मेले में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों को सूने पंडाल देखते हैं ।क्योंकि दर्शक मेला परिसर तक पहुँच ही नहीं पाता।सरकार को छोड़ सबको खराब मौसम का खमियाजा भुगतना पड़ता है ।
दिल्ली पुस्तक मेले के कारोबार का तो मुझे पता नहीं लेकिन ग्वालियर व्यापार मेले में सालाना ५०० करोड़ तक का कारोबार एक महीने में होता है,यदि मौसम अनुकूल हो तो इसे और बढ़ाया जा सकता है ।दिल्ली पुस्तक मेले को भी मौसम के साथ चलने का लाभ निश्चित तौर पर होगा ।तानसेन समारोह एक सांस्कृतिक समारोह है लेकिन मौसम के साथ इसके आयोजन से भी सही उद्देश्यों की पूर्ती बेहतर तरीके से हो सकती है ।आयोजक चाहें तो एक बार अपने-अपने यहां रायशुमारी तो करा कर देख लें 
मेरा कहना सिर्फ इतना है की जिन आयोजनों से बड़ी संख्या में जनता और व्यापार जुड़ा रहता है उनके आयोजन में मौसम का भी ख्याल रखा जाये ।मौसम विभाग के पूर्वानुमानों का सहारा लेना राष्ट्रद्रोह नहीं है बल्कि इसे राष्ट्रहित ही माना जाना चाहिए ।हर प्रदेश को अपने यहां होने वाले आयोजनों में मौसम का ख्याल तो हर हालत में रखना चाहिए अन्यथा आयोजनों का मकसद कभी पूरा नहीं होगा,सरकारी बजट को भले ही ठिकाने लगा दिया जाये ।मेरे हिसाब से ये एक जरूरी मुद्दा है और इसका संज्ञान लिया जाना चाहिए ।मौसम की अनदेखी करना न जनहित में है और न राष्ट्रहित में ।आप अपने स्तर पर इस मुद्दे को अवश्य उठायें ताकि आपके यहां खराब मौसम में होने वाले आयोजनों की तिथियां बदलवाई जा सकें ।ऐसा मुमकिन है क्योंकि इन आयोजनों का भारतीय पंचांग से कोई रिश्ता नहीं है। इनकी  तिथियां आयोजकों के हाथ में हैं,वे चाहें तो इन्हें चाहे जब बदल सकते हैं ,यदि बदलना चाहें तो !  
@ राकेश अचल