अवधेश बजाज कहिन
ये बहुत विचलित कर देने वाला समय है। विचलन भी बेहद जुगुप्सा के भाव से भरी हुई। यह भाव केंद्रीय हुक्मरानों के लिए मन के भीतर मितली की तरह खलबली मचा रहे हैं। बात सिर्फ यह नहीं कि आपने सीएए या एनआरसी के जरिये देश को सन् 1947 के भारत-पाक विभाजन जैसे हालात में ला खड़ा कर दिया है। तकलीफ महज यह नहीं कि आप विरोधियों को उस नजर से देख रहे हैं, जिस नजर से हिटलर ने यहूदियों को देखकर दुनिया को द्वितीय विश्व युद्ध की तबाही में धकेल दिया था। उपरोक्त दो पीड़ायें तो बेहद व्यापक हैं। उन जख्मों के सदृश हैं, जिन्हें न समय भर सकता है और न ही कोई दवा। आप तो वो छोटी-छोटी तकलीफें देने पर भी आमादा हैं, जिनके लिए छोटे तीर, घाव गंभीर जैसी बात कही जाती है।
दीपिका पादुकोण ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का रुख क्या कर लिया, आप आपे से बाहर हो उठे। यहां-वहां उत्पात मचा रहा आपका हरावल दस्ता इस अभिनेत्री के साथ शाब्दिक दुराचार में सक्रिय हो गया। उसकी फिल्म छपाक के बहिष्कार की बकायदा मुहिम शुरू कर दी गयी। र्यूमर स्प्रेडिंग सोसायटी (आप बेशक इसे आरएसएस मान सकते हैं) ने कमाल किया कि इस फिल्म के एक अल्पसंख्यक खलनायक किरदार का नाम हिंदू बता दिया।
बचपन में मैं कठपुतली का खेल बड़े चाव से देखा करता था। अब यही खेल घृणा से भरकर देख रहा हूं। आपके हाथ में तमाम डोरियां हैं। एक को खींचा तो हरावल दस्ता सक्रिय हो गया। दूसरी को हरकत दी तो दिल्ली की पुलिस हाजिर थी। जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष को ही उसने वहां हुए हमले का दोषी बता दिया। जिस समय यह महान पुलिस एक वफादार चौपाये जैसा आचरण कर रही थी, उसी वक्त एक न्यूज चैनल स्टिंग ऑपरेशन दिखा रहा था। जिसमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता बता रहे थे कि जेएनयू में गये नकाबपोश हमलावर दरअसल वे खुद ही थे। घोष पर तो गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है, लेकिन परिषद के कार्यकर्तारूपी इन गुंडों के मामले में अब तक केवल जानकारी ही एकत्र की जा रही है। आप गला-गला ऐसे ही दोगलापन करते चले आ रहे हैं और इस गलत के विरोध को ही बड़ी चतुराई से आप महागलत कहकर प्रचारित कर देते हैं।
हुजूरे-आला, देश आर्थिक रूप से नंगा हुआ जा रहा है। इस निर्वसन अवस्था को सीएए या एनआरसी की दागदार और नापाक इरादों की बदबू वाली चादर से ढकने का जतन मत कीजिए। बेरोजगार नौजवानों की फौज संयम खो रही है। उनके खाली हाथ में हिंदू-मुस्लिम वाली तराजू मत थमाइये। पेट पर पत्थर बांधकर सोने को विवश देशवासियों की आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। उन्हें वंदेमातरम् या भारत माता की जय वाली आपके द्वारा खोखली की जा चुकी खुराक मत दीजिए।
हालात यह कि वित्तीय हालात पर जब आप देश के चुनिंदा उद्योगपतियों से बात करते हैं तो आपकी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ही वहां नहीं आती हैं। जाहिर है कि उद्योगपतियों के तीखे सवालों का उनके पास कोई जवाब नहीं होगा। सच कहंू तो किसी भी बात का आपके किसी भी साथी के पास उत्तर है ही नहीं। अरविंद केजरीवाल खुलकर कह रहे हैं कि जेएनयू हिंसा मामले में पुलिस को कार्रवाई करने से केंद्र ने रोका था। लेकिन आपके गृह मंत्री अमित शाह इस पर मुंह में दही जमाये बैठे हैं। कांग्रेस जवाब चाह रही है कि आखिर क्यों पंद्रह सदस्यों के विदेशी प्रतिनिधि मंडल को कश्मीर का दौरा कराया जा रहा है, वह भी तब, जबकि देश के ही राजनीतिक दलों के नुमाइंदों के वहां जाने पर आपने रोक लगा रखी है। किंतु सरकार की ओर से इसका कोई उत्तर नहीं आ रहा। सुप्रीम कोर्ट के सवालों का आप जवाब नहीं दे सके और यह डांट चुपचाप पीकर रह गये कि घाटी में इंटरनेट पर प्रतिबंध वहां की जनता के अधिकारों का हनन है।
आपके पास यदि कुछ है तो वह विभाजनकारी नीतियां हैं। अपनी सरकार के डगमग होते पहियों को आप इन्हीं नीतियों के अलग-अलग आकार वाले पानों से कस देते हैं। सीएए, एनआरसी, पाकिस्तान के खिलाफ बयानबाजी, तमाम समस्याओं के लिए पूर्ववर्ती सरकारों एवं जवाहर लाल नेहरू को दोषी ठहराना, खिलाफ बोलने वालों को तुरंत देशद्रोही करार दे देना, यह सब किसी मैकेनिक के वह अलग-अलग पाने हैं, जिनसे आप अपनी सरकार की लडख़ड़ाहट पर स्कू्र कसने का जतन करते हैं। लेकिन ऐसा कब तक चलेगा। यह देश है, भाजपा संसदीय दल की बैठक नहीं, जिसमें आपका वाक्य अंतिम होता है। यह लोकतंत्र है, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन नहीं, जो संख्या बल के चलते आपको ढोने पर विवश है। यह जनता की अदालत है, आपकी वह जनसभा नहीं, जिसमें लच्छेदार बातें कहते-कहते आपने लगातार दूसरी बार देश की सत्ता हासिल कर ली। लेकिन जनता का भ्रम अब टूट रहा है। झारखंड की हार से सबक लीजिए। आपके समर्थक तक आपसे उकता चुके हैं। महाराष्ट्र के घटनाक्रम से इसे समझने का जतन करें। आपके राग हिंदू-मुस्लिम का अवरोह तेजी पर है। सीएए के खिलाफ सडक़ों पर उतरी भीड़ के नुमाइंदों में शुमार असंख्य हिंदू चेहरों को देखकर इसे समझने का जतन करें। आपकी काठ की हांडी अब खत्म हो चुकी है। उसे उस आग पर रखने की मूर्खता और न कीजिए, जो आग देश की जनता के हृदय में आपके विरुद्ध निरंतर तेजी पकड़ रही है। इसका वेग इतना है कि न हांडी बचेगी और न ही हांडी को रखने वाले हाथ। इस देश के महान संविधान को मोदी संहिता या मोदी चालीसा में बदलने की प्रलयंकारी भूल से बचें। वरना आप इतिहास के उस कूड़ेदान में अपना अंतिम पड़ाव तलाशते दिख जाएंगे, जिस कूड़ेदान की गंध एवं गंदगी देख खुद कूड़ा भी पशेमां होकर मुंह छिपा ले।
मोदी जी, अब भी समय है, बच जाइए इतिहास के कूड़ादान में जाने से