मै उन दुर्भाग्यशाली लोगों में से हूँ जो जेएनयू या एएमयू जैसे किसी नाम-चीन्ह शिक्षा संस्थान में नहीं पढ़े ।घर वालों की हैसियत भी नहीं थी और सोच भी ।और आज लगता है की जो हुआ सो अच्छा ही हुआ,अन्यथा इन बड़े संस्थानों में पढ़ने के बाद रात के अँधेरे में फांसीवादी गुंडों के हाथों से पिटते ही। जेएनयू में बीती रात छात्रों और प्राध्यापकों के साथ जो कुछ हुआ उसके बाद लगता है की अब दिल्ली भी सुरक्षित नहीं रही ,क्योंकि जहां देश का पंत प्रधान बैठता हो वहां भी लोग पीते जा रहे हैं ।
मुझे 'दीपक तले अन्धेरा 'का अर्थ भी सही अर्थों में इस घटना के बाद ही पता चला ।हम उस देश के नागरिक हैं जहां कुछ भी सुरक्षित नहीं हैं सिवाय एक अदृश्य राष्ट्रवाद के ।इसी की आड़ में लोग मारे जा रहें हैं, पीते जा रहे हैं ,खदेड़े जा रहे हैं,उधेड़े जा रहे हैं ।प्रतिकार अब राष्ट्रद्रोह हो चुका है।राष्ट्रवाद के ठेकेदार पुलिस के संरक्षण में आपको सबक सिखाने के लिए आजाद हैं ।अब या तो आप खुद अपनी जान हथेली पर रखकर चलिए या उसकी सुरक्षा के लिए खुद सशस्त्र होकर घर में रहिये ,दूसरा कोई विकल्प आज की व्यवस्था ने छोड़ा ही नहीं है ।
देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान में सरे आम गुंडागर्दी होती है लेकिन दिल्ली में बैठे शिक्षा मंत्री ,गृह मंत्री मौके पर जाना उचित नहीं समझते,जेएनयू के कुलपति अपने छात्रों और प्राध्यापकों को पिटवाते रहते हैं किन्तु पुलिस को परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं देते ।उनकी नींद तब टूटती है जब हमलावर अपना काम पूरा कर चुकते हैं ।सारे घटनाक्रम को जोड़कर देखिये तो लगता है कि सब कुछ सुनियोजित हुआ है ।लगता है कि छात्रों और प्राध्यापकों को निकशाना इसलिए बनाया जा रहा है ताकि प्रतिकार करने वाली ये कौम सबक ले ले और बोलना बंद कर दे ,लेकिन ऐसा न होता है और न होगा ।
सत्ता में बैठे लोग शायद भूल जाते हैं कि जैसे दमन एक प्रवृत्ति है वैसे ःप्रतिकार भी एक प्रवृत्ति होती है और इसे बदला नहीं जा सकता ।
प्रतिकार करने में असमर्थ समाज की दुर्गति होना तय होता है ।भारत में प्रतिकार की प्रवृत्ति पुरानी है ,इसीलिए यहां कोई भी आक्रांता स्थाई रूप से टिका नहीं ।देश के आजाद होने के बाद भी सरकारें आती-जाती रहतीं हैं ।आज की सरकार कल जाएगी ही ,लेकिन प्रतिकार नहीं मरेगा ,मरना भी नहीं चाहिए । देश में अखंड राज करने की चाहत भाजपा की मति भ्रष्ट किये दे रही है। अखंड राज करने के लिए जनता का विश्वास जीतना जरूरी है,असहमति का सम्मान करना जरूरी है ।लाठी,गोली की दम पर अखंड राज की स्थापना नहीं हो सकती लेकिन दुर्भाग्य ये है कि जिन्हें बचपन से लाठी चलाना ही सिखाया जाता हो वे इसके बिना आगे बढ़ भी कैसे सकते हैं ।
दुनिया जानती है कि सियासत की कुछ विवशताएँ होती हैं ।ये विवशताएँ जब क्रूर होने लगें तो सावधान हो जाना चाहिए अन्यथा आप लोकतंत्र को बचाये नहीं रख सकते ।लोकतंत्र की रक्षा हर भारतीय के लिए पहली शर्त और जरूरत है और मुझे पूरा यकीन है कि भारतीय समाज इस कसौटी पर पूरी तरह से खरा उतरा है आगे भी उतरेगा ।अभी भी समय है कि सम्हल जाया जाये ,यदि सरकार ने अपनी दिशा न बदली तो देश में दुर्दशा की गति और तेज हो जाएगी और राष्ट्रवाद कहीं तेल माँगता दिखाई देगा ।असली राष्ट्रवाद समरसता और भाई चारे में है ,लाठी-गोली में नहीं ।सरकार को समझना होगा कि देश में जो भी शैक्षणिक संस्थान ही वे सब देश के लिए जरूरी हैं उन्हें शिशु मंदिरों में तब्दील नहीं किया जा सकता ।
भविष्य की और बढ़ने से पहले हमें अतीत में भी झांकते रहना चाहिए। हमारा अतीत इस बात का गवाह है कि युवा शक्ति का दमन कर कोई भी सत्ता स्थाई नहीं बन सकी।जिसने भी युवा शक्ति का दमन किया उसे सत्ताच्युत होना पड़ा ।युवा शक्ती का इस्तेमाल राष्ट्रनिर्माण में करने के लिए उदारता और दूरदृष्टि से सोचने और काम करने की जरूरत है ।देश का हताश,निराश युवा बहुत दिन तक झांसे में नहीं रह सकता ।उसे भी देश की उतनी ही चिंता है जितनी कि आपको ।इसलिए अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारना फौरन बंद कीजिये ।शैक्षणिक संस्थानों को भगवान के लिए बख्श दीजिये ।
@ राकेश अचल
पांवों पर कुल्हाड़ी मारते लोग *****************************