०-अवधेश पुरोहित
भोपाल। (हिन्द न्यूज सर्विस)। चाहे भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की किसी भी सरकार में बच्चों के प्रति कोई गंभीरता नहीं दिखाई देती है जहां एक ओर प्रदेश के विंध्य क्षेत्र के चार जिलों में सर्वाधिक प्रदूषण होने के कारण सतना, रीवा, सीधी, शहडोल और सिंगरौली में पैदा होने वाले बच्चे अपने साथ इतनी बीमारियंा लेकर आते हैं कि लेकिन इन जिलों में प्रदूषण को समाप्त करने की दिशा में आज तक सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया तो वहीं चाहे भाजपा की सरकार हो या मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व की सरकार इन जिलों में सर्वाधिक सीमेंट फैक्ट्रियां लगाने में हर कोई सरकार उत्सुक दिखाई देती है, इन सीमेंट फैक्ट्रियों से निकलने वाले छोटे-छोटे कणों से बच्चों को दमा और श्वास की बीमारी से बच्चे बचपन से ही इसकी चपेट में आ जाते हैं लेकिन सरकार का इस ओर जरा भी ध्यान नहीं जाता बच्चों के प्रति प्रदेश में यह स्थिति है कि वह भगवान भरोसे जी रहे हैं। तो वहीं कुपोषण की चपेट में प्रदेश में ४८ लाख बच्चे को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिये सरकार आज तक कोई कारगर कदम नहीं उठा पाई जिससे बच्चों को कुपोषण से मुक्त कराया जा सके, मजे की बात यह है कि हर सरकारें बचपन से लेकर पचपन तक को बेहतर स्वास्थ्य सेवायं देने का वायदा तो करती हैं लेकिन प्रदेश में बच्चे भगवान भरोसे ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं। मध्यप्रदेश के शहडोल में पिछले दिनों निमोनिया से हुई छ: बच्चों की मौत ने स्वास्थ्य विभाग की सेवाओं पर एक बार फिर गंभीर सवाल उठा दिये हैं, मजे की बात यह है कि जब शहडोल में एक के बाद एक बच्चों की मौत हो रही थी तो उस समय कमलनाथ मंत्रीमण्डल के मंत्री कमलेश्वर पटेल भी शहडोल प्रवास पर थे, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बड़े-बड़े विंध्य के नेताओं के धराशायी होने के बाद कमलेश्वर पटेल अपने आपको विंध्य का मुख्यमंत्री मानकर चल रहे हैं और यही वजह है कि विंध्य के हर मामले मेंवह अड़ंगा डालने से वह पीछे नहीं रहते शायद यही वजह है कि शहडोल भी इससे वंचित नहीं है बात शहडोल क्या विंध्य क्षेत्र की पूरी जनता भगवान भरोसे जीवन व्यतीत कर रही है ना तो विंध्य के जिलों में कोई बात हुआ है विकास के नाम पर इस क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण को और बढ़ाने के लिये सीमेंट फैक्ट्रियों की एक के बाद एक स्थापना किये जाने पर सरकार की उत्सुकता दिखाई दे रही है। शहडोल की स्वास्थ्य सेवा क्या अन्य सेवाओं की भी लगभग यही स्थिति है यहां के लोगों के अनुसार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने एक साल से अधिक हो गये हैं लेकिन इस जिले के प्रभारी मंत्री ओमप्रकाश मरकाम ने आज तक जिला योजना समिति की बैठक आयोजित नहीं की है, शहडोल जिले की जनता कलेक्टर की कार्यशैली के भरोसे चल रही है। तभी तो यही स्थिति है कि इस जिले में प्रदूषण की चपेट में तो हैं ही तो बच्चों क्या बूढ़ों की भी स्वास्थ्य सेवा के मामले में यही स्थिति है, शहडोल सहित विंध्य के सभी जिलों की स्थिति भगवान भरोसे है, क्योंकि इस क्षेत्र से एकमात्र मंत्री कमलेश्वर पटेल के होने के चलते इस क्षेत्र का कोई भी नेता यहां अपनी राजनीति नहीं पनपा पा रहा है। यही वजह है कि इन जिलों के नेताओं की रुचि विंध्य के विकास की ओर खत्म हो चुकी है जिसका जीता-जागता परिणाम है शहडोल जिले में तीन दिन पहले निमोनिया से हुई छ: नवजातों की मौत ने स्वास्थ्य सेवाओं पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। प्रदेश में हर महीने १५० बच्चों की सांसे निमोनिया की वजह से थम जाती हैं। पिछले तीन साल में निमोनिया के कारण होने वाली बच्चों की मौत का आंकड़ा ३० फीसदी तक बढ़ गया है। स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली के अनुसार निमोनिया के कारण होने वाली पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में मध्यप्रदेश का नंबर देश में पहला है।यहां तीन साल में साढ़े पांच हजार बच्चों की मौत का कारण निमोनिया रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं में मध्यप्रदेश से पीछे उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्य भी हमसे बेहतर स्थिति में हैं। यूनीसेफ के विश्लेषण को देखें तो निमोनिया से मौत के मामले में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। सरकार इस पूरे मामले की जांच कराएगी। सरका ये जानेगी कि इतनी योजनाओं के बाद भी प्रदेश की स्थिति इस मामले में इतनी बदतर द्यक्यों है। निमोनिया पांच साल से छोटे बच्चों को अपना शिकार बनाती है। स्वास्थ्य सूचना प्रबंधन प्रणाली यानी एचएमआईएस ने अलग-अलग राज्यों में निमोनिया को लेकर एक अध्ययन किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष २०१६-१७ में प्रदेश में निमोनिया के कारण १४९७ बच्चों की मौत हुई। इसके बाद २०१७-१८ में १९०७ और २०१८-१९ में प्रदेश में निमोनिया के कारण १९७७ बच्चों की मौत हुई थी। जबकि इस साल राजस्थान में यह आंकड़ा पिछले साल के मुकाबले १६७६ से कम होकर ११९८ पर पहुंच गया। वहीं, छत्तीसगढ़ में भी आंकड़ा कम होकर ६७६ से ६४६ पर पहुंचा। प्रदेश में निमोनिया के साथ ही मातृ-मृत्युदर और शिशु मृत्युदर में भी अव्वल है।इसका सबसे बड़ा कारण प्रदेश में ७० फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी सामने आई हे। निमोनिया पर नियंत्रण के लिए सरकार ने ‘सांस पहलÓ कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के अलावा सामाजिक जागरुकता पर भी काम किया जा रहा है। नवजात की मृत्युदर में १.२ फीसदी मौत निमोनिया के कारण होती है जिस पर नियंत्रण किया जा सकता है। निमोनिया के निवारण के लिए खसरा, हिमोनफ्लुएंजा और निम्यूकोकल वैक्सीजन पर ईयूआईपी कार्यक्रम पर फोकस किया जा रहा है। छह माह तक बच्चों को संपूर्ण स्तनपान के लिए महिलाओं को जागरुक करने के साथ ही पौष्टिक आहार भी दिया जा रहा है। सांस संक्रमण को रोकने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस संबंध संंबंध में स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट का कहना है कि प्रदेश में डॉक्टरों की कमी है। खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र इससे बहुत ज्यादा प्रभावित हैं। हम लगातार डॉक्टरों की भर्ती कर रहे हैं और विशेषज्ञ डॉक्टरों को गांव में तैनात किया जा रहा है। हम जांच करा रहे हैं कि निमोनिया के मामले में प्रदेश की स्थिति इतनी खराब क्यों है। एक बच्चे की मौत भी दुर्भाग्यजनक है। हम जन जागरुकता के जरिए लोगों को भी हमारे अभियान से जोड़ रहे हैं।
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प्रदेश में हर माह होती है १५० बच्चों की निमोनिया से मौत