पटवारी और आरआई रिश्तेदारों के नाम अवैध कालोनी….. सरकारी जमीन के रकबे नक्शों में हेराफेरी….. भू माफियाओं को भूमि स्वामी हक
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सरकारी जगह नही बची जहां अवैध निर्माण ना किया गया हो ..... बरसों से जमा राजस्व विभाग का अमला
*आनंद ताम्रकार बालाघाट बेखटकेडॉटकॉम* बालाघाट सरकारी जमीन पर किसी असहाय गरीब व्यक्ति द्वारा अगर अपना आशियाना बना लिया जाता है तो उसे सरकारी बुलडोजर से हटाने में कोई कसर नही छोडी जाती लेकिन रसूखदार और प्रभावशाली लोगों द्वारा यदि अवैध निर्माण कर लिया जाता है तो उस पर कोई कार्यवाही ना हो इस लिये हर संभव दबाव बनाकर अवैध निर्माण को जायज बताने की पूरजोर कोशिश की जा रही है।
ऐसी विसंगतियां तहसील मुख्यालय वारासिवनी में हर तरफ देखी जा सकती है।
शहर में ऐसी कोई सरकारी जगह शेष नही बची जहां अवैध निर्माण ना किया गया हो बरसों से जमे राजस्व विभाग के अमले ने भू माफियाओं के साथ मिलकर राजस्व प्रलेखों और नक्शों में सरकारी जमीन के रकबे में हेराफेरी कर भू माफियाओं को भूमि स्वामी हक दरसा दिया गया।
सरकारी नक्शों में जिस स्थान पर चांदा और मुनारे लगाया जाना बताया गया वे उस स्थान से गायब कर दिये गये है ताकि भू माफियाओं के फायदा पहुंचाने के लिये की गई हेराफेरी का पता ना लग सके।
इस बात का खुलासा विगत वर्ष शंकर तालाब में किये गये अतिक्रमण की नापजोख करते समय हुआ प्रचलित नक्शों में शंकर तालाब की सीमाओं का पता नही चल पा रहा था इसकी जांच के लिये भू बंदोबस्त कार्यालय से मूल नक्शा बुलवाया गया और कालेज के समीप लगाये गये चांदा के पत्थर से नापजोख कर शंकर तालाब की सीमाओं को खोजने की प्रक्रिया पूरी की गई फिर भी वास्तविक सीमाओं का पता नही चल पाया।
इन दिनों ईदगाह जो तालाब की सीमा से बाहर दिखाई दे रहा है वह कभी शंकर तालाब की सीमा में स्थित बताया गया है।
भू माफियाओं और राजस्व महकमे की सांठगांठ के चलते बड़ी नहर से निकली माइनर नहर का अस्तित्व ही समाप्त हो गया उस पर मकान बन गये और बने हुये मकानों पर मालिकाना हक भी दस्तावेजों में दर्ज हो गया।
शहर के वार्ड नं.10 के बेरबन में स्थित तालाब गायब हो गया वहीं आमा तालाब की जमीन धीरे धीरे अतिक्रमण कर समाप्त होती जा रही है।
नेहरू चैक के समीप कमलापत की चाल और बलभद्रर मास्टर के मकान के बीच कोई भवन नही था अमराई थी जिसके रास्ते बैल बाजार में आने वाले पषु तालाब जाते थे सड़क से तालाब दिखाई देता था नक्शे में हेराफेरी कर उस जमीन पर मकान बन गये।
अनाज गंज के सामने नहर को पाटकर उस पर दुकानें बन गई। कृषि मंडी की जमीन पर प्रभावी लोगों ने कब्जा कर लिया।
रेस्ट हाउस के बगल से गुजरने वाली नहर का कहीं अतापता नही है।
सरकारी जमीन पर लगी अमराई भी गायब हो गई।
इन हालातों के चलते यदि राजस्व महकमे के मुलाजिम ही सरकारी दस्तावेजों में हेराफेरी कर सरकारी जमीनों को भू माफियाओं के हवाले करने में शामिल हो तो फिर इन पर कौन नकेल कसेगा?
शहर में पटवारी और आरआई अपने रिश्तेदारों के नाम पर अवैध कालोनी बनाकर प्लाट बेचने में सक्रिय है। अधिकारियों को इस बात की जानकारी है लेकिन सबने चुप्पी साध रखी है।