स्वस्थ्य तन से ही शिक्षा ग्राह्य होती है

 


साल की शुरूआत और दूसरा दिन अब तक के सबसे ठंडे दिनों मे से एक था। वहीं मौसम के और बिगडऩे के हालात बन रहे हैं। आसपास के जिलों में भी ठंड को देखते हुए स्कूली बच्चों की छुट्टी घोषित हो गई। लेकिन देर रात तक इंदौर में रहने वाले स्कूली बच्चों के माता-पिता ठंड का सितम और अपने लाल की तबीयत को देखते हुए इसी उधेडबून में थे कि इंदौर में स्कूल की छुट्टी घोषित हुई है या नहीं। लेकिन देर रात तक कमरे और कार में हीटर लगाकर घूमने वाले साहब को ठंड महसूस नहीं हुई थी, इसलिए छुट्टी घोषित नहीं की गई। जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि लगातार बोलते रहे ठंड बढ़ रही है। छुट्टी कर दो, लेकिन रेत में मुंह छुपाने की शुतुरमुर्ग प्रवृत्ति में डूबे साहब को ठंड न तो महसूस हुई न ही ठंड से जुड़ी आवाजें सुनाई दीं। साहब को लगता रहा कि ठंड तो है ही नहीं। अपनी गाड़ी में अकेले घूमने वाले इन साहब को कौन बताए कि स्कूल जाने के लिए बच्चों को सुबह कोहरे से भरे माहौल में भी बस के आने के लिए कम से कम 15 मिनट इंतजार करना होता है। उपर से लगभग एक घंटा सर्द हवाओं के बीच शहर में घूमते रहना पड़ता है। उसके बाद जब स्कूल पहुंचते हैं तो वहां भी प्रार्थना के लिए कम से कम 20 मिनट ग्राउंड में खड़े रहना होता है। उसके बाद बच्चे जब कक्षा में जाते हैं तो वहां पर भी उन्हें बैठने के लिए जो कुर्सी मेज मिलती है वो अधिकांशत: लोहे की होती हैं जो सर्द हवाओं के चलते ठंडी हो जाती हैं। जिस पर घंटों तक बच्चोंको बैठना होता है। मौसम की ठंडक का असर धमनियों में बहने वाले रक्त पर न हो इसके लिए बच्चों के शरीर को अतिरिक्त गरमी बनाना पड़ती है। इससे उनके शरीर के तापमान में होने वाले अंतर से बच्चों के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है। और शरीर विज्ञान, धार्मिक ग्रंथ, सहित सभी किताबों में एक ही बात कही गई है कि स्वस्थ्य शरीर ही सही तरह से शिक्षा को ग्रहण कर सकता है। लेकिन साहबों का ज्ञान तो अतिरेक होता है साहब लोगों को ऐसे समय में लोक कल्याण, नियम कायदे कानून याद आने लगते हैं। लेकिन ये साहब लोग उस समय क्यों चूप हो जाते हैं जब सत्ताधारी नेता उन्हें किसी ऐसे काम के लिए बोलते हैं जो नियम कानून से परे होते हैं और वो उस पर आंखें बंद कर अपनी पोस्टिंग बचाने के लालच में जुट जाते हैं। ये भूल जाते हैं कि बुर्जुग हो या बच्चे किसी के स्वास्थ्य की कीमत के आधार पर नियमों को शिथिल करने का प्रावधान भी है। नेताओं की चापलूसी के लिए अपने इस अधिकार का प्रयोग करने वाले ये अफसर जनता की भलाई के लिए ये क्यों भूल जाते हैं मेरी समझ से परे है। किसी को समझ आए तो बताना जरूर....।
बाकलम- नितेश पाल