बात बेबाक
चंद्र शेखर शर्मा 【पत्रकार 】9425522015
"तेरा क्या होगा कालिया" डायलॉग के साथ हाथ में लटकती बेल्ट और वो भयानक हंसी सही पहचाने शोले वाले गब्बर अंकल की बात कर रहे हैं , जिनका कितने आदमी थे ? वाला सवाल आज भी लोगो के जेहन में गूंजता है । फ़िल्म का एक और डायलाग आज प्रसांगिक हो चला है "जो डर गया, समझो मर गया" । सीएए , एनआरसी , एनपीआर को लेकर यही हालात है , देश का माहौल गर्म है । हवा चलाई जा रही है कि वर्ग विशेष में डर है , वर्ग विशेष में डर कहना गलत होगा डर तो इनकी आड़ में राजनैतिक रोटियां सेंकने वालों के दिलो में है कि ऐसा हो गया तो हमारे वोट बैंक का क्या होगा , फर्जी वोटर कहाँ से लाएंगे । विरोधी दल मोदी और शाह की तुलना शोले के गब्बर सिंह से कर रहे है । फ़िल्म में गब्बर का चरित्र भले ही विलन का हो पर विरोधियों को गब्बर दिख रहे मोदी भारत वासियों के दिलो में हीरो बन गए है ।
सीएए का विरोध क्यों हो रहा समझ से परे है । इसी तरह एनआरसी का विरोध किया जा रहा है जो अभी समय के गर्भ में है और तो और अब एनपीआर (जनगणना) का विरोध भी किया जा रहा है जिसके पीछे सिर्फ राजनीतिक दुकानदारी चलाये रखने का मकसद दिख रहा है । पहले भी जनगणना होती रही है कभी विरोध नही हुआ । विगत 10 सालों में ऐसा क्या हो गया कि अब सीएए , एनआरसी के साथ साथ एनपीआर का भी विरोध हो रहा है । इसका तो एक ही कारण समझ आता है कि इन 10 वर्षों में देश मे अवैध तरीके से घुसे आये रोहिंग्या और बांग्लादेशी जो कुछ पार्टियों के वोटर बैंक बन बैठे है की पहचान हो जाएगी और उन्हें देश से बाहर जाना होगा ।
आज देश भर में बच्चो को दो बूंद जिंदगी का बोल कर पोलियो की दवा पिलाई जा रही है क्यों भाई ताकि उनको अपंगता से बचाया जा सके , फिर देशहित में इस कानून का हम समर्थन क्यों नही कर पा रहे । पोलियो की दवा की तरह सीएए , एनआरसी , एनपीआर भी देश मे घुस चुके अवैध घुस पैठियो को मारने वाली कानून दवा है जिससे नासूर बन चुकी देशद्रोही ताकतों और इनके रहनुमाओं की कमर तोड़ कर देश कों पंगु होने से बचाया जा सकेगा ।
और अंत मे :-
सौ गुना बढ़ जाती है खूबसूरती,
महज़ मुस्कराने से,
फिर भी बाज नही आते लोग,
मुँह फुलाने से ।
#जय_हो 19 जनवरी 2020 कवर्धा【छत्तीसगढ़】
"तेरा क्या होगा कालिया"