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दुनिया भर में भारतीय चलचित्र के योगदान के सम्मान स्वरूप में दिये जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी पुरस्कार [जो कि सामान्यत: आईफा पुरस्कार (IIFA Awards) के नाम से भी जाने जाते हैं,] के मध्यप्रदेश में आयोजन को लेकर उठ रहे विरोध के स्वर स्वाभाविक हैं ,लेकिन मै इस आयोजन के बिलकुल खिलाफ नहीं हूँ।हालांकि न मै एक अच्छा फिल्म दर्शक हूँ और न समीक्षक ।
आइफा का आयोजन कोई 18 साल पुराना है ।इसे भारतीय फिल्मों का नोबुल पुरस्कार भी कहा जा सकता है ।इस समारोह की भव्यता और स्तर वैश्विक है ।बड़ा आयोजन है इसलिए इसमें बजट भी बड़ा होता है बावजूद इसके इस आयोजन के लिए दुनिया में होड़ लगी रहती है ।बीते दो दशक में ये शायद दूसरा अवसर है जब आइफा समारोह भारत में आयोजित किया जाएगा ।मध्य्प्रदेश से पहले महाराष्ट्र को इसके आयोजन का सौभाग्य मिला था ।
आइफा के आयोजन से मध्यप्रदेश को क्या मिलेगा और क्या नहीं ,इस पर विमर्श करने वाले खामखां परेशान हैं ,उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि इस आयोजन का विरोध करते हुए किसानों की कथित दुर्दशा का सहारा लें या खराब सड़कों का । आइफा के आयोजन से यदि कोई फायदा न होता तो शायद ही इंग्लैण्ड,दक्षिण अफ्रीका,सिंगापुर,नीदरलैंड,दुबई,थाईलैंड,चीन,श्रीलंका,कनाडा ,अमरीका , मलेशिया और स्पेन जैसे देश आगे आते । आइफा के आयोजन से आमजन सीधे नहीं जुड़ा होता लेकिन टेलीविजन के जरिये पूरे देश के लोग ऐसे आयोजनों से जुड़े होते हैं ।मैंने भी टीवी पर आइफा के अनेक आयोजन देखे हैं।
मेरे ख्याल से मध्यप्रदेश ने आईफा की मेजबानी हासिल कर एक बड़ा काम किया है जो किसी भी डम्पर घोटाले से बेहतर है ।इस आयोजन के जरिये मुमकिन है कि मध्यप्रदेश को बहुत कुछ मिल सकता है और मुमकिन है कि कुछ भी न मिले ,लेकिन यश और पहचान का मिलना तो बिलकुल तय है ।यानि जितना खर्च होगा उससे ज्यादा तो वसूल हो ही जाएगा ।आइफा पर जितना खर्च हो रहा है उससे ज्यादा खर्च पूर्व की सरकारें ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के आयोजनों पर कर चुकी हैं ,जिनसे प्रदेश को कुछ भी हासिल नहीं हुआ सिवाय 'एमओ यू' के।इन एमओयू के जरिये प्रदेश की तमाम वेशकीमती जमीन रामदेव जैसे व्यापारी हड़प ले गए लेकिन उन्होंने एक पैसे का निवेश मध्यप्रदेश में नहीं किया ।कम से कम आईफा में ऐसे नकली एमओयू तो नहीं कराये जायेंगे ।
जिस आइफा के आयोजन को लेकर मध्यप्रदेश में राजनीति हो रही है उसी आइफा का अगला मेजबान नेपाल जैसा गरीब देश भी है ,जिसकी अर्थव्यवस्था मध्य्प्रदेश से तो बेहतर नहीं है ,लेकिन नेपाल साहस दिखा रहा है क्योंकि उसे उम्मीद है कि आइफा के आयोजन से नेपाल के पर्यटन उद्योग को ताकत मिलेगी ।जब नेपाल इस आयोजन से कोई उम्मीद कर सकता है तो मध्यप्रदेश क्यों नहीं कर सकता ?मध्यप्रदेश से फ़िल्मी दुनिया का रिश्ता नया नहीं है ।
युगों पहले मध्यप्रदेश के बीहड़ फ़िल्मी दुनिया की पहली पसंद हुआ करती थी।बीते दशकों में भोपाल,चंदेरी ,मांडू ,ग्वालियर जैसे शहर फिल्मी दुनिया को आकर्षित कर चुके हैं ,भविष्य में भी ये सिलसिला जारी रह सकता है ,और रहना भी चाहिए क्योंकि मध्य प्रदेश के अनेक प्रतिभाशाली लोग अब फिल्मी दुनिया का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं ।आइफा के आयोजन के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ के प्रयास सराहना के लायक हैं। मै विरोध के लिए उनके इस प्रयास का विरोध नहीं कर सकता ।मुझे लगता है कि घोटाले करने से बेहतर है नए प्रयोग करना और उनके जरिये प्रदेश के लिए अच्छी समभावनाएँ तलाश करना ।पूर्व के मुख्यमंत्रियों ने दोनों काम किये,कमलनाथ केवल एक काम कर रहे हैं ।पूरे प्रदेश को इस आयोजन के लिए अभी से तैयारियों में जुट जाना चाहिए ,क्योंकि इसके प्रतिफल निश्चित ही लाभदायक होंगे ।
मध्यप्रदेश में बीते एक साल में जो कुछ हुआ है वो किसी से छिपा नहीं है ।किसानों के लिए सरकार ने यदि कुछ भी न किया होता तो अभी तक किसान किसी न किसी संघ का झंडा लेकर सड़कों पर होते,किसान ही नहीं समाज के दुसरे वर्ग भी होते जैसे संविदा कर्मचारी हैं,प्राध्यापक हैं ।समस्याओं के रहते हुए किसी आयोजन को न करना कोई समझदारी नहीं है। समस्याएं भी रहेंगी और गतिविधियां भी चलेंगी । मुझे पता है कि इस समय प्रदेश का मीडिया मौजूदा सरकार के आचरण और व्यवहार से बहुत दुखी और नाराज है ,लेकिन ये एक अलग मुद्दा है,इसे आइफा के आयोजन से जोड़कर नहीं देखा जा सकता ।सरकार को मीडिया की समस्याओं का भी निदान करना पडेगा ,अन्यथा जिस मीडिया के सहारे कमलनाथ और उनकी पार्टी सत्ता में आयी है ,ज्यादा टिक नहीं पाएगी ।लेकिन आइफा और मीडिया का गुस्सा अलग है,किसान का गुस्सा अलग है। हम इसे जाहिर करते रहेंगे,सरकार को घेरते रहेंगे ।पर आइफा को भी कामयाब बनाएंगे क्योंकि फिलहाल ये आयोजन मध्यप्रदेश की प्रतिष्ठा से जुड़ा है ।मध्यप्रदेश की प्रतिष्ठा को राजनीति की नजर नहीं लगना चाहिए ।
मुझे लगता है कि आइफा के आयोजन से व्यक्तिगत रूप से मुख्यमत्री कमलनाथ कुछ ज्यादा हासिल नहीं कर पाएंगे,जो हासिल होगा प्रदेश को होगा। मुख्यमंत्री कमलनाथ की अब ऐसी उम्र भी नहीं है कि वे फिल्मजगत में हाथ आजमाएं,वे फिल्मजगत में निवेश भी शायद ही करें क्योंकि उनके पास ऐसा जोखिम लेने का कोई कारण नहीं है ।आइफा उन्हें राजनीतिक रूप से भी कोई ताकत नहीं दे सकता ,इसलिए सभी तरह से आइफा में प्रदेश का हित देखना ही श्रेयस्कर है ।मध्यप्रदेश से भावनात्मक तौर पर जुड़े अभिनेता सलमान खान का इस आयोजन में सहकार करना भी किसी राजनीति का हिस्सा नहीं दिखाई देता ।आप भी राजनीति का चश्मा उतार कर देखें तो आइफा रंगीन नजर आएगा
@ राकेश अचल
आइफा को लेकर फिक्रमंद लोग ********************