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कांग्रेस के युवा तुर्क ,पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकप्रिय नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से बगावत नहीं कर सकते।सिंधिया द्वारा प्रदेश सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने की टिप्पणी भावनात्मक से अधिक कुछ नहीं है,हालांकि उनकी इस टीप से प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ का आहत होकर प्रतिक्रिया देना पार्टी कार्यकर्ताओं को असहज करता है ।सिंधिया को लेकर कांग्रेस में कलह की कल्पना करने वाले लोग खुश हो सकते हैं किन्तु ये खुशी अस्थायी ही साबित होगी ।
मेरी तरह सिंधिया परिवार की तीन पीढ़ियों की राजनीति के चश्मदीद रहे लोग जानते हैं कि सिंधिया परिवार के लोगों में राजहठ की प्रवृत्ति तो है लेकिन बगावत उनमें अपवाद ही है । सिंधिया परिवार की और से राजनीति में पहली बार उतरीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने सातवें दशक में कांग्रेस से बगावत की थी और फिर वे आजन्म कांग्रेस से दूर रहीं लेकिन उनके बाद उनके परिवार का एक भी सदस्य बाग़ी साबित नहीं हुआ,जो जिस राजनितिक दल से जुड़ा उसी से जुड़ा रहा ,यहां तक कि कांग्रेस से निष्कासित किये जाने के बाद निर्दलीय रूप से लोकसभा का चुनाव लड़े माधवराव सिंधिया भी वापस कांग्रेस में लौट गए थे ।
भाजपा में सक्रिय सिंधिया परिवार की बसुंधरा राजे और यशोधरा राजे ने अनेक अवसरों पर अपनी पार्टी के खिलाफ बागी तेवर दिखाए लेकिन कभी बगावत नहीं की और हमेशा पार्टी का अनुशासन माना,यही स्थिति ज्योतिरादित्य सिंधिया की है ।उन्होंने अनेक अवसरों पर पार्टी लाइन से हटकर बयान दिए लेकिन कभी पार्टी से बगावत करने की हिम्मत नहीं की ।हाल ही में उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की अकल्पनीय पराजय के बाद भी अपनी राय जाहिर की लेकिन ये भी बगावत की श्रेणी में नहीं आयी ।मध्यप्रदेश सरकार के खिलाफ उनके जब-तब आने वाले बयान भी उनकी बेचैनी को उजागर करते रहे हैं लेकिन वे पार्टी या मुख्यमंत्री कमलनाथ के प्रति बगावत का संकेत देते हों ये सोचना शायद उचित नहीं है ।
आपको याद हो कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के चक्रव्यूह में फंस कर पराजित हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया विधानसभा चुनाव में पार्टी का अघोषित चेहरा होने के बावजूद अपेक्षित महत्व न मिलने से बेचैन जरूर हैं ।वे अपनी ही सरकार के खिलाफ बोलकर शायद अपनी जनोन्मुखी छवि बनाये रखना चाहते हैं ।अपनी छवि बनाये रखने की यही चिंता पार्टी के नेताओं के लिए परेशानी का कारण बन रही है ।सबको पता है कि सिंधिया न कमलनाथ की तरह तजुर्बेकार हैं और न दिग्विजय सिंह की तरह जमीनी पकड़ वाले नेता,इसलिए इन दोनों के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करना उनके बूते की बात नहीं है हाँ वे गर्मागर्म बयान देकर अपने समर्थकों का उत्साह जरूर बनाये रख सकते हैं ,और वे ऐसा कर रहे हैं ।
प्रदेश की राजनीति में सिंधिया की अनदेखी करना हालांकि आसान काम नहीं है लेकिन दिल्ली में हार के बाद कांग्रेस का नेतृत्व प्रदेश में कोई दबाब बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है ।ऐसे में सिंधिया को ही सम्हलकर चलना होगा ।केंद्रीय नेतृत्व इस समय कमलनाथ के साथ ही खड़ा होगा क्योंकि उसे कमलनाथ की ज्यादा जरूरत है ।कमलनाथ के साथ चलकर सिंधिया भी आपने राजनीतिक हित साध सकते हैं ।आने वाले दिनों में सिंधिया भी इस बात को स्वीकार कर लेंगे इसमें भी कोई संदेह नहीं है ।
सिंधिया और कमलनाथ के बीच कथित तकरार को लेकर विपक्ष फौरी तौर पर सुखानुभूति कर सकता है किन्तु विपक्ष के पास भी हाल फिलहाल कोई बहुत अच्छी स्थिति नहीं है ।भाजपा ने भी अपने प्रदेश अध्यक्ष को मजबूरी में बदला है ।इस बदलाव के पीछे भी अनेक कारण हैं जो पार्टी में असंतोष को दूर करने की कवायद से जुड़े हैं ।ऐसे में कांग्रेस की कलह का कितना लाभ भाजपा को मिलेगा कहा नहीं जा सकता ।इतना जरूर है कि इस तमाम घटनाक्रम के बावजूद प्रदेश में सरकार की स्थिति पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है ।
@ राकेश अचल
बाग़ी तो नहीं हो सकते सिंधिया