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न काहू से बैर- राघवेंद्र सिंह
भोपाल। नया इंडिया।
दिल्ली चुनाव के बाद भाजपा हाईकमान ने मध्यप्रदेश भाजपा की कमान विष्णुदत्त शर्मा (वीडी) को सौंपी है। मैराथन विचारमंथन के बाद वीडी का नाम जनता के लिए भले चौंकाने वाला न हो, लेकिन इस दौड़ में दिलचस्पी रखने वालों के लिए जरूर हैरान करने वाला हो सकता है। कुछ सुखद आश्चर्य में डूबे होंगे तो कुछ नेता सदमे में भी। पार्टी के भीतर और बाहर इस बात की खोज हो रही है कि भाजपा के विष्णुदत्त का चाणक्य कौन है? निर्वाचित नंदकुमार सिंह चौहान के बाद पार्टी ने राकेश सिंह को अध्यक्ष मनोनीत किया था। बाईस महीने के कार्यकाल में वे कार्यसमिति की एक भी बैठक नहीं कर पाए थे। इसी बीच विधानसभा और लोकसभा के चुनाव भी हो गए। राकेश ने नंदूभैया की टीम से ही संगठन का काम चलाया। वीडी के पास बधाई और शुभकामनाओं का तांता लगा होगा। जाहिर है कि सात साल पूर्व विद्यार्थी परिषद से भाजपा में आने वाले इस नेता ने धमाकेदार क्रिकेट खिलाड़ी ऋषभ पंत की भांति जोरदार छक्का लगाया है। बोरे भरकर मिल रही बधाइयों के बीच उनकी राह में बिछे कांटों का भी जिक्र करना जरूरी है। वैसे कहते भी हैं मुहब्बत की तरह सियासत भी आग का दरिया है और उसमें डूबकर जाने जैसी चुनौती वीडी के सामने है।
वीडी की चुनौतियों में दिग्गज नेताओं का सम्मान के साथ समन्वय और हमउम्र नेताओं के हितों का ध्यान रखने वाला एलआईसी टाइप का भरोसा जो जीने के साथ भी और जीने के बाद भी रहता है। इसके अलावा अपने से उम्र में छोटे कार्यकर्ताओं के साथ उनका स्नेह हर दिन बढ़ाने का काम करना पड़ेगा। जाहिर है कि नई कार्यकारिणी के समय पदाधिकारियों का चयन टेड़ी खीर होगा। वरिष्ठों के साथ काम करने में दिक्कत आ सकती है। ऐसे में युवा मोर्चा और विद्यार्थी परिषद से भाजपा में आई खेप में से आदर्श चाल, चरित्र और चेहरों को चुनना पड़ेगा। इसमें भले ही अध्यक्ष के पसीने पर कोई खून न बहाए, मगर खीर बनाने के लिए दूध की जगह एक लोटा पानी मिलाने वाले अवसरवादियों से भी बचना होगा। नए अध्यक्ष की स्वर्णिम भविष्य की कामनाओं के बीच भाजपा नेता का एक किस्सा याद आ रहा है जिसमें मंडल अध्यक्ष को दो साल बाद ही जिला कार्यसमिति में महामंत्री बना दिया गया और फिर उसके दो साल बाद जिलाध्यक्ष। इस पर एक संगठन मंत्री ने खासी नाराजगी जाहिर की थी। उनका कहना था कि प्रतिभावान कार्यकर्ता को हम संगठन की सेवा में जिला स्तर पर 15 साल तक सक्रिय करते, उसके बाद प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपते। मगर महज 6 साल में जिले का अध्यक्ष बनाकर हमने उसका भविष्य चौपट कर दिया। अब 6 साल बाद ही वह नेता प्रदेश पदाधिकारी बनने का दावा करेगा और पार्टी में मेहनती, त्यागी और प्रतिभाशाली नेताओं की इतनी भीड़ है कि उसे पद मिलेगा नहीं और वह कुंठा का शिकार होकर किनारे हो जाएगा। प्रदेश भाजपा में इस समय दिग्गजों का जमावड़ा है। इनमें निवृतमान अध्यक्ष राकेश सिंह से लेकर नंदूभैया, प्रभात झा, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर और सुमित्रा महाजन जैसे बड़े नाम हैं। इन सबके बीच से वीडी को अपना रास्ता बनाना है। सुधि पाठकों को याद होगा कि वरिष्ठ सांसद राकेश सिंह को जब नंदूभैया की जगह प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तब उनकी ताजपोशी करने भाजपा के चाणक्य अमित शाह आए थे। दिल्ली का सीधा आशीर्वाद और भाजपा में लंबा कार्यकाल होने के बाद भी वह प्रदेश कार्यसमिति की एक बैठक भी नहीं कर पाए थे। हालांकि अध्यक्ष कमजोर हो तो संगठन महामंत्री हालात संभाल लेते हैं। मगर संगठन शास्त्र में सुहास भगत भी चुनौतियों के अनुरूप संगठन को संवार नहीं पाए। नतीजा सामने है, बीजेपी विधानसभा चुनाव में जीतते-जीतते हार गई। अब यही चुनौती वीडी के सामने है। हालांकि पार्टी ने एक बार उन्हें चित्रकूट उपचुनाव में प्रत्याशी चयन से लेकर विजयी होने तक का जिम्मा सौंपा था। लेकिन वहां बीजेपी पराजित हो गई। सबसे पहले पार्टी में समन्वय के साथ मंडल स्तर तक अपनी स्वीकार्यता पाना पहाड़ जैसा काम होगा। विद्यार्थी परिषद में रहकर कॉलेज के भावुक और साफ मन के युवाओं के साथ काम करना आसान है। उस तुलना में भाजपा के घुटे-घुटाए घाघ नेताओं के साथ कदमताल करना नए अध्यक्ष के लिए कठिन काम होगा। भाजपा के जिन आग के दरिया से गुजरने के हालात में राकेश सिंह की विदाई हुई और वीडी शर्मा की ताजपोशी हो रही है उस पर मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी एक शेर मौजू है-
"ये इश्क नही आसां बस इतना ही समझ लीजे।
एक आग दरिया है और डूब के जाना है..."
जौरा-आगर उपचुनाव पहली अग्निपरीक्षा...
विष्णुदत्त शर्मा के लिए अध्यक्ष के तौर पर जौरा और आगर विधानसभा उपचुनाव में पार्टी को जिताना पहली अग्निपरीक्षा होगी। यहां खास बात यह है कि जौरा उनके गृह क्षेत्र चंबल में आता है। यहां कांग्रेस के विधायक बनवारीलाल शर्मा के निधन पर सीट खाली हुई है। इसी तरह आगर में भाजपा विधायक मनोहर ऊंटवाल के दिवंगत होने से उपचुनाव होगा। इसके साथ ही निकाय चुनाव में टिकटों का वितरण और नगर निगमों में कब्जा बरकरार रखना आग के दरिया में डूबकर जाने जैसी चुनौती होगी। वीडी के पास नई-नई जिम्मेदारी है। सीएम कमलनाथ ने भी उन्हें बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। हमारी भी शुभेच्छा है, लेकिन भाजपा के दिग्गजों के बीच सरकार को चुनौती देना, संगठन को सक्रिय रखना और पार्टी के भीतर और बाहर आलोचकों से समन्वय और संवाद बनाए रखना युवा तुर्क रहे विष्णुदत्त के लिए आईआईटी परीक्षा में सफलता पाने जैसा मुश्किल होगा। हम पत्रकारिता में जाति और क्षेत्रवाद जैसे मुद्दों पर लिखने से परहेज करते हैं लेकिन वीडी शर्मा को अपनी टीम बनाने में संतुलन और समन्वय का ध्यान रखना होगा। फिलहाल भाजपा में प्रदेश प्रभारी से लेकर नेता प्रतिपक्ष, संगठन महामंत्री, संवाद प्रमुख और खुद अध्यक्ष एक ही वर्ग से आते हैं।
संघ के एक नेता का आशीर्वाद...
भाजपा में वीडी शर्मा उन भाग्यशाली नेताओं में हैं जिन्हें संघ खासतौर से उसके एक नेता का एकतरफा आशीर्वाद प्राप्त है। जब वह विद्यार्थी परिषद से भाजपा में आए तो उन्हें सीधा प्रदेश महामंत्री के पद से नवाजा गया। आमतौर से भाजपा में ऐसे उदाहरण देखने को नहीं मिलते। पार्टी के भीतर इस बात की चर्चा है कि ग्वालियर क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले प्रभात झा के अध्यक्ष बनने में संघ के एक दिग्गज पदाधिकारी के आशीर्वाद ने अहम रोल अदा किया था। मगर इसके पहले झा ने प्रदेश भाजपा में लंबे समय तक संवाद प्रमुख की जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभाई थी। कार्यकर्ता वीडी के चाणक्य का नाम भी खोजने में लगे हैं। हमारे सूत्रों के मुताबिक संघ के बड़े नेता का ताल्लुक मालवा क्षेत्र से बताया जाता है।