डीजीपी वीके सिंह का मामला: सरकार के साथ चलो या चलते बनो






वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की कलम से




मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक वीके सिंह की चला-चली की बेला है ,सरकार के साथ कदमताल न कर पाने के कारण उन्हें समय से पहले जाना पड़ रहा है। अनुभवी होते हुए भी वीके सिंह भूल गए की सरकार के साथ कदम मिलाकर न चल पाने के परिणाम अच्छे नहीं होते ।वीके सिंह 1984 बैच के आईपीएस अफसर हैं ,उन्होंने 30 जनवरी 2019 को ही पुलिस महानिदेशक का पड़ सम्हाला था ,उन्हें पिलपिले समझे जाने वाले ऋषिकुमार शुक्ल के स्थान पर लाया गया था ।
एक परम्परा है कि किसी भी प्रदेश में मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक सरकार की अपनी पसंद का बनाया जाता है ,क्योंकि सरकार से असहमत ये दोनों शीर्ष अधिकारी कहीं भी बर्दाश्त नहीं किये जाते ।सरकार की छवि बनाने और बिगाडऩे का दारोमदार भी इन्हीं दोनों शीर्ष अधिकारियों पर रहता है, इस लिहाज से मध्यप्रदेश के मौजूदा पुलिस महानिदेशक कसौटी पर खरे नहीं उतरे और अब उन्हें बदलने की कवायद तेज हो गयी है ।अनेक ऐसे उदाहरण हैं जब इन शीर्ष पदों पर अफसरों ने अपना कार्यकाल गरिमा के साथ पूरा किया लेकिन अनेक ऐसे भी उदाहरण हैं इन्हें वीके सिंह जैसी गति मिली ।
पुलिस महानिदेशक वीके सिंह से पहले 28 पुलिस महानदेशकों को मैंने काम करते हुए देखा है,1982 से पहले प्रदेश में पुलिस महानिदेशक नहीं पुलिस महानिरीक्षक होते थे ।प्रदेश के 16 पुलिस महानिरीक्षकों में से कोई 4 को भी मैंने काम करते देखा लेकिन वीके सिंह जैसे कम ही हुए ।प्रदेश की पुलिसिंग को नया स्वरूप और पहचान देने वाले पुलिस के मुखिया तो उँगलियों पर गिने जाने लायक ही हुए,जाहिर है कि वीके सिंह उनमने से नहीं हैं ।वीके की प्रदेश की सरकार से शुरू से ही नहीं बनी ।उन्होंने सबसे पहले तो पुलिस कमिश्नर प्रणाली के पुराने मुद्दे को नए सिरे से चर्चा में लाने का दु:साहस किया,फिर बहुचर्चित हनीट्रैप काण्ड में सरकार से विमर्श किये बिना ही एक एसआईटी बना दी और हाल ही में राजगढ़ कलेक्टर निधि निवेदिता के खिलाफ एक पुलिस अफसर को थप्पड़ मारने के मामले में दोषी बताकर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की पहल भी कर डाली ।
जाहिर है कि वीके सिंह ने अपनी समझ से तीनों काम पूरी ईमानदारी से किये होंगे लेकिन सरकार को ये तीनों ही कदम अच्छे नहीं लगे, मुमकिन है कि यदि वीके सिंह इन तीनों मामलों में सरकार से विमर्श कर लेते तो उन्हें इस तरह की परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता ,लेकिन अब तो तीर कमान से बाहर निकल चुका है ,आपको याद होगा कि वीके को कमलनाथ सरकार ने मैथिलीशरण गुप्ता और विवेक जौहरी को किनारे कर डीजीपी बनाया था लेकिन वे एक साल पहले ही रन आउट हो गए,वीके अभी मार्च 2021 तक डीजीपी रह सकते थे लेकिन उन्हें सरकार के साथ चलना ही नहीं आया ।वीके के पास एक दशक मैदानी काम कामकाज के अनुभव के साथ सीईईडी और इंटेलिजेंस में रहने का अनुभव भी था लेकिन इस अनुभव ने उन्हें डीजीपी तो बना दिया पर बाद में सब उलटा-पुल्टा हो गया ।
विसंगति देखिये कि वीके सिंह को डीजीपी बनाने और विवेक जौहरी को रास्ते से हटाने के लिए जिन राजेन्द्रकुमार का इस्तेमाल किया गया था,वे ही राजेन्द्रकुमार अब वीके सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में सरकार की पसंद बताये जा रहे हैं ।राजेन्द्रकुमार अभी एसआईटी के प्रमुख हैं ।कहते हैं कि सरकार ने संघ लोकसेवा आयोग को अपना नया पैनल बनाकर भेज दिया है नए पैनल में भी उन अधिकारीयों के नाम भेजे गए हैं जिनका सेवाकाल 30 साल का हो चुका है और जिनके पास कम से कम छह माह का कार्यकाल शेष है ।आपको याद दिला दें कि कमलनाथ सरकार ने वरिष्ठों के रहते कनिष्ठ रहे वीके सिंह को पुलिस की कमान सौंपी थी ।आज जो वीके के साथ हो रहा है वैसा पूर्व में अनेक अफसरों के साथ हो चुका है इसलिए उन्हें दुखी नहीं होना चाहिए ,ये बात और है कि वे इस अप्रिय स्थिति से खुद को बचा सकते थे,जो वे नहीं कर पाए ।
समय से पहले हटाए जा रहे वीके सिंह के प्रति मेरी निजी सहानुभूति हो सकती है लेकिन इसका कोई महत्व नहीं है क्योंकि अब उनके साथ सरकार की सहानुभूति नहीं है ,सरकार की सहानुभूति और सहमति के बिना किसी का अपने पद पर बने रहना कठिन है। बहरहाल कमलनाथ सरकार को नया पुलिस महानिदेशक चुनने के साथ अगले महीने ही नया मुख्य सचिव भी चुनना है ।मुख्य सचिव मोहंती भी मार्च 2020 में सेवा निवृत्त होने जा रहे हैं ।वे सरकार के साथ कदमताल करने में सफल रहे,मुमकिन है की उन्हें इस कामयाबी के पुरस्कार स्वरूप कोई नयी जिम्मेदारी मिल जाए ।