एक प्रतिशत कमीशन लेकर ई-टेंडरिंग में फर्जी तरीके से बदलते थे राशी 

 







भोपाल। (हिन्द न्यूज सर्विस)। ऑस्मो साल्यूशन आईटी और एंट्रेस सिस्टम लिमिटेड कंपनी मप्र राज्य इलेक्ट्रानिक डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के लिए ई-टेंडर की सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के तौर पर काम कर रही थी। इन्हीं के जरिए प्रदेश के लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन विभाग समेत अन्य विभागों की ऑनलाइन टेंडरिंग प्रक्रिया होती थी। ईओडब्ल्यू की जांच में पता चला है कि इन प्राइवेट कंपनियों के डायरेक्टर जारी टेंडर की एक फीसदी राशि कमीशन के तौर पर ठेकेदारों से लेते थे। इस राशि को लेकर वे टेंडर में शामिल होने वाली अन्य कंपनियों की दर ऑनलाइन देख लेते थे। इसके बाद वे जिस ठेकेदार से सौदा होता था उसके द्वारा जमा किए टेंडर की राशि की अन्य कंपनियों की राशि से कम कर देते थे। इससे उससे ठेका मिल जाता था। इस बात का पर्दाफाश ईओडब्ल्यू की ओर से राजधानी की अदालत में पिछले दिनों पेश किए पूरक चालान से हुआ है। ईओडब्ल्यू ई-पोर्टल के डाटा को परीक्षण के लिए सर्ट-ईन लैब दिल्ली भेजा था। सर्ट-इन ने भी अपनी रिपोर्ट में पुष्टि की है कि टेंडरज मा होने की अंतिम तारीख के बाद इसमें छेड़छाड़ की गई है। दलाली करता था मनीष – ईओडब्ल्यू की ओर से पेश िकए गए चालान के मुताबिक मामले में मनीष खरे नामक व्यक्ति को २८ मई को गिरफ्तार किया था। यह सर्विस कंपनियों के बीच दलाली का काम करता था। उसने पूछताछ में ईओडब्ल्यू को बताया कि सोराठिया वेल्जी रत्ना एंड कंपनी के पार्टनर हरेश वेल्जी से उसने लोक निर्माण विभाग का ठेका दिलाने का सौदा किया था। इसके लिए उसने हरेश से टेंडर राशि का पहले डेढ़ फीसदी कमीशन मांगा था। लेकिन वह देने के लिए तैयार नहीं हुआ। इसके बाद उसने एक फीसदी कमीशन में सौदा कर सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ऑस्माके आईटी सॉल्यूशन के मालिक विनय चौधरी के जरिए ई-टेंडर से छेड़छाड़ कर टेंडर स्वीकृत करा दिया था। इसी तरह उन्होंने जल संसाधन विभाग के टेंडरों में भी छेड़छाड़ की थी। चेक से कमीशन लेकर फंसे आरोपित – सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों से सरोठिया वेल्जी एंड कंपनी के पार्टनर हरेश सोराठिया से अन्य मनीष खरे के जरिए तीन करोड़ तैंतीस लाख रुपए की राशि ई-टेंडरिंग में फर्जीवाड़ा करने के लिए ली थी। पूरे मामले में खास बात यह है कि आरोपित हरेश ने मनीष को कमीशन की राशि चेक के माध्यम से दी थी। हरेश ने मनीष को सात चेक के माध्यम से करीब तीन करोड़ तैंतीस लाख रुपए दिए थे। अभी जांच जारी – ईओडब्ल्यू की जांच के घेरे में अब भी प्रदेश के कई बड़े अधिकारियों से लेकर देश की कई बड़ी निर्माण कंपनियां हैं। जांच के बाद जल्द ही इनके खिलाफ चालान पेश किया जाएगा। ६० हजार करोड़ के घोटाले का रस्तोगी ने किया था पर्दाफाश – तीन हजार करोड़ रुपये से शुरू होकर जांच में ६० हजार करोड़ रुपये तक ई-टेंडरिंग घोटाला पहुंच चुका है। इसका पर्दाफाश २०१८ में मप्र राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम के तत्कालीन एमडी मनीष रस्तोगी ने किया था। रस्तोगी को लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन विभाग, सड़क विकास निगम के नौ ठेकों में फर्जीवाड़े की जानकारी लगी थी। रस्तोगी ने इस संबंध में जांच के लिए तत्कालीन मुख्य सचिव बीपी सिंह को पत्र लिखा था। १८ मार्च २०१८ को इस मामले में ईओडब्ल्यू ने प्राथमिकी जांच दर्ज कर ली थी। लेकिन तत्कालीन भाजपा सरकार में इस मामले की जांच ठंडे बस्ते में डाले रही।