*जानिए,मनुष्य जीवन मे दैवी और आसुरी स्वभाव का कैसे पड़ता हैं प्रभाव-के सी शर्मा*
मनुष्य जीवन में दैवी और आसुरी स्वभाव का प्रभाव किस तरह पड़ता है , इसका वर्णन किया है !
संसार में सृजित प्राणी ( Human being ) दो प्रकार के हैं , दैवी स्वभाव वाले तथा आसुरी स्वभाव वाले !
प्रत्येक व्यक्त्ति के जीवन में सदगुणों रूपी दैवी सेना और दुर्गुणों रूपी आसुरी सेना एक-दूसरे के सामने खड़ी है , जिसका रूपात्मक वर्णन वेद में इंद्र और भात् के रूप में , पुराण में देव और दानव के रूप में किया है !
इस्लाम में अल्लाह और इब्बीस के रूप में किया है !
इस तरह से दैवी और आसुरी प्रकृति हर इंसान में मौजूद है और युद्ध या संघर्ष की बातें जो कि गई हैं इनके बीच के संघर्ष की बात है !
इस प्रकार सबसे पहले आध्यात्मिकता जीवन जीने वाले सुसंस्कृत पुरूष के आदर्श दिव्य गुणों को , इस तरह से भगवान ने स्पष्ट किया है कि व्यक्त्ति अभय बनता जाता अर्थात् उसके जीवन में कोई भय नहीं रहता है !
अंतःकरण की शुद्धि , ज्ञान योग में दृढ़ स्थिति , मानसिक स्थिति , दान , इन्दियों का संयम , यज्ञ , स्वध्याय , तपस्या , सरलता , अहिंसा , सत्यता , क्रोध मुक्त्ति , त्याग , शान्ति , परचिंतन और परदर्शन से मुक्त्ति , सर्व के प्रति दया एवं करूणा भाव , लोभ मुक्त्ति , मृदुता और विनयशीलता , दृढ़ संकल्पधारी , तेज , क्षमा , धैर्य , पवित्रता , ईर्ष्या और सम्मान की अभिलाषा से मुक्त्ति , ये उसके विशेष सदगुण होते हैं और दिव्य गुण होते हैं !
इनसे उसके जीवन में आध्यात्मिकता पनप सकती है ! सुसंस्कृति अर्थात् सभ्यता उसके संस्कारों में आने लगती है ! तो यही उसके सर्व प्रथम लक्षण हैं !
उसके साथ ही आसुरी प्रवृत्ति वाले मनुष्य में कौन-से अवगुण होते हैं या उसके जीवन में कौन से लक्षण दिखाई देते हैं ?
उसको स्पष्ट करते हुए भगवान ने बताया है कि आसुरी प्रवृत्ति वाले मनुष्य के मत में ये संसार मिथ्या , निराधार और ईश्वर रहित है ! जो ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते हैं ! वे यह मानते हैं कि यह संसार कामेच्छा से उत्पन्न होता है !
विषय भोग ही उनके जीवन का परम लक्ष्य है ! ऐसे कभी न तृप्त होने वाली कामनाओं से भरपूर , दम्भी , अभिमानी , क्रोधी , कठोर , अज्ञानी और मद से युक्त्त , अशुभ संक्लप वाले , मोह ग्रस्त , दृष्ट इच्छाओं में प्रवृत्त रहने वाले , मंद बुद्धि , अपकारी , कुकर्मी , मनुष्य केवल संसार का नाश करने के लिए ही उत्पन्न होते हैं ! उनमें न पवित्रता न उचित आचरण और न ही सत्यता पायी जाती है ! ऐसे लोगों में ये लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं !