खुद बदलो बदला तो मत लो ( राकेश अचल )


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भाजपा दिल्ली में हार गयी,ये खबर पुरानी है।नई खबर ये है कि दिल्ली हारते ही केंद्र सरकार ने रसोई गैस के दाम 140  रूपये तक बढ़ा दिए ।सरकार को शायद लगा कि भाजपा केवल महिलाओं कि वजह से चुनाव हारी ।कहते हैं कि सरकार ने अब रेल किराया बढ़ाने की तैयारी कर रही है ।मुमकिन है कि ये सब निर्णय करने का निर्णय पहले से तय हो लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद इनकी घोषणा से लगता है कि सरकार अपने मतदाताओं से बदला ले रही है ।
दरअसल दिल्ली चुनाव के बाद सरकार को अपने आपको बदलना चाहिए था,समीक्षा करना चाहिए थी कि भाजपा किन कारणों की वजह से चुनाव हारी ।भाजपा की हार का विश्लेषण करने के बजाय भाजपा की सरकार मतदाताओं से बदला लेने पर उतर आई है ।एक तरफ सरकार उज्ज्वला योजना के तहत घर-घर रसोई गैस के सिलेण्डर पहुंचा रही है और दूसरी तरफ गैस सिलेंडर की कीमत में अप्रत्याशित वृद्धि कर रसोई का बजट भी बिगाड़ने का पाप कर रही है ।देश में पेट्रोल,डीजल के दामों में घट-बढ़ का नया फार्मूला लागू कर सरकार पहले ही जनता के साथ छद्म करती आ रही है और अब गैस सिलेण्डर में एक साथ 140  रूपये का इजाफा कर सरकार ने जाहिर कर दिया है कि जनता के साथ उसकी कोई सहानुभूति नहीं है ।
सरकार चाहती तो गैस सिलेंडर की कीमतों में इजाफे की घोषणा आम बजट के दौरान भी कर सकती थी किन्तु उसने ऐसा नहीं किया,करती तो फिर बजट को लोक-लुभावन कैसे कहा जाता ?इसी तरह रेल किराये में बढ़ोतरी की तैयारी भी है,इसे बजट में घोषित किया जाना चाहिए लेकिन नहीं किया गया ,अब किसी भी समय रेल किराये बढ़ाये जा सकते हैं ,वैसे भी रेल में क्या चल रहा है किसी को कुछ नहीं पता क्योंकि अब रेल बजट को आम बजट के साथ शामिल कर  इतना छोटा कर दिया गया है कि कुछ अंदाजा ही नहीं लगता ।
मुझे लगता है कि सरकार हर चुनाव हारने के बाद देश की जनता से किसी न किसी तरह बदला जरूर लेती है लेकिन खुद को नहीं बदलती ।
खुद को बदलना आसान भी नहीं होता लेकिन बदला लेना आसान काम है और फिर सियासत में बदला लेना तो और भी आसान काम है ।सरकार की नीतियों से आम आदमी ही नहीं अब तो देश की सबसे बड़ी अदालतें तक आजिज आ चुकी है ।सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा की टेलीकॉम कंपनियों के मामले में कि गयी टिप्पणी इसका ताजा उदाहरण है ।मिश्रा जी ने कहा कि देश में क़ानून नहीं बचा है,पैसे के दम पर हमारे आदेश रोके जा रहे हैं ,इसलिए कोर्ट बंद कर दो,अब देश छोड़ना ही बेहतर है ।मिश्रा जी चूंकि देश की सबसे बड़ी अदालत के न्यायाधीश हैं इसलिए कोई राष्ट्रभक्त मंडली उन्हें देशद्रोही नहीं कह सकती किन्तु उसके पास मिश्रा जो के आक्षेप का कोई जबाब नहीं है और हो भी नहीं सकता ।
जिस देश में आम जनता से लेकर सबसे बड़ी अदालत तक सरकार के रवैये से आजिज हो चुकी हो ,उस देश में हकीकत क्या होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है ।पिछले छह साल में हर क्षेत्र में स्थित बढ़ से बदतर हो चुकी है लेकि लांछन सिर्फ प्राय घुटनों के बल बैठ चुकी कांग्रेस के पचपन साल के शासन को दिया जाता है ।बेहतर हो कि सरकार वक्त जी नजाकत को समझे और इस चौतरफा बढ़ते असंतोष को दूर करने का प्रयास करे,अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब उसे सत्ताच्युत होना पड़ जाये ।भाजपा जिस आक्रामकता के साथ सत्ता में आई थी उसी तेजी के साथ राज्यों में जनता द्वारा खारिज भी की जा रही है ।दिल्ली के बाद बंगाल,बिहार और उत्तर प्रदेश में भाजपा को एक और अवसर है अपने आपको बदलने का,अन्यथा जनता तो सब कुछ बदलना जानती ही है ।
@ राकेश अचल