प्रश्नातीत हो जस्टिसों का जस्टिस  *** राकेश अचल ***


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आज आपको दो समाचारों को मिलाकर एक साथ पढ़ना पडेगा ।ये दोनों समाचार देश के न्यायतंत्र से बास्ता रखतीं हैं। इन दोनों खबरों पर तप्सरा करने से पहले मै ये स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मेरी देश की न्याय व्यवस्था में पूरी आस्था है और मै अपनी बात नर्मल मन से सबके सामने रख रहा हूँ ।पहली खबर है दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायधीश मुरलीधरन का दिल्ली पुलिस को दंगे रोकने में नाकामी के बाद किया गया तबादला और दूसरा समाचार है देश की सबसे बड़ी अदालत के न्यायधीश न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा द्वारा प्रधानमंत्री की प्रशंसा करना ।
देश की जनता का आज भी देश की न्याय व्यवस्था पर अडिग विश्वाश है लेकिन कुछ ऐसी घटनाएं हो जातीं हैं जिससे इस विश्वास को ठेस लगती है। जस्टिस मुरीधरण का तबादला मुमकिन है कि एक सामान्य प्रक्रिया के तहत किया गया हो लेकिन इसे अन्यथा लिया जा रहा है क्योंकि इसकी टाइमिंग सही नहीं है। इधर जस्टिस ने दंगा रोकने में नाकाम पुलिस को फटकारा और उधर उनका तबादला कर दिया गया ।क्या सचमुच जस्टिस के तबादले का उनकी टिप्पणी से कोई वास्ता हो सकता है ?शायद नहीं  और शायद हाँ भी ।सरकार को इस भ्रम से बचना चाहिए ।पूर्व में ऐसी ही स्थितियां अनेक अवसरों पर बनीं हैं और हर सरकार में बनीं हैं ,भाजपा की सरकार कोई अपवाद नहीं है ।
किसी नाकामी के लिए यदि अदालतें किसी वर्दीधारी बल को फटकारें तो ये गंभीर मामला है, सरकार कि इसका संज्ञान लेना चाहिए और कमियों को फौरन दुरुस्त करना चाहिए न कि कोई अलग कार्रवाई करना चाहिए ।दिल्ली के दंगों ने अप्रत्याशित रूप से 27  लोगों की जान ले ली है।ये सचमुच दिल्ली पुलिस की ,केंद्र सरकार की नाकामी है ।जब देश की राजधानी महफूज न हो तो बाक़ी देश की सुरक्षा की हकीकत को समझा जा सकता है ।कोई भी इस जिम्मेदारी से न बच सकता है और न उसे बचना चाहिए ,क्योंकि इससे भविष्य के लिए चिंताएं कभी समाप्त नहीं हो सकतीं ।एक सभ्य समाज में पहले तो दंगे  ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं ऊपर से उन्हें रोक पाने में सरकार की नाकामी उससे  भी कहीं अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है ।
आइये अब दूसरी खबर की तरफ चलते हैं ।पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने एक समारोह में देश के प्रधानमंत्री की मुक्तकंठ से बड़ाई क्या की वे विवादों में फांस गए ।सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने इंटरनेशनल ज्यूडीशियल कांफ्रेस में शीर्ष अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा को लेकर उनके विचारों से असहमति जताई है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने मीडिया में भेजे गए एक बयान में कहा कि शनिवार को इस सम्मेलन में मोदी के बारे में न्यायमूर्ति मिश्रा के बयान का उसने बहुत ही पीड़ा और चिंता के साथ संज्ञान लिया है।
जस्टिस मिश्रा चूंकि हमारे शहर के हैं और बेहद गंभीर न्यायविद हैं इसलिए उन्हें लेकर शुरू हुए विवाद से हमारी भी चिंताएं जुड़ी हैं ।सवाल ये है कि क्या  ऐसा कोई भी बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करके परिलक्षित करता है ?शायद हाँ भी और शायद नहीं भी।हम चाहे जो मानें किन्तु एससीबीए तो यही मानती है। एससीबीए के अध्यक्ष दुष्यंत दवे और इसके दूसरे सदस्यों के हस्ताक्षर वाले बयान में कहा गया है कि एससीबीए उपरोक्त बयान पर अपनी कड़ी असहमति व्यक्त करती है और इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना करती है। एससीबीए का मानना है कि संविधान के अंतर्गत न्यायपालिका की स्वतंत्रता बुनियादी ढांचा है और इस स्वतंत्रता को अक्षरश: संरक्षित करना होगा। 
आपको याद दिला दें कि न्यायमूर्ति मिश्रा ने 22 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूरि भूरि प्रशंसा की थी और उन्हें अंतराष्ट्रीय स्तर का स्वप्नदर्शी बताया था। उन्होने मोदी को बहुमुखी प्रतिभा वाला बताया था जो वैश्विक स्तर का सोचते हैं और स्थानीय स्तर पर काम करते हैं।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने सम्मेलन उद्घाटन कार्यक्रम में धन्यवाद प्रस्ताव पेश करते हुए प्रधानमंत्री और केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद को 1500 पुराने हो चुके कानूनों को खत्म करने के लिए बधाई भी दी थी।जस्टिस मिश्रा का मन इस मामले में चाहे जितना निर्मल रहा हो किन्तु उन्हें ऐसा ब्यान देते समय बचना चाहिए था ,क्योंकि ऐसे बयानों का महत्व तो होता ही है क्योंकि सभी का यह मानना रहा है कि इस तरह की निकटता न्यायाधीशों के निर्णय लेने की प्रक्रिया पर असर डाल सकती है और वाद के नतीजों को लेकर वादियों के मन में संदेह पैदा कर सकती है।भले ही ऐसा होता कभी न हो ।
ऐसीबीए की आपत्ति का निराकरण हम और आप जैसे साधारण लोग नहीं कर सकते,ये काम जस्टिस को ही करना होगा ,वे ऐसा करना जरूरी समझते हैं या नहीं ,ये उनका अपना विवेक है ।देश की न्याय व्यवस्था को निर्विवाद बनाये रखने के लिए इस तरह की स्थितियों से बचा अवश्य जाना चाहिए ।मुझे लगता है कि भविष्य में इस तरह की पुनरावृत्ति नहीं होगी ।
@ राकेश अचल