*सड़को पर प्रजा हवाई सफर पे राजा*

बात बेबाक 
चंद्र शेखर शर्मा 【पत्रकार】9425522015


"मेरे देश की धरती सोना उगले, 
उगले हीरे-मोती, मेरे देश की धरती,"
फिल्म उपकार का यह गीत और 
"'जय जवान जय किसान के नारे'"
अक्सर नेता मंचो से किसान को बरगलाने और घड़ियाली आंसू बहाने गाते जरूर है । किसान सोना उगाता जरूर है पर इस सोने को बेचने में किसानों की रातों की नींद दिन का चैन सब हराम हो जाता है । किसानों का दुर्भाग्य है कि गन्ना बोए तो शुगर फैक्ट्री के रहमोकरम पर नए नए प्रयोगों से परेशान । धान बोए तो सरकारी पाबंदियों वादा खिलाफी से परेशान । आज अन्नदाता के लिए खेती करना घाटे का सौदा साबित हो रहा है । किसानों के नाम पर राजनीति तो खूब होती है। विपक्ष में हो तो उनके साथ खड़े होने का दिखावा कर उनकी मांगों का खूब समर्थन किया जाता हैं। सत्ता पाते ही किसान पराए हो जाते है क्योंकि अब 5 साल तक तो सत्ता सुख से कोई वंचित कर नही सकता ।
        राजनीतिक दल तो चुनाव के पहले किसानों को कर्जमाफी के दावे वादों में उलझा उनकी तकदीर बदल देने , एक एक दाना धान खरीदने , बोनस देने , समर्थन मूल्य बढ़ाने की अंधी दौड़ कुर्सी के लालच में लगाते है । नेता जानते है सत्ता की कुंजी किसानों के हाथ मे है सो उन्हें मोहने साम- दाम ,दंड-भेद सब जायज है । सत्ता की चाबी मिली नही की दावो और वादों के क्रियान्वयन में नियमो का तड़का जरूर लगाया जाता है जो बताता है कि उनके चुनावी घोषणा पत्र में अघोषित बारीक छोटे अपठनीय शब्दो मे लिखे गए नियम शर्ते लागू थी पर किसान पढ़ नही पाए । अफसोसजनक है कि सभी राजनीतिक दल एक ही थैले के चट्ठे-बट्टे है और उनके नेतागण बिन पेंदी के लोटा कब किधर लुढ़क जाय पता नही । वर्तमान राजनीति आदर्शहीन हो जुमलेबाजो और लबरो की राजनीति हो गई है। राजनीति में पैसा और बाहुबल है तो पैराशूट लैंडिंग करो और बन जाओ नेता ।
        100 टका सच तो यह है ही कि मुफ्त का माल जल्दी पचता नही है कर्जमाफी से लाभान्वित व खुश किसान को धान की बिक्री ने रुला दिया है ।चुनाव से पहले नेता अपने भगवान रूपी मतदाताओं को रिझाने खूब माल-पानी बांटते हैं। फिर पांच साल तक ब्याज समेत वसूली चालू , सत्ता की कुर्सियों पर विराजमान लोग उन्हें बैठाने वालों को ही भूल जाते हैं और किये वादों के बीच नियम कायदों की बाड़ लगा दी जाती है तो कमेटी कमेटी का खेल भी बड़े शौक से खेला जाता है । कमेटियां बनती भी है पर परिणाम आते आते फिर वादों और दावों के गाने और कुर्सी दौड़ का समय आ जाता है । 
      अब कोई ऐसा नेता या राजनीतिक दल नहीं दिखता जिसने लोगों से वादाखिलाफी न की हो। जनता के अरमानों, उम्मीदों पर पानी न फेरा हो। आमजन को ठगा-लूटा न हो , राजनीति में इंदिरा , अटल , मोरारजी , चंद्रशेखर के दिन लद गए या कहें बिसरा दिए गए । 
और अंत में :-
क्यूं  धकेलता है हमें बार बार , शांत  पड़ा  रहने दे ,  
बहुत  तबाही  मचातें हैं  पहाड़  जब  खिसकतें हैं ।
#जय_हो 22 फरवरी 2020 कवर्धा 【छत्तीसगढ़】