शाहीन बाग़ वालों को रिकार्ड तो नहीं बनाना 


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नागरिकता संशोधन क़ानून ,एनआरसी और अन्य मुद्दों को लेकर दिल्ली के शाहीन बाग़ में आंदोलनरत दिल्ली के लोगों के साथ देश की एक बड़ी आबादी  का समर्थन रहा है।दिल्ली विधानसभा का चुनाव परिणाम भी एक तरह से शाहीन बाग़ के समर्थन   का प्रतीक ही नजर आरहा  है इसलिए अब शाहीन बाग़ को अब आंदोलन के दूसरे स्वरूप के बारे में सोचते हुए सड़क खाली कर देना चाहिए ।
शाहीन बाग़ के आंदोलन को दिल्ली विधानसभा चुनाव  में मुद्दा बनाने वाली भाजपा की केंद्र सरकार के गृहमंत्री श्री अमित शाह ने तो पहले ही वहां न जाने का फैसला कर लिया था ,साथ ही आप पार्टी ने भी शाहीन बाग़ से एक सम्मानजनक दूरी बनाये रखी ।कांग्रेस के बारे में तो कहना ही क्या ।अब शाहीन बाग़ के मुद्दे देश की सबसे बड़ी अदालत तक भी पहुँच गए हैं और कोर्ट ने ही शाहीन बाग़ के लिए अपने वार्ताकार भी मौके पर भेजे हैं,मेरे ख्याल से अब आंदोलनकारियों को सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान करते हुए सड़क खाली कर देना चाहिए ।
वार्ताकार साधना  रामचंद्रन ने कहा कि हम चाहते हैं रास्ता भी खुले और आंदोलन भी चलता रहे। अगर बात नहीं बनी तो मामला फिर सुप्रीम कोर्ट जाएगा।वार्ताकार साधना रामचंद्रन ने ठीक ही कहा है कि। आप लोगों के जो मुद्दे हैं वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे चुके हैं। आपके सवाल सुप्रीम कोर्ट के सामने हैं। सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन क़ानून  पर सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट मानता है कि आंदोलन आपका हक है। शाहीन बाग है और शाहीन बाग बरकरार रहेगा।वार्ताकार संजय हेगड़े ने भी सही कहा कि प्रदर्शन से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। हम चाहते हैं कि शाहीन बाग का प्रदर्शन देश के लिए मिसाल हो। जब तक सुप्रीम कोर्ट है आपकी बात सुनी जाएगी।
शाहीन बाग़ आंदोलन को दो माह से अधिक का समय हो चुका है ।यहां बैठे लोगों के धैर्य की सराहना की जाना चाहिए किन्तु अब सही समय है जब आंदोलनकारी सड़क छोड़कर आंदोलन का कोई दूसरा रास्ता अपनाये, जनता को तकलीफ देकर कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इस आंदोलन का सबसे बड़ा हासिल यही है कि देश का एक बड़ा जनमानस इस आंदोलन के साथ खड़ा रहा और इस आंदोलन ने सियासत के दम्भ को चकनाचूर कर दिखाया ।आंदोलन कार्यों को मान लेना चाहिए कि सरकार इस मुद्दे पर सचमुच एक इंच पीछे नहीं हटेगी ,क्योंकि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी बनारस में गृह मंत्री के इस बयां की पिष्टी कर चुके हैं कि नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर सरकार इंच भर पीछे नहीं हटेगी ।
विवादित मुद्दों पर अब सरकार को अदालत में या फिर होने वाले विभिन्न चुनावों में वोट के जरिये ही हराया जा सकता है ।ख़ास तौर पर जब मुकबला राज हठ से हो तो उसे जन हाथ से नहीं मताधिकार की ताकत से ही शिकस्त दी जा सकती है ।दिल्ली में हारी आज की सरकारी पार्टी इस समय भीतर से बहुत घायल और अशक्त है ,यदि उसने अपनी हाथ कायम राखी तो यकीन मानिये कि देश के दूसरे राज्य भी उसे उसी तरह खारिज करते जायेंगे जैसे कि हाल ही में दिल्ली में किये गए हैं ।हमें उम्मीद है कि शाहीन बाग़ वक्त की नजाकत को समझेगा और सुप्रीम कोर्ट के वार्ताकारों की बात मानकर अपने आंदोलन के मौजूदा स्वरूप को बदलने के लिए राजी हो जाएगा,क्योंकि आंदोलन का मकसद कोई गिनीज रिकार्ड बनाना नहीं बल्कि जनता की आवाज को बुलंद करना है ।
@ राकेश अचल