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भारत में कोई भी भूत हो ज्यादा दिन सिर चढ़कर नहीं बोलता,उसे एक न एक दिन सिर से उतरना ही पड़ता है,क्योंकि दूसरा भूत कतार में होता है ।मिसाल के तौर पर मध्यप्रदेश सरकार के सिर पर चढ़ा माफिया का भूत आखिरकार कर उतर चुका है ।सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण और अवैध तरीके से कमाई गयी सम्पत्ति को जमींदोज करने के लिए सड़कों पर उतरे भीमकाय यंत्र वापस अपने-अपने ठिकानों पर लौट गए हैं ।पहली खेप में जो माफिया नपने थे,वे नप गए शेष को अभयदान मिल गया ।मिलना ही था, क्योंकि देशी राजनीति में कोई स्थाई दुश्मन या दोस्त नहीं होता ।
सरकार के सिर पर माफिया के स्थान पर 'आईफा' का भूत सवार हो गया है ।'आइफा' के भूत का ग्लैमर माफिया से कहीं ज्यादा है ,इसमें सलमान खान है ,जैकलीन हैं ।'आइफा' के भूत के कारण बाक़ी के सारे भूत फिलहाल सहमे हुए हैं ,मिलावट के खिलाफ एक युद्ध शुरू हुआ था ,वो भी एक भूत जैसा ही था लेकिन अब उसका अता-पता नहीं है ।प्रशासन बैठकों में उलझा हुआ है और नेता स्थानीय निकायों के चुनावों की तैयारी में उलझ चुके हैं,उनके सिर पर चुनाव का भूत सवार है ।सरकार के 'आइफा' में उलझते ही बाक़ी के सारे माफिया दोबारा से अपने-अपने काम में लग गए हैं ।प्रशासन के ऊपर से शासन का दबाब भी खत्म हो गया है ।यानि जो जैसा था,सो वैसा हो गया है। सारे माफिया अब सुकून की सांस लेने लगे हैं और मन ही मन सलमान तथा जैकलीन का शुक्रिया भी अदा कर रहे हैं ।
भोपाल में सरकारी मशीनरी बजट के भूत के कारण परेशान है। केंद्र ने अपने बजट में प्रदेश का बजट काटकर एक नयी समस्या खड़ी कर दी है,अब प्रदेश सरकार को केंद्र के कारण हुए घाटे की भरपाई के लिए इंतजाम करना पडेगा,इसके लिए कौन सा भूत काम आएगा,इसकी खोज की जा रही है ।कहने का आशय ये है कि बिना भूतों के न सरकार का काम चलता है और न सियासत का ।सबको भूत चाहिए और एक से बढ़कर एक भूत चाहिए ।
अब देखिये न शाहीनबाग का भूत केंद्र सरकार के सिर से नहीं उतर रहा,उसे उतारने के लिए प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री समेत पूरी कैबिनेट ही नहीं अपितु पूरी पार्टी खुद भूत बनकर दिल्ली में कसबल लगा रही है ।यानी दिल्ली नाक का सवाल बनी हुई है ।सरकार यदि इतना जोर देश की जनता का दिल जीतने के लिए लगाती तो दिल्ली जीतने में कोई दिक्क्त ही नहीं होती ।देश जीतते समय लोग दिल्ली जीतना भूल गए थे ,सो अब दिल्ली पर पूरा फोकस है ।दिल्ली के बिना देश की सत्ता अधूरी जो है ।
जनता के सिर पर इन दिनों बजट में कर छूट का भूत सवार है। जनता समझ ही नहीं पा रही कि उसे किस स्लैब में जाना चाहिए।नए में या पुराने में ? सरकार चाहती है कि जनता उलझी रहे ,उलझी हुई जनता सरकार के काम पर ध्यान नहीं दे पाती ।वैसे भी सरकार काम क्या करती है ,ये किसी को पता नहीं होता सिवाय सरकार के ।फिलहाल मेरे सिर पर कोई भूत नहीं है क्योंकि मैंने प्रेत बाधाओं से निबटने के लिए किताबें पढ़ने का काम चालू कर दिया है। देशद्रोह और देशभक्ति का अध्याय फिलहाल मेरे एजेंडे से बाहर है। इसे सरकार ने अपने एजेंडे में शामिल कर लिया है ।आप भी अपने सिर पर चढ़े भूतों को कुछ समय के लिए विदा कर दीजिये अन्यथा ये आपको कहीं का नहीं रहने देंगे ।
@ राकेश अचल