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यकीनन देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई पर लिखने की मेरी हैसियत नहीं है लेकिन सिर्फ इसी वजह से मै लिखने से बाज नहीं सकता ।मुझे लिखने की बीमारी है इसलिए रंजन साहब पर लिखने से अपने आपको रोक नहीं पा रहा ।मेरा रंजन साहब से एक ही सवाल है कि-'आप आखरी वक्त में मुसलमान क्यों हो गए ?
जस्टिस गोगोई सेवा निवृत्ति के बाद सरकार से उपकृत होने वाले कोई पहले पूर्व न्यायाधीश नहीं हैं, उनसे पहले कांग्रेस के राज में भी अनेक नाम-चीन्ह न्यायविदों को सरकार की और से उपकृत किया गया ।लोग कहते हैं कि चूंकि कांग्रेस ने ऐसा किया था इसलिए भाजपा को भी वैसा ही करने का हल है इसलिए राजन साहब को राजयसभा के लिए नामजद करने के मुद्दे पर प्रश्न नहीं किये जाना चाहिए ।एक तरह से ये सही तर्क है लेकिन दूसरी तरह से ये बकवास है।क्योंकि जो पापकर्म अतीत में हुए उन्हें वर्तमान में भी दोहराये जाने की छूट नहीं दी जा सकती ।
रंजन साहब के एक न्यायविद के नाते इस देश पर अनेक उपकार हैं। उन्होंने देश के न्यायिक इतिहास में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ पहली बार सार्वजनिक रूप से प्रेस कांफ्रेंस करने का दुःसाहस किया ।उन्होंने मौजूदा सरकार के लाभ वाले अनेक विवादोनो को बड़ी ही हिकमत अमली से सुलझाया ,इसमें राम मंदिर विवाद भी शामिल है ।इसके बदले में देश ने आपकी स्तुति भी की ,लेकिन आपने सेवानिवृत्त होने के तत्काल बाद सरकार से उपकृत होकर सब करे-कराये पर पानी फेर लिया ।मुझे यकीन है कि आप राज्य सभा की सदस्य्ता लेने के फौरन बाद इस बारे में अपनी अकाट्य दलीलें देश के सामने रखेंगे लेकिन इनसे देश की जनता का देश की न्याय व्यवस्था के प्रति जो विश्वाश खंडित हुआ है उसकी भरपाई तो किसी सूरत में नहीं की जा सकेगी ।
मुझे लगता है कि देश में पूर्व न्यायाधीश के पद से सेवा निवृत्त ज्यायाधीशों का इस्तेमाल केवल देश की न्यायव्यवस्था को परिष्कृत करने के लिए किया जाना चाहिए।उन्हें उपकृत करने के लिए दूसरे लाभ के पद नहीं दिए जाना चाहिए ।देश का मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद कोई दूसरा पद ऐसा बचता ही नहीं है जो उन्हें दिया जा सके। आप किसी पूर्व मुख्य न्यायाधीश को उसके सद्कर्मों के लिए पदम् सम्मान से लेकर भारत रत्न जैसा सर्वोच्च सम्मान दे सकते हैं लेकिन और कुछ नहीं ।आज जब लोकतंत्र खतरे में है,सामविधान खतरे में है ,सब कुछ अविष्वसनीयय होता जा रहा है तब देश की न्यायव्यवस्था की सुचिता को कायम रखा जाना बहुत आवश्यक है ।रंजन साहब की नामजदगी से ये सुचिता दूषित हुई है ।
रंजन साहब की नामजदगी पर अकेला मै सवाल नहीं उठा रहा ,उनके साथियों ने और देश के अनेक स्थापित न्यायविदों,अभिभाषकों ने भी सवाल उठाये हैं,इससे लगता है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ हुई है और इसे अतीत की गड़बड़ियों को ढाल बनाकर ओझल नहीं किया जा सकता ।गड़बड़ी को परिष्कृत करने के लिए सरकार को अपना निर्णय बदलना चाहिए ,पर सब जानते हैं कि ऐसा होगा नहीं,क्योंकि दुनिया जानती है कि देश में इस समय एक ऐसी सरकार है जो सबका विकास और सबका साथ चाहती है लेकिन अपने तरीके से ।
जस्टिस रंजन साहब को राज्य सभा भेजने में किसी को कोई आपत्ति न होती यदि सरकार 'कूलिंग टाइम ' का ख्याल रखती ,अर्थात दो-तीन साल रुक कर ये काम करती लेकिन ये सब इतनी जल्दी में हुआ है कि किसी को भी हजम नहीं हो रहा ।मुश्किल ये है कि देश में न्यायिक और सैन्य सेवा से सेवानिवृत्त होने वाले शीर्ष अधिकारीयों को सार्वजनिक जीवन में सक्रिय होने के लिए कोई कूलिंग टाइम निर्धारित नहीं है ।जजों और सेना के शीर्ष अधिकारियों को जबसे सत्ता में भागीदारी करने का चस्का लगा है तब से अनर्थ ही हो रहा है ।
आप थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो पाएंगे कि सत्ता से कुछ पाने की आस में देश के शीर्षत जज भी अब प्रधानमंत्री के कसीदे पढ़ने और गढ़ने लगे हैं ,उन्हें किसी की चिंता नहीं है। नैतिकता का तो कोई सवाल ही नहीं ।हालांकि इस कसीदाकारी का खुलेआम विरोध हुआ लेकिन इससे क्या होता है।जिसे जो काम करना था ,वो तो हो ही गया ।मै फिर कहता हूँ कि आज जब चौतरफा विशाव्स का स्नाक्त है तब भी देश की न्याय व्यवस्था में देश की जनता का भरोसा बना हुआ है ।सरकार की कतिपय गतिविधियां इस विश्वास पर भी प्रहार करने से पीछे नहीं रहना चाहतीं ।
राज्य सभा में रंजन साहब जैसे विद्वान आएं इसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं हो सकता,क्योंकि ये सभा है ही विद्वानों के लिए है लेकिन विद्वानों को कब और कैसे इस सदन का सदस्य बनाया जाये इसकी प्रक्रिया तो निर्दोष होना ही चाहिए ।राज्य सभा में घामडों की नामजदगी से बेहतर है कि रंजन गोगोई जैसे उद्भट लोग ही आएं किन्तु इसके लिए सब्र की जरूरत है ताकि किसी को ये न लगे कि नामजदगी कोई प्रलोभन है ।बेहतर हो कि गोगोई साहब राज्य सभा की सदस्य्ता को ठुकरा दें ,लेकिन मुझे लगता है कि रंजन साहब ये सब कर नहीं पाएंगे क्योंकि ऐसा करना आसान नहीं है ,उनकी जगह शायद कोई दूसरा भी होता तो शायद ये त्याग न कर पाता।
गोगोई साहब पर अपनी सहकर्मी से यौन शोषण करने का आरोप लगा लेकिन अदालत ने उन्हें देशमुक्त कर दिया ।इस आरोप के बाद भी उनके कामकाज को लेकर कोई ऊँगली नहीं उठी क्योंकि वे एक ईमानदार जज माने जाते रहे,उनके पास अपनी कोई कार नहीं थी,हालानिक उनके पिता केशव गोगोई असम के मुख्यमंत्री रह चुके थे ।उन्होंने अपनी सपमप्त्ति का सार्वजनिक ऐलान किया था ।बहरहाल 65 साल के रंजन साहब आज एक देश के सर्वाधिक विवादित हीरो हैं और तब तक रहेंगे जबतक कि वे अपनी भूल सुधार नहीं कर लेते ।वैसे इस उम्र में विवादास्पद होने का अपना सुख भी है ।
@ राकेश अचल
आखरी वक्त में क्यों आप मुसलमान हुए ? *******राकेश अचल ********