***राकेश अचल ****
पूरी दुनिया भयाक्रांत है। मौत का अनजाना प्रेत समूची मानवता का पीछा कर रहा है।चौतरफा हा-हा कार है। जन-जीवन को लकवा मार चुका है। महाबली अमरीका हो या सबसे छोटा देश नौरू ,सबकी हालत एक जैसी है ।सब मौत से पीछ छुड़ाना चाहते हैं ,लेकिन उपाय किसी के पास नहीं है,सिवाय एहतियात के ।
चीन से विश्व भ्रमण पर निकले एक विष्णु 'कोरोना ' को लेकर पूरी दुनिया की नींद उड़ी हुई है।जगह-जगह नहीं बल्कि देश-देश में 'लकडाउन'घोषित कर दिए गए हैं ।हँसते-खेलते घर कैदखानों में तब्दील हो चुके हैं ।लोग फिलहाल घर से काम कर रहे हैं लेकिन दुनिया में सारे काम ऐसे नहीं हैं जो घर से किये जा सकें ,इसलिए जो काम घर के बाहर के हैं वे 'जान हथेली पर रखकर 'किये जा रहे हैं ताकि भयाक्रांत दुनियां जैसे-तैसे जीवित रह सके ।
हथियारों की होड़ में लगी दुनिया के सारे आविष्कार असफल हो चुके हैं। सारी दुनिया निहत्थी नजर आ रही है ।दुनिया को बचने वाला भगवान भी अंतर्ध्यान हो गया है ।सब एक दुसरे को कातर निगाहों से देख रहे हैं ।कोरोना से कौन बचेगा और कौन नहीं,कोई नहीं जानता ।ज्ञान-विज्ञान,घोरी,अघोरी सबके सब नाकाम हो चुके हैं ,निश्चिन्त सिर्फ वे हैं जो मनुष्य नहीं हैं। पशु-पंछियों ,सरीपहाड़ निश्चिन्त हैं,नदियाँ बेफिक्र हैं,समंदर को कोई चिंता नहीं है -सर्पों को,वनस्पतियों को कोरोना का कोई भय नहीं है ।वे स्थिर हैं,मस्त हैं ,सक्रिय हैं ।डरे हए तो हम बिना दम के लोग हैं जो अब तक सब जगह अतिक्रमण करते आये हैं ।हवाएं अपनी रफ्तार से चल रहीं हैं,ठहरा है तो सिर्फ मनुष्यों का जीवन ।
मौत के भी से विश्व गुरु भारत भी रविवार को छुट्टी पर रहेगा, न रेल चलगी न बस,न हवाई जहाज चलेंगे न टमटम ।सब कुछ ठहर सा जाएगा ।विज्ञान की नाकामी में एक जुगाड़ है जो कोरोना को रोकने का असफल प्रयास कर रही है ।कामयाब रही तो ठीक और न रही तो भी ठीक ,क्योंकि दूसरा की उपाय भी तो नहीं है ।कोरोना अगर हमला कार दे तो हमरे पास क्या पूरी दुनिया के पास न समुचित अस्पताल हैं न चिकित्स्क और नस्वास्थ्य कर्मचारी ।भगवान भी नहीं जानता की क्या होगा ,इसलिए एहतियात बरतिए और आगे बढिये ,अंतत: जीतेगी मानवता ही ।मनुष्य ने अभी तक तो हार नहीं मानी ।आगे भी शायद ही हार माने ।
कोरोना मरेगा लेकिन तालियां और थालियां पीटने से नहीं ।कोरोना को जुगत से मारना पडेगा ।जुगत यही है की उसका संक्रमण रोकिये ,बिना डर के रोकिये ।घर में कैद होकर आखिर कितने दिन बैठा जाएगा ? दो-चार दिन की बात हो तो कोई बात नहीं ।बात आगे की भी है ।हर काम तो 'ऑनलाइन 'होने वाला नहीं है ।सब कुछ स्थगित करने से बेहतर है की हम अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करें ,सिर्फ अस्पतालों में ही नहीं गली-मुहल्लों की आंगनबाड़ियों तक हमें दवा-दारू का इंतजाम कर कोरोना से लड़ना पडेगा ।इस लड़ाई में अंतत:हमारा ज्ञान-विज्ञान ही काम आएगा ।
कोरोना से मरने की आशंका से परेशान लोग भूल जाते हैं कि अकेले हमारे देश में सालाना खराब सड़कें डेढ़ लाख लोगों की मौत का कारण बनती हैं ,सीमा पर बिना युद्ध के छुटपुट मुठभेड़ों में सालाना एक हजार से ज्यादा शहीद होते हैं ।इन मौतों को टाला जा सकता है लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाते।ये तर्क हैं,कुतर्क नहीं ।इनके जरिये ये समझना होगा कि कोरोना से जंग में सजगता ही एक मात्र कारगर अस्त्र है ।इसमें कोताही से बचना चाहिए ।मौत राजनीति का मुद्दा होती है लेकिन चुनाव के समय,सामान्य दिनों में अयाचित मौत एक समस्या है ।इसका निदान भी अराजनीतिक स्तर पर होना चाहिए ।
आज की तारीख में हम सब केवल प्रार्थना कर सकते हैं। कहते हैं कि प्रार्थना में अद्भुद शक्ति होती है ।इसलिए एहतियात के साथ आइये रविवार को पूरे दिन हम प्रार्थना करने कि दुनिया इस कोरोना से जीते और आगे बढ़े ,निर्भय होकर आगे बढ़े ।समूची मानवता को कोई कोई विषाणु नष्ट नहीं कर सकता ।अभी तक तो नहीं कर पाया ,आगे भी शायद ऐसा कभी हो।
भयाक्रांत दुनिया में हांफती मानवता