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किसी चमत्कार के होने की उम्मीद अब कम ही है,इसलिए कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश से कमलनाथ की सरकार आज शाम से पहले अतीत का हिस्सा बन जाएगी,जनादेश से बनी इस सरकार को सत्ता की भूख और भितरघात का शिकार होना पड़ा है दलबदल के कोरोना वायरस से भारत में ये पहली मौत होगी ।
देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देश पर आज मध्यप्रदेश विधानसभा में बहुमत का फरसिया इम्तिहान [फ्लोर टेस्ट]होगा ।आंकड़े कहते हैं कि कमलनाथ सरकार को जाना ही होगा लेकिन कांग्रेस के इस मंजे खिलाड़ी की बंद मुठ्ठी कहती है कि जाते-जाते भी कुछ ऐसा किया जाएगा कि दधि की हांडी फ़ैल जाये और सत्ता की भूखी भाजपा के हाथ कुछ भी न लगे ।फ्लोर टेस्ट के बजाय यदि अविश्वास प्रस्ताव आता तो मुमकिन है कि कमलनाथ अपनी सरकार बचा ले जाते लेकिन भीतरघात के कारण जो स्थितियां बनीं हैं उन्हें सम्हालना अब शायद उनके बूते की बात नहीं रही ।पंद्रह साल की भाजपा सरकारों से मुक्ति पाई प्रदेश की जनता अपने ही नायक के अचानक खलनायक बन जाने से असहाय अवस्था में खड़ी है।
प्रदेश में जिस चमकते चेहरे के कारण भाजपा 15 साल बाद सत्ता से हटी थी आज उसी चमकते चेहरे के कारण उसे बिना किस मेहनत के सत्ता के नजदीक आने का अवसर मिलता दिखाई दे रहा है। भाजपा दोबारा सत्तारूढ़ हो या न हो इससे प्रदेश की सेहत पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला लेकिन प्रदेश और देश की राजनीति का एक संभावनाशील नायक हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में खलनायक की तरह दर्ज अवश्य हो रहा है ।अर्थात कांग्रेस के बागी ज्योतिरादित्य सिंधिया यदि आगे न आते तो भाजपा कभी भी कमलनाथ सरकार को अपदस्थ करने में कामयाब न हो पाती ,पर विधि का विधान कौन बदल सकता है ,शायद सिंधिया के लिए ये भूमिका उनके जन्म से पहले ही निर्धारित कर दी गयी हो ।
प्रदेश की जनता का दुर्भाग्य ये है कि उसे लम्बे इन्तजार के बाद भी मनमाफिक सरकार नहीं मिल पा रही है ।कमलनाथ की सरकार ने प्रदेश की जनता का स्वाद अवश्य बदला था किन्तु वे सत्ता सुख में सबकी भागीदारी करने में शायद भूल कर गए ।मुमकिन है कि सिंध्या और उनके बीच जो पीढ़ीगत फासला था वो इस दुर्भाग्य का जनक बना हो लेकिन अब सियापा करने का कोई लाभ नहीं ।मुझे लगता है कि अब प्रदेश को निरंतर अस्थिरता का सामना करना पडेगा ।या तो प्रदेश में मध्यावधि चुनाव होंगे या हर एक -डेढ़ साल में मुख्य्मंत्री बदले जायेंगे ,भाजपा में मुख्यमंत्री बदलने की परम्परा कांग्रेस से भी पुरानी है ।
आम जनता की तरह हम जैसे लोग भी प्रदेश में हो रहे सियासी नाटक को रोकने में अपनी कोई भूमिका नहीं देखते। हमें तो हर आने-जाने वाले के लिए शुभकामनाएं पेश करना है क्योंकि हम जनता के साथ हैं और चाहते हैं कि प्रदेश की सत्ता पर जो भी काबिज हो ,जनता की बेहतर सेवा करे ।हमारी भूमिका तो निंदक की है सो रहेगी ही ,उसमें कोई तब्दीली आने वाली नहीं है ।
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के लिए भितरघात का फार्मूला जब पहली बार इस्तेमाल किया गया था तब हम पत्रकार नहीं थे,हमने उस दौर को देखा और समझा भी नहीं,किन्तु आज जब हम चौथेपन में प्रवेश कर रहे हैं तब अपनी आँखों से सियासत का ये विद्रूप चेहरा भी देख रहे हैं ।बीते पचास साल में मध्यप्रदेश दल-बदल के कोरोना वायरस से सुरक्षित था किन्तु अंतत:इसे भी शिकार होना ही पड़ा और इसका श्रेय कहिये या ठीकरा उसी सिंधिया घराने के सर पर है जो पहले दल-बदल के लिए इतिहास में दर्ज है ।
बीते सत्तर साल से राजनीति में सक्रिय सिंधिया घराने के सदस्यों ने घाट-घाट का पानी पीया है और अपने प्र्तिद्वान्द्वियों को पिलाया भी है इसलिए उसके बारे में जो कहा जाये सो कम है ।सिंधिया परिवार के लोग राजपथ छोड़कर लोकपथ पर आगे बढ़े हैं ।उनका चेहरा-मोहरा भी लोकतांत्रिक हुआ है लेकिन डीएनए न बदला है और न बदलेगा ,बदलना भी नहीं चाहिए,शुद्धता भी तो कोई चीज होती है ।आज सिंधिया को एक वर्ग भले ही खलनायक माने किन्तु एक वर्ग है जिसके लिए वे हमेशा नायक रहेंगे ।अब तो उनके समर्थकों में भाजपा का विशाल परिवार भी जुड़ गया है। अंत में हर आते-जाते नेताओं को हमारी शुभकामनायें और उन विधायकों,मंत्रियों के प्रति हमारी सहानुभूति जिन्हें सत्ता संघर्ष में अकारण शहीद होना पड़ा ।
@ राकेश अचल
भीतरघात से दम तोड़ती सरकार *****************