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न सेनाएं आपस में उलझीं और न कहीं कोई बमवारी हुई लेकिन आज पूरी दुनिया दहशत के दौर से गुजर रही है ।दहश्त की वजह न बम हैं न बारूद बल्कि एक ऐसा वायरस है जो धड़ाधड़ लोगों को लीलता जा रहा है और उन्हें बचाया नहीं जा पा रहा। दुर्भाग्य ये है कि अप्रत्याशित आपदा के इस दौर में भी बाजारवाद ज़िंदा है और लोग मुनाफ़ा बनाने में लगे हैं ।
चीन में अचानक उपजे कोरोना वायरस से कुल कितने लोग मरे पता नहीं लेकिन उड़ता-उड़ता आंकड़ा बताता ही कि कोई तीन हजार लोगों की जान चीन में जा चुकी है और कोई एक लाख से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं। इतनी बड़ी संख्या में लोग न किसी युद्ध में मारे जाते हैं और न किसी अन्य दुर्घटना में ।ये मौतें एक अदृश्य शत्रु के हमले से हो रहीं है ।इस शत्रु से निबटने के अब तक के सारे उपाय धरे के धरे रह गए हैं। हमारा ज्ञान-विज्ञान भी फिलहाल कोरोना के विनाश की तकनीक ईजाद नहीं कर पाया है। इसे अब झक मारकर दैवीय आपदा माना जा रहा है ,जो किसी 'हुलकी' से कम नहीं है ।
कोरोना से दुनिया के अधिकाँश देश आतंकित हैं।महाबली अमेरिका भी कोरोना से द्वारा हुआ है। कोरोना से जन स्वास्थ्य ही नहीं बाजार का स्वास्थ्य भी बिगड़ा हुआ है। दुनिया के शेयर बाजार धड़ाधड़ अनुढे मुंह गिर रहे हैं। उत्पादन और कारोबार पर भी इस कोरोना का बुरा असर पड़ा है ।चिकित्सा की तमाम विधियां कोरोना को निष्प्रभावी करने में नाकाम साबित हुईं हैं। अब जब तक इस महामारी के उपचार ी तकनीक ईजाद की जाएगी तब तक पता नहीं कितना नुक्सान हो चुकेगा ! कोरोना वायरस पिछले साल दिसंबर के महीने में सबसे पहले चीन के बुहान शहर में फैलना शुरू हुआ उसके बाद धीरे-धीरे पूरे चीन में ही कोरोनावायरस बुरी तरह से फैल गया और अब सिर्फ चीन में ही नहीं आसपास के काफी देशों में कोरोनावायरस बहुत तेजी से फैल रहा है ।
दुनिया में कोरोना से पहले भी अनेक जानलेवा बीमारियां जन्मती रहीं हैं लेकिन इतना आतंक न कैंसर को लेकर हुआ न एचआईवी को लेकर ।बीमारियाँ आती हैं और कुछ समय रुक कर चली जातीं हैं लेकिन जैसा आतंक कोरोना ने मचाया है वैसा कभी पहले देखने में नहीं आया ।चीन में रहने वाले या यात्रा पार गए अपने-अपने देश के लोगों को निकालने में पूरी दुनिया लगी है। यात्राएं रद्द हो रहीं हैं,हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग केंद्र बनाये जा रहे हैं और एहतियाती प्रबंधों पर आती ढीली करना पड़ रही है ।
सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि आपदा के इस समय में भी बाजार मुनाफ़ा कमाने में जुटा हुआ है। कोरोना से आएहतियात के लिए काम आने वाले हैण्ड सेनेटाइजर और आवश्यक मास्क बाजार में आने-पौने दामों पर बेचे जा रहे हैं। दुनिया के हर देश में इनकी कालाबाजारी हो रही है लेकिन किसी सरकार का इन मुनाफाखोरों पर कोई नियंत्रण नहीं है । भारत जैसे भीड़भाड़ वाले देश में सरकार को ही मास्क और सेनेटाइजर तथा थर्मामीटर जैसी सामग्री जनता को उपलब्ध करने के लिए इंतजाम करना चाहिए ताकि भगदड़ के हालत न बनें ।कोरोना कब,खान से हमला करेगा कोई नहीं जानता। इसकी मौजूदगी का पाता लगाने की भी कोई तकनीक नहीं है ,कोई ड्रोन इस काम में नहीं आ सकता ।इस बीमारी से धैर्य,एहतियात और संयम से ही निबटा जा सकता है ।
पिछले साल रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन की सदस्य चुनी गयीं पहली भारतीय महिला वैज्ञानिक और क्रिश्चयन मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर गगनदीप कांग जैसे लोगों की सलाह इस बीमारी में ढांढस बांधने वाली है। वे कहती हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित पांच में से चार लोग अपने आप ठीक हो जाते हैं और फिलहाल भारत के लोगों को वायरस के फैलने को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है।गगनदीप ने कहा कि इस समय सभी उपचार कारगर नहीं हैं, लेकिन ये मददगार हैं। उन्होंने कहा कि पांच में से चार लोग अपने आप ही ठीक हो जाते हैं और ऐसे संक्रमितों को खांसी और बुखार के लिए केवल 'पेरासिटामोल' जैसी दवाएं ही काफी हैं। कांग ने कहा कि पांचवें आदमी को डॉक्टर को दिखाने अथवा अस्पताल में भर्ती करवाने की जरूरत पड़ सकती है। अगर आपको सांस लेने में तकलीफ हो रही है, तो आपको जल्द से जल्द डॉक्टर के पास जाना चाहिए।'
पर्यावरणविद चंद्र भूषण कहते हैं कि अगर आप बीते दशक का लेखा-जोखा देखें तो सार्स, मर्स, जीका और अब कॉबेट 90 ने अटैक किया है। ये वो वायरस हैं जो जानवरों से इंसान में आए। अब ये अंतिम है, ऐसा नहीं है। हमें आगे भी तैयार रहना होगा। इसका बस यही रास्ता है कि हम इसका इलाज खोजें और इसे रोकें ताकि ये फैलें न ।चंद्र भूषण कहते हैं कि तमाम रिसर्च बताती हैं कि इंटेसिव मीट प्रोडक्शन, एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस और ग्लोबल वार्मिंग इन तीनों चीजों के कारण दुनिया में नये-नये वायरस और बैक्टीरिया आएंगे, जो पशुओं से इंसान में आएंगे. लेकिन कोरोना वायरस के बारे में अभी तक कोई ऐसी रिसर्च नहीं आई कि जिससे सिद्ध हो कि इस वायरस में क्लाइमेट का कोई रोल है. लेकिन भविष्य के लिए हमें तैयार रहना होगा कि अब इस तरह की स्थिति बन सकती है.
आपको बता दें कि पिछले सौ सालों में जिस महामारी ने सबसे ज्यादा लोगों की जान ली उसे स्पैनिश फ्लू के नाम से जाना जाता है. 1918 से 1920 के बीच फैली इस बीमारी ने पूरी दुनिया में पांच करोड़ के लगभग लोगों की जान ली थी. ये बीमारी एच1एन1 एंफ्लूएंजा वायरस के चलते फैली थी. इसकी चपेट में दुनिया की एक चौथाई आबादी आ गई थी. इसी एच1एन1 का एक नया वर्जन या स्ट्रेन वर्ष 2009-2010 में दुनिया पर हमला बोलने आया था. लेकिन, उस समय इस बीमारी से मरने वालों की संख्या 17 हजार के लगभग रही. ये 100 साल पहले की तुलना में तीन हजार गुना तक कम रही. इसके पीछे दुनिया भर में बीमारियों के बारे में जानकारी, उससे निपटने के तरीकों के विकास और दुनिया भर में बीमारियों से निपटने में सहयोग को मुख्य कारण माना जाता है.
@ राकेश अचल
दहशत के दिनों से जूझती दुनिया ( राकेश अचल )