जिंदगी और मौत कके बीच बहुत कम का फासला होता है ,इस फासले को बनाये रखने के लिए आज पूरा देश एकाकार होकर नजरबंद है ।इस नजरबंदी के लिए न किसी पब्लिक सेफ्टी एक्ट की जरूरत पड़ी और न किसी पुलिस बल की ,सब कुछ एक आव्हान से हो गया ।मरना कोई नहीं चाहता ,शायद इसीलिए अन्यथा कौन है जो अपनी मर्जी से 14 घंटे नजरबंद रहे ?
कोरोना विषाणु से आक्रान्त दुनिया में ऐसे अनेक प्रयोग हो रहे हैं,भारत में भी हुआ ।
भाई भक्तगण इसमें भी राजनीतिकभक्तिभाव की तलाश करने में लगे हैं,अपने राम को इससे कोई आपत्ति नहीं ,क्योंकि आपातकाल में ऐसा हो ही जाता है। भाई लोग आज के आव्हान की तुलना 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय खाद्यान्न संकट को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी के उस आव्हान से कर रहे हैं जिसमें देश की जनता से एक वक्त का औपवास करने के लिए कहा गया था ।
आज देश बंद है क्योंकि कोई मरना नहीं चाहता,तब देश उपवास कर रहा था क्योंकि खाद्यान्न का संकट था ।भूख की दवा होती है, मौत की नहीं भूखा आदमी खाद्यान्न मिलने से जीवित रह सकता है किन्तु कोरोना जैसे विषाणु से पीड़ित व्यक्ति को बचना शायद आज की तारीख में कठिन है क्योंकि उसकी दवा अभी मौजूद नहीं है। आज हम इस विषाणु से केवल और केवल एहतियात से ही बच सकते हैं ।मौजूदा पंत प्रधान के स्थान पर कोई भी आव्हान करता तो उसे इसी तरह माना जाता ।
अगर आप आंकड़ों में जाएँ तो लगेगा की 14 घंटे के स्व-आरोपित इस बंद से देश को कितना बड़ा घाटा हुआ होगा ?जरूर हुआ होगा किन्तु ये घाटा उस घाटे से कहीं कम ही होगा जो एहतियात न बरतने के कारण हो सकता था,हो सकता है ।कोरोना की महामारी को सेना के सहारे नहीं रखा जा सकता ,इसे जनता की सूझबूझ ही रोक सकती है। सरकार की अपनी तैयारी अलग बात है। मै बार-बार आंकड़ों में झाँकने की बात सिर्फ इसलिए करता हूँ क्योंकि वास्तविक स्थिति एकदम अलग है। हमारे पास कोरोना से पहले ही जरूरत के मुताबिक न चिकित्स्क हैं और न स्वास्थ्यकर्मी ।देश की आधे से अधिक आबादी पहले से नीम-हकीमों के भरोसे जी रही है,ऐसे में कोरोना की आयाचित बीमारी एक बड़ी चुनौती है ।इसके लिए पुरानी सरकारों को कोसा नहीं जा सकता ,क्योंकि मौजूदा सरकार अब खुद पुरानी हो चली है ।
बहरहाल जनता कर्फ्यू की कामयाबी के लिए देश की जनता को बधाई देना आवश्यक है ,क्योंकि ये एक प्रयोग है जो भविष्य के लिए बड़े काम का हो सकता है ।जनता अपने और देश के लिए जो भी आवश्यक है कर सकती है ,राजनीति उसमें आड़े आने वाली नहीं है ।इस कामयाबी ने एक बात और जाहिर की है की देश में कोई भी देशद्रोही नहीं है ,सब राष्ट्रभक्त हैं ।जनता का देश के प्रति व्यक्त किया गया भक्तिभाव किसी व्यक्ति के प्रति ही या नहीं ये नहीं मापना चाहिए ।
एक जानलेवा विषाणु के खिलाफ देश की एकजुटता से कोरोना रुकेगा या नहीं ये आने वाले दिन बातएंगे किन्तु एक बात जरूर है कि उसे इस एकजुटता के सामने नतमस्तक तो होना ही पडेगा ।भारत की जनता भले ही पीने के पानी के लिए तरसती हो,भले ही उसे कुपोषण से रोज दो-दो हाथ करना पड़ते हों लेकिन किसी विषाणु से लड़ने में उसे कोई दिक्क्त नहीं है ।सरकार दवा-दारू का समुचित इंतजाम करा पाए या नहीं लेकिन उसे सहयोग मिलेगा जनता का ।जनता के संयम में यदि सरकार की शक्ति भी शामिल हो जाये तो सोने में सुहागा लग सकता है ।पर्याप्त जांच केंद्र और अन्य जरूरी इंतजाम इस आपदा से देश को लड़ने की एक नई शक्ति प्रदान करेंगे ।देश और दुनिया के वैज्ञानिक इस विषाणु के खात्मे के लिए अनुसन्धान में लगे हैं,हमें उम्मीद करना चाहिए कि आने वाले दिनों में इस विषाणु पर मनुष्यता की जीत होगी ।
इस संघर्ष में जो लोग कालकवलित हो रहे हैं उनके प्रति हमारी संवेदना है और जो इससे ग्रस्त हैं हम उनके शीघ्र स्वस्थ्य होने की कामना करते हैं ।
@ राकेश अचल
एक विषाणु के खिलाफ पूरा देश *****