घोड़ों की खरीद-फरोख्त का मौसम  राकेश अचल


देश में मौसम लगातार करवट ले रहा है लेकिन हमारे मध्यप्रदेश में इन दिनों घोड़ों को खरीद-फरोख्त का मौसम चल रहा है।
मजे की बात ये है कि ये घोड़े सियासत के हैं और जनता इन्हें चुनकर सदन तक भेजती है ।सुना जा रहा है कि इन दिनों घोड़ों की मंडी में कीमत 35  करोड़ तक जा पहुंची है ।
पुराने जमाने से घोड़े सियासत की मजबूरी हैं,जब सत्ता के विस्तार के लिए अश्वमेघ यज्ञ किये जाते हैं तो सबसे पहले एक मजबूत कद-काठी के घोड़े की जरूरत पड़ती है। आगे-आगे ध्वजाधारी घोड़ा चलता है और पीछे-पीछे सेना।जो कोई घोड़े को रोक लेता है उसे सेना से मुकाबला करना पड़ता है,जो जीतता है घोड़ा उसका हो जाता  है और राज्य  भी  ।अब जमाना बदल गया है और अश्वमेघ का तरीका भी लेकिन घोड़े नहीं बदले ।वे पहले की ही तरह आज भी प्रासंगिक हैं ।आज भी सियासत को उनकी उतनी ही जरूरत है जितनी कि पहले हुआ करती थी ।
राजनीतिक दलों का घोड़ा प्रेम नया नहीं है।। हर दल में घोड़ों की  इज्जत की जाती है। बिकाऊ घोड़े हर सत्ता के लिए जरूरी होते हैं,ये घोड़े ही सत्ता बनवाते भी हैं और गिराते भी हैं ।एक जमाने में स्वर्गीय पीवी नरसिंहराव ने भी एक घोड़ा खरीदकर अपनी कुर्सी बचाई थी ।भाजपा तो 2014 के बाद देशव्यापी अश्वमेघ विजयी अभियान पर निकली ।उसने जहाँ-तहँ इन्हीं बिकाऊ घोड़ों के बल पर अपने प्रतिद्वंदियों को परास्त किया ,अपवाद स्वरूप खुद भी परास्त हुई ।घोड़े खरीदने और बेचने का अनुभव सबको नहीं होता।हर दल में इस व्यापार में सिद्धहस्त कुछ ही लोग होते हैं। मध्यप्रदेश में एक समय दिग्गी राजा ने बसपा के तमाम बिकाऊ घोड़े खरीद लिए थे ।
मै भटककर अपने सूबे के बाहर निकल गया।बात मध्यप्रदेश की है। साल भर पहले घोड़े खरीदने में नाकाम रही भाजपा को अपनी पंद्रह साल पुरानी सत्ता से हाथ धोना पड़े थे ।मंडी में घोड़े कम थे और ग्राहक ज्यादा इसलिए बात बनी नहीं ,लेकिन अब जब प्रदेश में राज्य सभा के लिए चुनाव होने वाले हैं,एक बार फिर घोड़ों की खरीद-फरोख्त के चर्चे तेज हो गए हैं ,पुराने यानि खग्गी घोड़ा कारोबारी रहे दिग्गी राजा का आरोप है कि भाजपा प्रदेश में घोड़ा व्यवसाय को प्रोत्साहित कर रही है। उनका आरोप है कि भाजपा ने उनके पाले के आधा दर्जन घोड़ों का अपहरण कर उन्हें एक होटल में बंधक बना लिया है ।
दिग्गी राजा के आरोपों पर हम कभी अविश्वास नहीं करते क्योंकि वे पूरे आत्मविशास के साथ आरोप लगाते हैं। उनका कहना है कि भाजा एक-एक घोड़े की कीमत 35  करोड़ तक लगा रही है। भाजपा ने कीमत किश्तों में देने का प्रस्ताव किया है ।जिन घोड़ों की कीमत लगाईं गयी उनमें से कुछ रस्सी तुड़ाकर कांग्रेस के अस्तबल में वापस लौट आये उन्होंने बाकायदा हिनहिनाकर कहा कि भाजपा ने उन्हें खरीदने की कोशिस की ।मजे की बात ये है कि मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने अपने अस्तबल में रह रहे घोड़ों से कहा है कि-' यदि मुफ्त का माल मिल रहा है तो ले लो,कोई हर्ज नहीं ,बस अस्तबल मत बदलना ।'
राज्य की सत्ता को साल भर से अस्थिर करने में नाकाम रहे भाजपा के अनेक घोड़ा व्यापारी दिल्ली में डेरा डेल हुए हैं,उन्हौने बाकायदा दिल्ली के आसपास अस्थाई अस्तबल भी बना लिए हैं। कहते हैं कि दिग्गी राजा की तरह भाजपा केपास घोड़ा व्यवसाय के महारती कैलाश विजयवर्गीय,डॉ नरोत्तम मिश्रा जैसे लोग हैं ।इन्हें बिकाऊ घोड़ों की नस्ल और कीमतें आंकने का अच्छा-खासा तजुर्बा है। विधानसभा चुनाव के बाद हालांकि इनका तजुर्बा ज्यादा काम नहीं आया,लेकिन इन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी ,भाजपा वैसे भी कभी हिम्मत न हारने वाली पार्टी है। भाजपा कितने भी राज्यों में चुनाव हारी हो लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। दिल्ली चुनाव हारने के बाद भी भाजपा बंगाल जीतने के लिए अपने घोड़े खोल चुकी है ।
आपको बता दें कि हॉर्स ट्रेडिंग का मतलब 'घोड़ों की बिक्री' से है. असल में इस शब्द की शुरुआत कैंम्ब्रिज डिक्शनरी से हुई थी. करीब 18वीं शताब्दी में इस शब्द का इस्तेमाल घोड़ों की बिक्री के दौरान व्यापारी करने लगे, लेकिन इसके साथ किस्से जुड़े कि इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जाने लगे.यूं तो राजनीति में इस शब्द का कोई औचित्य नहीं होता है, लेकिन पिछले कुछ समय में इसका इस्तेमाल बढ़ा है. जब राजनीति में नेता दल बदलते हैं, या फिर किसी चालाकी के कारण कुछ ऐसा खेल रचा जाता है कि दूसरी पार्टी के नेता आपका समर्थन कर दें तब राजनीति में इसे हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है.
सनद रहे कि हाल ही के दिनों में जिस प्रकार गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड और कर्नाटक में राजनीतिक उथल-पुथल मची तो हॉर्स ट्रेडिंग के ही आरोप लगे. कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया कि बीजेपी विधायकों की खरीद-फरोक्त कर रही है, इसके अलावा कई विधायकों को डराया धमकाया भी जा रहा है. इसके अलावा राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग को लेकर भी कई तरह के आरोप लगाए गए थे.
 कैबिनेट की बैठक में मंगलवार को हॉर्स ट्रेडिंग के मुद्दे पर लंबी चर्चा चली। अनौपचारिक चर्चा के दौरान मंत्रियों ने विधायकों की खरीद-फरोख्त के सामने आ रहे बयानों पर मुख्यमंत्री कमलनाथ का ध्यान आकर्षित किया। मंत्रियों ने कहा कि ऐसे बयान आ रहे हैं, ऐसे में क्या किया जाना चाहिए। इस पर मुख्यमंत्री ने सभी मंत्रियों को अलर्ट रहने को कहा। उन्होंने कहा कि अपने विधायकों के संपर्क में रहो और विरोधियों को कड़ा जवाब देने के लिए भी तैयार रहो। मंत्रियों ने राज्यसभा चुनाव और विधानसभा सत्र शुरू होने से ठीक पहले सामने आ रहे इन बयानों को लेकर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाना चाहिए। इस पर मुख्यमंत्री नाथ ने मंत्रियों को अलर्ट रहने के साथ भाजपा के आरोपों का कड़ाई से जवाब देने को कहा है।अब देखिये आने वाले दिनों में क्या होता है ?
@ राकेश अचल