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लोकतंत्र में चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने और उन्हें बर्खास्त करने के किस्से नए नहीं हैं इसलिए मध्यप्रदेश सरकार को अस्थिर करने वालों को मै कोई दोष नहीं दे सकता ,अलवत्ता मुझे इस बात की हैरानी है कि खुद अपराध करने वाले लोग किस मुंह से अदालत के सामने इन्साफ की गुहार करने पहुँच जाते हैं ?
मध्य्प्रदेश में जो सरकार है उसे काम करते हुए डेढ़ साल होने को आया,इस अवधि में इस सरकार के खिलाफ अविश्वाश प्रकट किया गया किन्तु इसे प्रमाणित नहीं किया जा सका, हारकर सरकार को अस्थिर करने के लिए दल-बदल का सहारा लिया गया ।लोकतंत्र में ये अपने तरह का प्रचलित अपराध है जिसकी कोई सजा किसी क़ानून में नहीं है ।इस दल-बदल से भी काम नहीं चला तो निर्वाचित विधायकों को बंदी बना लिया गया ,यहां तक कि अपने आपको बागी कहने वाले विधायक भी बंधक बने बैठे हैं ।जिस जनता ने इन विधायकों को चुना था उसके प्रति जबाबदेह न होते हुए ये विधायक अपने नेताओं के आगे दुम हिलाते दिखाई दे रहे हैं ,अब इन सबको इंसाफ की डगर पर चलना पड़ रहा है ।
भोपाल में 'फ्लोर टेस्ट' करने में नाकाम रही भाजपा अब सुप्रीम कोर्ट की शरण में है,आप जब ये लेख पढ़ रहे होंगे तब तक मुमकिन है कि अदालत याचिकाकर्ताओं को राहत देने का आदेश जारी कर दे,ऐसा नहीं भी हो सकता लेकिन कोई ऐसा मानता नहीं ।सबको पता है कि हमारी अदालतें बड़ी संवेदनशील हैं और भले ही निर्भया काण्ड के आरोपियों को फांसी न दिला पाती हों लेकिन विधायकों को राहत जरूर दे देतीं हैं ।पहले भी दिया है और आगे भी देंगीं क्योंकि ये उनका अधिकार क्षेत्र है।इसलिए अदालतों के प्रति अविश्वास प्रकट करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता ,होना भी नहीं चाहिए ,भले ही कोई पूर्व न्यायाधीश अभूतपूर्व फैसले सुनकर राज्य सभा में प्रवेश की पात्रता हासिल कर चुका हो ।
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार रहेगी या जाएगी ,इससे हम जैसे आम लोगों पर कोई ख़ास असर पड़ने वाला नहीं है ,कुर्सी के लिए लालायित नेता और उनके समर्थकों पर जरूर इसका असर होगा ,होता है ।होना भी चाहिए ।हमारी चिंता तो ये है की आज इंसाफ की माँग करने वाले लोग खुद इन्साफ की डगर पर नहीं चलते तो किस तरह इन्साफ मांगने अदालतों का दरवाजा खटखटाने लगते हैं ।आम आदमी कोई ख़ास बात नहीं कर सकता,अन्यथा हम अदालतों से दरख्वास्त करते की उन्हें विधानसभाओं के काम में दखल नहीं देना चाहिए ।
बहरहाल मध्यप्रदेश में राज्यपाल के साथ दलबदल करने वाले नेताओं और उनके समर्थकों की प्रतिष्ठा दांव पर है इसलिए हम सब चिंतित हैं ।हम सब यानि आम लोग चाहतें हैं कि इस नाटक का पटाक्षेप जल्द से जल्द होना चाहिए ,क्योकि सरकार जो थोड़ी-बहुत जनसेवा करती है वो भी इनदिनों ठप्प पड़ी हुई है ,हालांकि सरकार लगातार नियुक्तियों और तबादलों का अपना संवैधानिक काम निश्चिन्त भाव से कर रही है ।इसे देखकर लगता है कि सरकार को कोई डर-भय है ही नहीं ।गजब का आत्मविश्वास है कमलनाथ में ।उनकी जगह हम होते तो हमें तो नींद ही न आती ।किसी और को भी शायद न आती ।
पंद्रह साल सूबे की सत्ता में रह चुके लोग अब बिना कुर्सी के दुबले हो रहे हैं। उन्हें येन -केन कुर्सी चाहिए ।इसके लिए उन्होंने जो कर सकते थे,कर दिखाया है। कांग्रेस के महाराज को अपना बना लिया है भले ही कल तक वे उन्हें गरियाते थे और सत्ता से दूर रहने के लिए कहते थे ।'माफ़ करो महाराज,हमारा नेता शिवराज 'वाला नारा अब पुराना पड़ चुका है ।अब महाराज भाजपा की आन,बान,शान का पूरक और प्रतीक बन चुके हैं ।उनका प्रभामंडल है ही ऐसा की जहां जायेंगे वहां चमकेंगे ।नाम ही ज्योतिरादित्य है उनका ।
लोकतंत्र की नौटंकी में हम मतदाताओं की भूमिका सीमित है।हम मूकदर्शक तो हो सकते हैं किन्तु पक्षकार नहीं हो सकते।हम अदालत से गुहार नहीं कर सकते कि इस नौटंकी को बंद कराया जाये और नौटंकी करने वालों को उनके किये की सजा दी जायेऔर चुनी हुई सरकार चलने दी जाये । हम आम लोग अदालत के लिए पता नहीं कब ख़ास होंगे !।बहरहाल हमारी नजरें भी आपकी ही तरह अदालत के फैसले पर टिकी हैं क्योंकि इसी फैसले पर कमलनाथ की सरकार का भविष्य भी टिका है ।अब मजा तो तब है कि जब अदालत का मान भी रह जाये और कमलनाथ सरकार भी ।देखिये आगे-आगे होता है क्या ?
@ राकेश अचल
इन्साफ की डगर पै,कुछ तो दिखाओ चल के *******************