〰〰〰〰जीने की राह
अपनी चादर से बाहर पैर पसारना इंसान की फितरत में शामिल है । और ऐसा उसने खूब किया भी । पंचतत्व से बनी प्रकृति की चादर को खूब खींचा , रौंदा , पैरों तले दबाया , फिर भूल गया । कुदरत का कहर देखिए , अब इंसान को समझ नहीं आ रहा कि कब चादर सिमट गई और कब पैर बाहर रह गए । वो ही पैर अब कांप रहे हैं । कुछ लोगों ने जिंदगी को बहुत हल्के में लिया । अपनी भूख मिटाने के लिए निरीह प्राणियों को मार डाला । जिसका पालन पोषण करना चाहिए , उसे अपना भोजन बना लिया , विलासिता को साधन मान लिया । धनी यदि भोगी - मांसाहारी नहीं है तो लोग उसे धनी नहीं मानते ।
*नवरात्र के सातवें दिन आज इस पर विचार कीजिए कि ये नौ दिन आपको आने वाले 365 दिनों के लिए संकेत दे रहे हैं , सुझाव दे रहे हैं । इसे किसी धर्म विशेष से जोड़कर मत चलिए ।* इस समय हमारा एक ही धर्म है मानवता । समूची मनुष्यता को इस त्रासदी से बचाना सबसे बड़ा तप है । मनुष्य के शरीर में सातवां चक्र है सहस्रवार जो कि मस्तक के बीचोंबीच होता है । आंखें बंद कर पुतलियां ऊपर उठाकर इसे देखिए । यहां संतोष , सेवा और शांति मिलती है । अभी इसकी बहुत आवश्यकता है । खूब उपद्रव कर लिया , अब थोड़ा शांत हो जाएं , क्योंकि आने वाला समय बड़ी परीक्षा का होगा । हम सब अपने घरों में एक नई ऊर्जा के लिए बंद हुए हैं । एक ऐसी ऊर्जा जो अपनों से कटकर खुद को सुरक्षित रखकर मिलेगी और यही ऊर्जा कोरोना की त्रासदी से निपटने के काम आएगी ।
〰〰🌹🙏🏻नमस्ते🌷घर पर रहिए
🦋स्वस्थ रहिए