आसान नहीं है ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह
ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर क्षेत्र जिसमें 34 विधानसभा सीटें और चार लोकसभा सीटें आती हैं। वे इसके प्रभावशाली नेता हैं पर एकक्षत्र नेता नहीं। इसलिये सिंधिया लोकसभा की एकमात्र सीट गुना ही निकाल पाते थे वह भी स्वयं के लिये। इस बार तो वह भी हार गये। विधानसभा में भी बीस से ज्यादा उनका आंकड़ा नहीं जा पाता था। दिग्विजय सिंह प्रभावी नेता हैं। उनके अलावा गोविंदसिंह जैसे कांग्रेस के कई नेता अपनी दम पर जीत जाते हैं। ऐसे ही निर्दलीय सहित कई नेता हैं जो कागजी पार्टियों के नाम से अपनी दम पर जीत दर्ज करवा लेते हैं। इनके अलावा समाजवादियों, बसपा, सपा का भी तगड़ा प्रभाव है। भाजपा में भी नरेन्द्र तोमर सहित कम से कम सात से ज्यादा ऐसे प्रभावी नेता हैं जो अपने इलाके में दूसरों को पसंद नहीं करते हैं और उनकी इच्छा के खिलाफ कोई भाजपा से पंचायत से लेकर लोकसभा में कहीं से भी लड़ें तो उसे हरवाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। ऐस जटिल समीकरणों में ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक हैसियत का आंकलन करें तो उतनी प्रभावी नजर नहीं आती हैं जितनी बताई जा रही है। हां आज के हालात में वे कमजोर से कमजोर स्थिति में प्रदेश में कमलनाथ सरकार को हटवाकर शिवराजसिंह की अगुवाई में भाजपा की सरकार बनवा सकते हैं। और किसी की अगुआई में यह भी आसान नहीं होगा। स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के समय से ही इस सिंधिया घराना कमजोर हो गया था। यहां तक कि स्वर्गीय राजमाता सिंधिया जी के प्रभामंडल में उनके समय में ही सिंधिया घराने की राजनीतिक स्थिति का क्षरण होने लगा था। कारण था स्वर्गीय माधवराव सिंधिया का अपना राजनीतिक गणित। कांग्रेस में उपेक्षा का तगड़ा जवाब राजमाता जी ने कांग्रेस की द्वारकाप्रसाद मिश्रा की सरकार पलटवा कर दिया था। पर ऐसी बगावत माधवराव जी ने नहीं की जबकि उनकी उपेक्षा भी कम नहीं हुई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पिता की तरह मजबूत हैं पर उतने ताकतवर तो निश्चित ही नहीं हैं जितने उनके पिताश्री थे। इसलिये प्रदेश का राजनीतिक माहौल भ्रमित सा दिखता है। होगा क्या यह समय बताएगा। वैसे ज्यादा संभावना कमलनाथ की विदायी और शिवराज सिंह का स्वागत करीब करीब सुनिश्चिम नजा आ रहा है।
<no title>अब सिंधिया का प्रभाब कम हुआ है