फैसला अंतरात्मा की आवाज पर टिका  ****राकेश अचल ****

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मध्य्प्रदेश की कमलनाथ सरकार आगामी 16  मार्च को बचेगी या जाएगी इसका फैसला कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया तो अपनी तरफ से कर चुके हैं लेकिन अंतिम फैसला कथित तौर से बंधक बनाये गए भाजपा और कांग्रेस के विधायकों की अंतरात्मा पर टिका हुआ है ।कांग्रेस को अभी भी उम्मीद है कि बंधक सिंधिया समर्थक विधायकों में से आधे से अधिक अभी भी पाला बदल कर अंतरात्मा की आवाज सुनकर कांग्रेस का साथ दे सकते हैं ।
दो दलीय  राजनीति पर केंद्रित मध्यप्रदेश में ये 53  साल बाद ये दूसरा मौका है जब सिंधिया परिवार के किसी सदस्य  ने कांग्रेस की सरकार को अस्थिर  कर गिराने की कोशिश की है ।ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले 1967  में उनकी दादी स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया तत्कालीन पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र की सरकार के साथ यही सब कर चुकी हैं ।उस समय पर्दे के पीछे जनसंघ था आज भाजपा है जो जनसंघ का ही 'क्लोन' है ।
कांग्रेस के जो विधायक सिंधिया के समर्थक  बताये जा रहे हैं उनमे से कई ऐसे हैं जो मौका मिलते ही पाला बदल सकते हैं,इसी तरह भाजपा में भी अनेक विधायक  ऐसे  हैं जो ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस में शामिल किये जाने से व्यथित हैं और पाला बदल सकते हैं ,लेकिन ये केवल कयास है और करिश्मे की उम्मीद पर टिकी अवधारण है।ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी ।मध्यप्रदेश के दो मंत्रियों ने जिस तरह से बैंगलूर जाकर कांग्रेस के बंधक विधायकों से मिलने का प्रयास किया है उससे लगता है की  'पिक्चर' अभी बाक़ी है ।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के गृह नगर ग्वालियर के ही दो कांग्रेसी विधायक प्रवीण पाठक और लाखन सिंह सिंधिया के साथ नहीं है ।लाखन सिंह तो मंत्री भी हैं। पाठक कमलनाथ के और लाखन सिंह दिग्विजय सिंह के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं ।इन दोनों की तरह दूसरे विधायक भी हैं जो सिंधिया के चंगुल से आजाद होते ही कमलनाथ के साथ खड़े हो सकते हैं,यदि ये बात न होती तो सिंधिया अपने समर्थक  विधायकों को बैंगलूर न भेजते ।इन बंधक  विधायकों को आजादी राज्य सभा चुनाव के समय ही मिलेगी ।
मध्यप्रदेश में हुए इस नाटकीय घटनाक्रम का दूसरा पहलू ये भी है कि भाजपा भी अपने विधायक दल में बगावत की आशंका से पूरी तरह मुक्त नहीं है इसीलिए उसे भी अपने विधायक प्रदेश के बाहर ले  जाना पड़े ।भाजपा में भी अनेक विधायक ऐसे हैं जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में प्रवेश से क्षुब्ध हैं ।उन्हें लगता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद भजपा एक बार फिर महल की दासी बनकर रह जाएगी ,क्योंकि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर समेत अनेक भाजपा नेता पहले से महल के प्रति निष्ठावान रहे हैं ।आप कह सकते हैं कि उन्होंने  'महल का नमक खाया है '
आपको याद दिला दें कि इस समय भाजपा में महल यानी सिंधिया घराने से बसुंधरा राजे,यशोधरा राजे ,ध्यानेन्द्र सिंह और माया सिंह सक्रिय हैं और अब ज्योतिरादित्य सिंधिया भी भाजपा के सदस्य ही नहीं सीधे राज्य सभा सदस्य बन गए हैं [औपचारिक चुनाव होना शेष है]।भाजपा में पूरी जिंदगी ज्योतिरादित्य को गरियाने वाले प्रभात झा की राज्य सभा सदस्य्ता सिंधिया के भाजपा प्रवेश की वजह से 'रिन्यू' नहीं की गयी ।पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया की राजनीति का आधार ही ज्योतिरादित्य सिंधिया का विरोध था, उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्वर्गीय पिता के खिलाफ भाजपा के टिकिट पर चुनाव लड़कर अपना बलिदान दिया था और बाद में इसी बिना पर पार्टी ने उन्हें पहले सांसद और फिर बाद में मंत्री बनाया था ।
आंकड़ों के हिसाब से भले ही कमलनाथ की सरकार के अब गिने-चुने दिन बचे हैं किन्तु हकीकत ये है कि ये सरकार यदि 'फ्लोर टेस्ट' में गिर भी जाये तो भी उसके हाथ में तब तक सत्ता रहने वाली है जब तक कि या तो राज्य में राष्ट्रपति शासन न लगा दिया जाये या फिर बाग़ी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के बाद खाली होने वाली  सभी सीटों पर उप चुनाव न करा दिए जाएँ ।यानि अभी भाजपा के लिए कुछ दिन तो 'अंगूर खट्टे' ही रहने वाले हैं ।आशंका इस बात की ही कि कमलनाथ सरकार जितने भी दिन सत्ता में रहेगी तब तक सिंधिया समेत उनके समर्थक विधायकों के खिलाफ कुछ न कुछ ऐसा जरूर कर जाएगी जो भविष्य में उनके लिए परेशानी का सबब बना रहे ।सिंधिया के खिलाफ यदि सरकार कुछ करना चाहे तो बहुत से मामले हैं ।
प्रदेश की सरकार बचे या जाये सबसे अधिक फायदा दिग्विजय सिंह को है। उनके और उनके बेटे के रास्ते का सबसे बड़ा अवरोध ज्योतिरादित्य सिंधिया थे जो अब परती छोड़ गए हैं और उनके फ़िलहाल कांग्रेस में वापस लौटने की कोई सम्भवना नहीं है ।यानि अभी कम से कम सिंधिया अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव तक तक कीचड़ में ही खड़े होकर कमल खिलाएंगे ।इतना समय कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के लिए अपने उत्तराधिकारियों को स्थापित करने के लिए पर्याप्त है ।
कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने की कोशिशें तो पूरे एक साल से चल रहीं थीं लेकिन कमलनाथ की सतर्कता से भाजपा की हर योजना नाकाम हो रही थी किन्तु ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने स्थितियां बदल दीं। सिंधिया के साथ उनकी पिता की उम्र के दोनों नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पटरी नहीं बैठा पाए ।पीढ़ियों का अंतराल और राजहठ ने आखिरकार कांग्रेस का शीराजा फैला दिया ।आपको बता दें कि कमलनाथ जब केंद्र में मंत्री थे तब ज्योतिरादित्य सिंधिया मात्र 9  साल के थे और जब दिग्विजय सिंह पहली बार मंत्री बने तब उनकी उम्र 13  साल की थी ।इस लिहाज से वे दोनों के सामने राजनितिक शिशु ही हैं ।बहरहाल आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश लगातार सुर्ख़ियों में रहने वाला है ।
@राकेश अचल