शंख की आवाज़ जहां तक सुनाई देती है जीवाणु मर जाते है-के सी शर्मा*


*जाने कैसे, विज्ञान कहता है कि शंख की आवाज़ जहां तक सुनाई देती है जीवाणु मर जाते है-के सी शर्मा


घर को गाय के गोबर से लीपने से बैक्टीरिया मर जाती है।
 यज्ञ के धुएँ से पर्यावरण ठीक रहता है। 
सनातन विज्ञान ने इसे धर्म या भगवान से इसलिए जोड़ा ताकि कम से कम डर से तो लोग ये सब करें ताकि पर्यावरण और लोग स्वस्थ रहें, लेकिन जबसे हमने इसे अंधविश्वास समझा तबसे मरने लगे है!
 बाजारवाद ने हमें समझाया कि भारतीय तरीके सही नहीं है गैस, फ्रीज, AC, वाटर फ़िल्टर, कोलगेट, साबुन, शेम्पू, जैसी अन्य सब चीजों को जरूरी बताकर बेचा। 
 हमने गांव में कभी नहीं सुना कि मटके के पानी पीने से किसी को गैस की समस्या हुई हो सब ठीक रहता है अपनी कीमत खुद गवाई है हमने... और वाटर फ़िल्टर का पानी पीने वाले बीमार ही रहते हैं।
हमको कोलगेट बेचने वाले खुद नीम, बबूल, कंजी का दातुन करते है।
हमको आयोडेक्स बेचने वाले खुद हल्दी लगाकर सोते है।
 हमको पानी के प्लास्टिक के बोतल बेचने वाले खुद तांबे के गिलास में पानी पीकर सोते है सोचिएगा...।
कुछ जानवर गन्दी से गन्दी चीज खाते है फिर इंसान उस जानवर को खा जाता है तो सबसे बड़ा जानवर कौन हुआ ???
 इंसान और जानवर में ज्यादा फर्क नहीं...!
हिंदुस्तान में कोई एक भी ऐसी जानलेवा बीमारी नहीं थी सब बाहर से आई भारत शुरू से ही इन सब चीजों में जागरूक रहा लेकिन जब से बाजारवाद का उदय हुआ तबसे हर घर मे दवाई की उपयोगिता बढ़ गई...। क्योंकि
 हमने आयुर्वेदिक पद्धति से जीना छोड़ दिया।
 प्रतिदिन घर में हवन, यज्ञ करना छोड़ दिया।
 पाश्च्यात शिक्षा के प्रभाव में भारतीय संस्कृति को छोड़ दिया। 
 अब कोरोना के डर से पुनः इसी संस्कृति के कुछ शुत्रों को धारण कर रहे हैं लोग...।
समय अब भी शेष है सम्भल जाये और अपने संस्कार, संस्कृति को अपनायें और सुखी-स्वस्थ जीवन यापन करे, बाकी आप देख ही सकते हैं आज के मॉडर्न युग का प्राणी तन और मन दोनों से बीमार ही है।