संकटमोचन श्रीहनुमानजीकी जय, जय सियाराम जी,
श्री संकटमोचन श्रीहनुमानजी मंदिर, वाराणसी, उत्तरप्रदेश
श्री हनुमानजी के पवित्र मंदिरों में से एक हैं वाराणसी का संकट मोचन हनुमान मंदिर । यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर, भारत में स्थित है। इस मंदिर के चारों ओर एक छोटा सा वन है। यहां का वातावरण एकांत, शांत एवं उपासकों के लिए दिव्य साधना स्थली के योग्य है। मंदिर के प्रांगण में श्रीहनुमानजी की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर के समीप ही भगवान “श्रीनृसिंह” का मंदिर भी स्थापित है।
ऐसी मान्यता है कि श्री हनुमानजी की यह मूर्ति गोस्वामी तुलसीदासजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयंभू मूर्ति है। इस मंदिर की एक अद्भुत विशेषता यह हैं कि भगवान हनुमान की मूर्ति की स्थापना इस प्रकार हुई हैं कि, “श्री हनुमानजी भगवान राम की ओर ही देख रहे हैं”, जिनकी श्री हनुमानजी निःस्वार्थ श्रद्धा से पूजा किया करते थे। श्री हनुमानजी के मंदिर के समीप ही अलग एक ओर भगवान विश्वनाथजी की लिंगमयी, श्री ठाकुर जी भगवान और भगवान “श्रीनृसिंह” का मंदिर भी स्थापित है। लगभग 1608 ई. 1611 ई. के बीच संकटमोचन मंदिर को बनाया गया है।
मंदिर अलग एक ओर एक मूर्ति भी विराजमान है. श्री संकटमोचन हनुमानजी के समीप ही श्री नरसिंहजी के रूप में विराजमान हैं।
इस मूर्ति में हनुमानजी दाएं हाथ में भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं बायां हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है। प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष आरती एवं पूजन समारोह होता है। उसी प्रकार चैत्र पूर्णिमा के दिन यहां श्रीहनुमान जयंती महोत्सव होता है। इस अवसर पर श्रीहनुमानजी की बैठक की झांकी होती है और चार दिन तक रामायण सम्मेलन महोत्सव एवं संगीत सम्मेलन होता है।
संकट मोचन का अर्थ है परेशानियों अथवा दुखों को हरने वाला। इस मंदिर की रचना बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापक श्री मदन मोहन मालवीय जी द्वारा 1900 ई० में हुई थी। यहाँ हनुमान जयंती बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, इस दौरान एक विशेष शोभा यात्रा निकाली जाती है जो “दुर्गाकुंड” से सटे ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर से लेकर संकट मोचन तक चलायी जाती है। भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी के बेसन के लड्डू चढ़ाये जाते हैं। भगवान हनुमान के गले में गेंदे के फूलों की माला सुशोभित रहती हैं।
इतिहास
माना जाता हैं कि इस मंदिर की स्थापना वही हुईं हैं जहा महाकवि तुलसीदास को पहली बार हनुमान का स्वप्न आया था। संकट मोचन मंदिर की स्थापना कवि तुलसीदास ने की थी। वे वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अवधी संस्करण रामचरितमानस के लेखक थे। परम्पराओं की माने तो कहा जाता हैं कि मंदिर में नियमित रूप से आगंतुकों पर भगवान हनुमान की विशेष कृपा होती हैं। हर मंगलवार और शनिवार, हज़ारों की तादाद में लोग भगवान हनुमान को पूजा अर्चना अर्पित करने के लिए कतार में खड़े रहते हैं।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान हनुमान मनुष्यों को शनि गृह के क्रोध से बचते हैं अथवा “जिन लोगों की कुंडलियो में शनि व मंगल गृह गलत स्थान पर स्तिथ होता हैं वे विशेष रूप से ज्योतिषीय उपचार के लिए इस मंदिर में आते हैं।“ एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान हनुमान सूर्य को फल समझ कर निगल गए थे, तत्पश्चात देवी देवताओं ने उनसे बहुत याचना कर सूर्य को बाहर निकालने का आग्रह किया। कुछ ज्योतिषो का मानना हैं कि हनुमान की पूजा करने से मंगल गृह के बुरे प्रभाव अथवा मानव पर अन्य किसी और गृह की वजह से बुरे प्रभाव को बेअसर किया जा सकता हैं।
माना जाता हैं कि कथा के समय जब श्री तुलसीदासजी को कर्ण-घंटा-स्थल पर श्री हनुमानजी के दर्शन कोढ़ी-वेश में हुआ था। तब गोस्वामीजी उनके पीछे-पीछे चलने लगे, इसी मोहल्ले से दक्षिण घोर जंगल में पहुंचकर तुलसीदास जी उनके चरणों पर गिर पड़े।
अत्यंत विनम्र प्रार्थना करने पर श्रीहनुमानजी प्रकट हो गए और बोले- ‘तुम क्या चाहते हो ?’ गोस्वामीजी ने कहा- ‘मैं श्रीराम-दर्शन चाहता हूँ’ श्री हनुमानजी ने अपना दक्षिण बाहु उठाकर कहा- ‘जाओ, चित्रकूट में प्रभु-दर्शन होगा.’ पुनः वाम बाहु को अपने ह्रदय पर रखकर बोले-‘हम दर्शन करा देंगे।
गोस्वामीजी ने कहा ‘प्रभो ! आप इसी रूप से भक्तों के लिए यहीं पर निवास करें’ श्री हनुमानजी ने ‘तथास्तु’ कहा और वे वहीँ विराजमान हो गए। यह मूर्ति गोस्वामीजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयम्भू मूर्ति है। इस मूर्ति में श्रीहनुमानजी दक्षिण भुजा से भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं वाम भुजा उनके ह्रदय पर स्थित है, जिसका दर्शन केवल पुजारीजी को सर्वांग-स्नान के अवसर पर होता है। श्री विग्रह के नेत्रों से भक्तों पर अनवरत कृपा की वर्षा-सी होती रहती है। मान्यता है कि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस का कुछ अंश
प्रत्येक चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को श्री हनुमान जयंती महोत्सव होता है,इस अवसर पर श्रीहनुमान जी के बैठक की झांकी होती है और चार दिनतक सार्वभौम रामायण-सम्मलेन-महोत्सव एवं विराट संगीत-सम्मलेन होता है।