कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का अगला कदम क्या होगा ,इसे लेकर अटकलबाजियों का बाजार गर्म है।ये गर्माहट तब तक बनी रहेगी ,जब तक कि सिंधिया खुद कुछ ऐलान नहीं कर देते ।उनके मन में क्या है,ये फ़िलहाल वे ही जानते हैं क्योंकि सियासत में सिंधिया परिवार तिलिस्मों में यकीन करता आया है ।
होली के दिन कांग्रेस का रंग फीका करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने अब दो ही विकल्प हैं,पहला ये कि वे भाजपा में शामिल न हो जाएँ और दूसरा ये कि वे अपनी खुद की नयी पार्टी का गठन करें ।मेरा निजी आकलन ये है कि सिंधिया के लिए पहला विकल्प ज्यादा आसान है बजाय दूसरे विकल्प के ।प्रदेश में सिंधिया एक लोकप्रिय नेता हैं किन्तु इतने भी नहीं कि वे अपना खुद का राजनीतिक दल बना कर उसे कांग्रेस या भाजपा के विकल्प के रूप में खड़ा कर सकें ।हालांकि सिंधिया के शुभचिंतक उन्हें दूसरे विकल्प की और ही धकेलने का प्रयास कर रहे हैं ,क्योंकि सबको आशंका है कि भाजपा में जाकर सिंधिया की धार मोथरी हो जाएगी ।
भाजपा में सिंधिया की दो बुआएँ पहले से हैं,तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद इन दोनों को भाजपा ने समय-समय पर खूब अवसर दिए हैं।बसुंधरा राजे को राजस्थान में मुख्यमंत्री बनाया तो यशोधरा राजे को मध्यप्रदेश में मंत्री पद दिया ।मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य को भी भाजपा कुछ न कुछ दे सकती है लेकिन भाजपा के पास सिंधिया को देने के लिए कोई बड़ा पद नहीं है ।उन्हें नरेंद्र सिंह तोमर,प्रह्लाद पटेल और थावर चंद गहलोत के मुकाबले ज्यादा वजन नहीं दिया जा सकता ।ये सब आरम्भ से भाजपा के साथ हैं और कभी भी पीछे नहीं धकेले जा सकते ।
भाजपा ज्योतिरादित्य सिंधिया को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह या कैलाश विजयवर्गीय का विकल्प बनाकर भी सामने नहीं ला सकती,यदि भाजपा ऐसा करेगी तो उसमें भी विरोध और बगावत की संभावनाएं बढ़ जाएंगी ,ऐसी दशा में सिंधिया की स्थिति दोयम दर्जे की ही रहने वाली है ,और सिंधिया इसी स्थिति से बचने के लिए कांग्रेस छोड़कर बाहर आये हैं ।उनके स्वर्गीय पिता भी कांग्रेस में ताउम्र रहने के बाद नंबर वन नहीं बन सके।उनसे ज्यादा सैभाग्य तो डॉ मनमोहन सिंह और पीव्ही नरसिम्हाराव का रहा ,जो एन-केन देश के प्रधानमंत्री बने ।सिंधिया की दादी सस्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया को भी भाजपा में नंबर वन की पोजीशन नहीं मिली ,यानि नंबर वन बनने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना दल ही गठित करना होगा जो उनके बूते की बात नहीं है ।
मध्यप्रदेश में नया दल बनाकर उसे कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बना पाने की कोई परिस्थिति फिलहाल नहीं है। यहां दोनों राष्ट्रीय दलों में अभी भी एक से बढ़कर एक छत्रप मौजूद हैं। एक समय भाजपा से बगावत करने वाली सुश्री उमा भारती भी अपना दल बनाकर कामयाब नहीं हो पायीं और अंतत:भाजपा में वापस लौटना पड़ा ।ज्योतिरादतित्य सिंधिया के लिए भी ये रास्ता खुला है ।नया दल बनाने के लिए अपार धन और विशाल ह्रदय की जरूरत होती है लेकिन सिंधिया के पास ये दोनों चीजें सीमित मात्रा में हैं वे स्वभावत:कृपण हैं इसलिए नया दल बनाना और चलाना उनके बूते की बात नहीं है ,फिर मध्यप्रदेश की स्थितियां भी दक्षिण के राज्यों जैसी नहीं हैं कि वे ममता बनर्जी या अन्य किसी दूसरे नेता जैसा कमाल कर सकें ।
राजयसभा चुनाव तक मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार वेंटीलेटर पर रहने वाली है।
सदन में यदि विश्वास परीक्षण की नौबत आती है तो उसे बचाना असम्भव होगा ऐसे में भाजपा और कांग्रेस ही नहीं सिंधिया को भी झक मारकर शांत बैठना पडेगा ।राजयसभा चुनाव के लिए मतदान होने के बाद ही राज्य की राजनीति और सरकार का भविष्य तय किया जाएगा ।कांग्रेस के जिन विधायकों के इस्तीफे लेकर भाजपा नेता विधानसभा अध्यक्ष के पास पहुंचे हैं उन्हें भी तभी स्वीकार किया जाएगा जब कि इस्तीफा देने वाले विधायक सदेह अध्यक्ष जी के सामने उपस्थित हों ,ये राज्य सभा के लिए मतदान के समय ही मुमकिन होगा ।
राज्य सभा चुनाव के लिए कांग्रेस और भाजपा किसे अपना प्रत्याशी बनाती है और किसे नहीं ये तय नहीं है ,लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह दोनों इस सदन में जाने के लिए लालायित हैं चूंकि सिंधिया कांग्रेस से बाहर आ चुके हैं इसलिए दिग्विजय का रास्ता साफ़ हो गया है लेकिन सिंधिया के लिए अभी भी असमंजस बना हुआ है ।दोनों दलों में विधायकों की निष्ठा को लेकर संशय है ,शायद इसीलिए दोनों दल अपने विधायकों को भेड़-बकरियों की रेवड़ की तरह यहां,वहां लिए फिर रहे हैं इन सबको आजादी राज्य सभा चुनाव के लिए मतदान के समय ही मिलेगी ।इस चुनाव के बाद ही ये भी तय होगा की सिंधिया भाजपा में शामिल होते हैं या फिर अपना कोई दल बनाते हैं। कांग्रेस में वापसी के लिए सिंधिया अभी शायद ही सोचें क्योंकि वहां से तो वे अपमानित होकर बाहर निकले ही हैं ।
@ राकेश अचल
सिंधिया का अगला कदम ************************