मध्यप्रदेश के संवैधानिक और राजनीतिक हालात पर मुख्यमंत्री कमलनाथ का विश्लेषण
खबर नेशन / मध्यप्रदेश में गहराए राजनैतिक और संवैधानिक संकट किसी से छुपे हुए नहीं हैं ? कांग्रेस सरकार अब गई तब गई के हालात बने हुए हैं । मुख्यमंत्री कमलनाथ चौतरफा घिरे हुए हैं और इन हालातों से जूझ रहे हैं । ऐसे में कमलनाथ की बॉडी लैंग्वेज कहीं से भी शिकन भरी नहीं दिखाई दे रही है । धड़ाधड़ प्रशासनिक तबादले , राजनैतिक नियुक्तियां और संवैधानिक दांव-पेंच कमलनाथ दिखाएं जा रहे हैं ।
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राजनैतिक लाभ की स्थिति में होने के बावजूद कमलनाथ के काम करने की हालिया शैली को बेशर्मी से भरा हुआ बता रहे हैं । न्यायपालिका में मामला होने के बावजूद कमलनाथ चेहरे पर शांति और काम करने में आक्रामकता की झलक दिखला रहे हैं । इसे क्या कहें क्या यह कमलनाथ का साहस है या बेशर्मी ? मगर जो भी है है काबिले तारीफ ।
साहस - अस्पताल में मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर वेंटीलेटर के सहारे लेटे मरीज को बचाने डॉक्टर सारे हथकंडे अपनाता है । कई बार डॉक्टर अमानवीयता की हदें भी पार करता हुआ नजर आता है । लेकिन मरीज की जान बचाना उसका कर्त्तव्य होता है । ठीक ऐसे ही युद्ध के मैदान में हारता हुआ युद्ध जीतने योद्धा तमाम सारे हथकंडे अपनाता है । विश्व के सबसे बड़े धर्मयुद्ध में गीता का ज्ञान देने वाले भगवान कृष्ण भी एक झूठ के सहारे युद्ध जीत पाए थे । अब ऐसे में कमलनाथ इन हालातों में जूझते हुए मुस्करा रहे हैं तो इसे साहस ही माना जाना चाहिए ।
बेशर्मी - जो संवैधानिक और राजनीतिक हालात मध्यप्रदेश में बने हुए हैं उन हालातों में जिस तरह के निर्णय लिए जा रहे हैं । उन्हें नैतिक तो कभी नहीं माना जा सकता है । भले ही सरकार अल्पमत में दिखाई दे रही है लेकिन संवैधानिक तौर पर सरकार अभी अल्पमत में नहीं आई है । हां इसे राजनैतिक बेशर्मी जरुर माना जा सकता है । एक बात और युद्ध में जिस तरह के तरीके आजमाए जाएं दूसरे योद्धा का भी युद्ध उसी तरीके से लड़ना चाहिए ।
मैंने अपने नजरिए से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ की कार्यशैली का विश्लेषण कर दिया है । साथ ही मैं इस बात का भी दावा कर रहा हूं कि मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार को अब सिर्फ एक चमत्कार ही बचा सकता है जिसकी संभावना बमुश्किल एक प्रतिशत है । लेकिन अपनी सरकार को बचाने जिस राजनीतिक कौशल का परिचय उन्होंने दिया है वह काबिले तारीफ है । इसी के साथ ही मैं यह भी पूर्ण विश्वास से कह सकता हूं कि कमलनाथ को मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने के लिए बहुत ही कम वक्त मिला । अगर पूरे पांच साल मिलते तो मध्यप्रदेश की एक अलग ही तस्वीर नज़र आती । हालांकि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के कई निर्णय भारी अलोकप्रिय और अलोकतांत्रिक रहे ।