बिजापूर में महामारी और औरंगजेब-के सी शर्मा*


मध्यकाल में कई बार महामारी फैली थी। जिसका जिक्र इतिहास के स्त्रोतों से मिलता है। ऐसा ही एक वाकीआ है, बिजापुरी में फैली हुई महामारी का। 
औरंगजेब कि बिजापूर के खिलाफ आखरी जंग के बाद 1000 हिजरी (सन 1688) में मुहर्रम के आखरी दिनों में प्लेग कि बिमारी फैली थी। इस बिमारी कि वजह से कई अहम शख्सीयतों की भी मौत हुई।  जिसमें बहोत से मुगल उमरा का भी शुमार था। कई लोग अंधे, बहरे और गुंगे होकर इस महामारी में बच गए थे। 
खुद आलमगीर औरंगजेब कि बेगम जो औरंगाबादी महल के नाम से जानी जाती थी, प्लेग कि बिमारी के वजह से मर गयी। बिजापूर में नौबाग के बेगम रोजे में इन्हे दफनाया गया है। 
फाजील खाँ, मोहम्मद राज पसर, राजा जसवंत सिंग जैसे बडे लोगों कि भी इसी वजह से मौत हुई थी। यह महामारी इतनी खतरनाक थी की, ख्वॉस खां कि बीवी का जनाजा ले जाते वक्त 16 आदमी रास्ते में ही मर गए थे। 
मरनेवालों की तादाद इतनी थी की, लाशों को दफनाकर लोग बेजार हो गए थे। सिर्फ एक दिन में 777 लोगों की मौत हो गयी थी। बिजापूर के कई मकान खाली हो गए थे। डर के मारे लोग शहर से भाग गए। हालत यह थी कि रात को सोए हुए घर के सारे लोग जागते नहीं थे। 
सुबह को दरवाजा खोलनेवाला कोई नहीं रहता था। जो लोग बिमार पडे थे इनकी देखभाल के लिए भी कोई बचा नहीं था। जे. डी. बी. ग्रिबल बिजापूर में ब्रिटिशकाल में कलेक्टर थे, उनके मुताबिक उस समय 1 लाख से ज्यादा लोगों कि मौत इस बिमारी से हुई थी। इसी वजह से बिजापूर कि जनसंख्या काफी घट गई।