चित्तौड़ का गौरवशाली इतिहास तीन जौहर का साक्षी रहा है। इनमें हजारों वीरांगनाओं ने अपनी आन-बान की रक्षा के लिए धधकती ज्वाला में कूदकर प्राणों की आहुतियां दी थी।
मुगलों व आक्रांताओं के आक्रमण के समय ये तीनों जौहर हुए हैं।
तीन जौहर स्थलों में से दो के बारे में लोग लगभग अनजान हैं।
प्रथम साका सन 1303 में अलाउदीन खिलजी के चित्तोड़ विजय पर रानी पद्मावती के साथ 1600 रानियों ने जौहर किया था !
द्वितीय साका 1534_35 के बीच हुवा
जब गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने एक विशाल सेना के साथ चित्तौड़ पर हमला किया।
राजमाता रानी कर्णावती दुर्ग की सैकड़ों वीरांगनाओं 13000 ने जौहर का अनुष्ठान कर अपने प्राणों की आहुति दी थी।
इसी प्रकार तीसरा साका अकबर के शासनकाल में चित्तौड़ पर जोरदार आक्रमण किया। यह साका जयमल और फत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है। इसमें फत्ता सिसोदिया की पत्नी फूलकँवर के नेतृत्व में 700 रानियों ने जौहर किया था !
आज चित्तोड़ के इसी गौरवशाली इतिहास की याद में जौहर मेला आयोजित किया जाता है।
पर इस बार कोरोना की वजह से स्थगित किया गया है।
आप सभी से अनुरोध है कि आप लोग आज के दिन इसी गौरवशाली इतिहास के लिए घर पे ही दीपक जलाकर सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करे ।