दमन का औजार नहीं होती महामारी  **राकेश अचल **

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देश में कोरोना महामारी से निबटने के लिए 'लाकडाउन 'चल रहा है लेकिन इसका आशय  ये कतई नहीं हो सकता कि  महामारी की आड़ में सरकारें प्रेस की आजादी को सीमित करने के लिए क़ानून का दुरुपयोग करें ।कोरोना से लड़ने में लगी सरकारों को इस मामले में सावधानी बरतना चाहिए अन्यथा संघर्ष की दिशा भ्रमित हो सकती है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ' दी वायर' के सम्पादक सिद्दार्थ वरदराजन के खिलाफ दर्ज की गयी एक प्राथमिकी इसका ताजा उदाहरण है ।
सिद्दार्थ वरदराजन एक वरिष्ठ पत्रकार हैं और उनकी पत्रकारिता संदेहों से परे रही है इसीलिए वे अक्सर सरकारों की आँखों की किरकिरी रहे हैं, उत्तर प्रदेश  सरकार को उनके खिलाफ कार्रवाई का बहाना अब मिला जब उन्होंने द वायर में तबलीगी जमात से जुड़े एक लेख में कहा ' कि भारतीय धर्म उपासक एहतियात बरतने के मामले में पीछे रहते हैं।'वरदराजन ने  इसी के साथ यह भी रहस्योद्घाटन कि कैसे देशभर में कोरोना के माहौल के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार की 18 मार्च एक धार्मिक मेला कराने की योजना थी। इसी लेख के बाद अयोध्या और फैजाबाद में 1 अप्रैल को दो एफआईआर दर्ज हुई थीं।
योगी आदित्यनाथ सरकार की इस कार्रवाई का देशभर के 3500 से ज्यादा बुद्धिजीवियों ने विरोध किया है। इनमें कानूनविद, शिक्षाविद, अभिनेता, कलाकार और लेखक शामिल हैं। इन्होंने कहा है कि यह प्रेस की आजादी पर सीधा हमला है।
इस कार्रवाई के विरोध में जारी बयान पर दस्तखत करने वालों ने कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार को सिद्धार्थ वरदराजन और द वायर के खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस लेनी चाहिए। इस बयान में केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों से अनुरोध किया गया है कि प्रेस की आजादी को कुचलने के लिए किसी महामारी की आड़ न लें। किसी तरह की पॉलिटिकल इमरजेंसी थोंपने के लिए मेडिकल इमरजेंसी का बहाना न बनाया जाए।
उत्तरप्रदेश की उत्तरदायी सरकार के खिलाफ मुंह खोलने वालों को हालांकि आगे टुकड़ा-टुकड़ा गैंग कहा जाएगा इसलिए आपको बता दूँ कि इस विरोध में सुप्रीम कोर्ट के जज रहे जस्टिस मदन बी लोकुर, मद्रास हाईकोर्ट के जज रहे जस्टिस के चंद्रू और पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज जस्टिस अंजना प्रकाश शामिल हैं। दो पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल रामदास और एडमिरल विष्णु भागवत ने भी इस पत्र पर दस्तखत किए हैं। पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा, पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन और सुजाता सिंह व पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एमएस गिल ने भी वरदराजन पर हुई कार्रवाई पर विरोध जताया है। बयान पर दस्तखत करने वालों में लेखक विक्रम सेठ, नयनतारा सहगल, अरुंधति रॉय, अनिता देसाई, के। सच्चिदानंदन और किरण देसाई शामिल हैं। अमोल पालेकर, नसीरुद्दीन शाह, नंदिता दास, फरहान अख्तर और मल्लिका साराभाई जैसे कलाकारों ने भी वरदराजन पर हुई कार्रवाई का विरोध किया है।
प्रेस के खिलाफ कार्रवाई में केवल उत्तर प्रदेश सरकार ही नहीं महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार भी पीछे नहीं ही।बांद्रा में रेलवे स्टेशन के बाहर भीड़ जमा होने के मामले में भी एक स्थानीय समाचार चैनल के पत्रकार राहुल कुलकर्णी को तो पुलिस ने गिरफ्तार ही कर लिया ,राहुल पर उत्तर परदेश की ओर ट्रेन चलने की झूठी खबर प्रसारित करने का आरोप है। उक्त चैनल के संपादक राजीव खांडेकर ने अपने चैनल के पत्रकार की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए इसे बदले की कार्रवाई करार दिया है ।
'लाकडाउन-2  के बाद से ऐसी और भी कार्रवाइयां होने का अंदेशा बना हुआ है,इसकी वजह ये ही कि सरकार अपनी तैयारियों में कमी की वजह से होने वाली अराजकता को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है ।इस मामले में केंद्र और राज्य की सरकारें बराबर की  जिम्मेदार हैं और खासकर वे राज्य सरकारें जो पहले से एक रंग विशेष की सरकारें हैं ।
 ' लाकडाउन के कारण देश में मीडिया यानि अखबारों और समाचार चैनलों की दशा पहले से खराब है। इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर छटनी की जा रही है ,वेतन  में कटौती की जा रही है। सरकार की आँख की किरकिरी बने   प्रमुख पत्रकार पहले  ही चैनलों से निकाले जा चुके हैं ऐसे में मीडिया के खिलाफ निराधार कार्रवाइयां स्थिति को और खतरनाक बना सकती हैं ।किसी भी देश की बीमार प्रेस उस देश के लोकतंत्र को बचाने की अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं कर सकती ।प्रेस की आजादी केवल भगवा रंग की सरकार की आँखों में नहीं खटकती बल्कि हर रंग की सरकार को बुरी लगती है ।अतीत इसका गवाह है ।इसीलिए आपको भी इस तरह की कार्रवाइयों के खिलाफ अपनी आवाज मुखर करना चाहिए ,आप प्रेस की आजादी के विरोधी भी हों तो भी आपको विचार करना होगा कि एक जमूरे की तरह काम करने वाला मीडिया आपका हितैषी होगा या की एक स्वतंत्र मीडिया ?।आपको ये तथ्य भी ध्यान में रखना होगा की देश का आधे से अधिक मीडिया तो पहले से ही गोदी मीडिया बन चुका है ।
@ राकेश अचल