एक के बाद एक बांध टूटना क्या महज, संयोग, या सुनियोजित षड्यंत्र ?


*कम्पनी के "सी ई ओ" और जिम्मेदार प्रवंधन पर क्यो नही दर्ज होता गैर इरादतन हत्या का अभियोग?*


*पढ़े,के सी शर्मा की एक विशेष रिपोर्ट*


*सिंगरौली।म  म प्र के सिंगरौली जिले मे जितने भी ऊर्जा संयंत्र हैं जैसे एन.टी.पी.सी.,हिंडाल्को महान, रिलायंस पावर सासन,एस्सार पावर,जे पी पावर निगरी, हो या और भी कयी कंपनियां अभी ऊर्जा संयत्र स्थापित कर रही हैं, लेकिन एक एक कर प्रत्येक कंपनियों के बांध टूटना कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता ?


क्या कहीं न कहीं इसमें कंपनियां अपने फायदे के लिए ए सब करवा तो नही रही हैं? अगर ऐसा न होता तो कंपनियों को पहले पता होने पर इसका प्रबंध क्यों नहीं करती ? 
लगता है  कंपनियां अपने फायदे को देखते हुए अपना थोड़ा नुकसान प्रशासन और मीडिया को दिखाकर अपने को बचाना चाहती हैं ।


 कंपनियों के फायदे व नुकसान का आंकलन कुछ इस प्रकार से 
करती हैं कंपनियां, अगर राख बांध भर जाने के बाद दूसरा बांध बनाती हैं तो उन्हें जमीन चाहिए उसके साथ साथ लोगों को विस्थापन करना पड़ेगा और फिर उस बांध बनाने में समय के साथ साथ काफी पैसा भी खर्च करना पड़ेगा ,एक राख बांध के बनाने में लागत करीब दस से वीस करोड़ रूपये खर्च करना पड़ता है और लोगों को जमीन के बदले नौकरी और मुवावजा देना पडता है।
कहते है कि अगर पुराने बांध को तोड़ दिया जाय तो बहुत कम पैसा खर्च करना पड़ेगा , कोई भी शासकीय क्षति होती है तो उसका मुवावजा 
और क्षतिपूर्ति कुल लागत *पचास लाख* से भी कम रूपये मे पूरा हो जाता है समय की भी बचत ,लागत भी कम ,और किसी को विस्थापित करने की जद्दोजहद से छुटकारा तो कंपनियां नये बांध बनाने की तरफ क्यों ध्यान देंगी।


 इसी लिए अब सवाल उठता है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज सासन पावर को जब छः महीने पहले से पता है कि बाध में रिसाव है और कुछ महीने पहले परियोजना के विस्थापितों द्वारा चलाये गए आंदोलन के दौरान अन्य मांगों के साथ वाध के टूटने की आशंका जाहिर किया गया था। फिर भी बांध का मरम्मत न कराना क्या कंपनी के ऊपर सवाल खड़ा  नहीं होता ?


अगर हां तो क्यों कंपनी पहले से सतर्क नहीं हुई?
  आखिर क्या कारण रहा कि सबकुछ जानते हुए भी परियोजना प्रवंधन द्वारा अनजान बनने की कोशिश की जरही है?
 जबकि सासन पावर के विस्थापित और वहां के रहवासियों द्वारा अनेकों बार रिलायंस प्रबंधन के साथ साथ जिला प्रशासन को भी अवगत कराया गया था लेकिन कंपनी प्रबंधन हमेशा यही कहता रहा कि हमारा बांध सही बना हुआ है कभी नहीं टूट सकता जो भी खबर चल रही है या मिल रही है वो सरासर गलत है अफवाह है।


फिर यह सवाल उठता है कि क्या अभी तक सासन अल्ट्रा पावर प्रोजेक्ट सिंगरौली के सीईओ और अन्य प्रबंधकों को ग़ैर इरादतन हत्या के प्रयास( धारा-304 IPC) के तहत कई जिंदगियाँ तबाह करने के लिए उनके खिलाफ अभियोग पंजीकृत हुवा? उन्हें हिरासत में लिया गया? तो उत्तर मिलेगा नही।


सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता एवं पर्यावरणविद अश्वनी कुमार दुबे
एवं "उदवासित किसान मजदूर परिषद" के राष्ट्रीय अध्यक्ष के सी शर्मा का कहना है कि सासन पॉवर प्लांट ऐश डाइक का टूटना, 7 लोगों की मौत, कई किमी तक ज़हरीले राख का बहना और रिहन्द जलाशय में जाना, सामान्य घटना नहीं
 है। इसके पहले एस्सार पावर, एनटीपीसी विन्ध्यनगर का ऐश डैम टूट चुका है।लाखो टन जहरीली राख रिहन्द जलाशय में जाचुकि है।फिर लाखो टन चली गयी।जबकि इस जलाशय से 10 लाख से अधिक लोगो को प्रति दिन जलापूर्ति भी इसी जलाशय से उर्जान्चल वासियों को की जाती है।तो क्या जलाशय को प्रदूषित कर लाखो लोगो के जीवन से खिलवाड़ करने का यह अपराध नही है?
आदि अनेकों सवाल आज कम्पनी प्रवंधन,जिला प्रशासन,एन जी टी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड,इलाके के जनप्रतिनिधियों,राजनैतिक दलों,सामाजिक संगठनों,व क्षेत्र के आम जनमानस के समक्ष विचारणीय खड़ा है?
अभी कुछ दिन पहले रिलायंस के कन्वेयर बेल्ट से भी मौत हुई और पहले भी होती रही,क्या आपने सुना की रिलायंस के सीईओ के उपर एफआईआर हुई, उसे गिरफ़्तार किया गया,नही। 


सिंगरौली में अगली घटना फिर होगी और फिर इसी तरह से अगली घटना का इंतज़ार होगा।


सिंगरौली में कंपनियां किसी भी नियम का पालन नहीं कर रही हैं, जबकि सिंगरौली दुनिया के क़्रिटिकली प्रदूषित क्षेत्रों में से एक है। 


उक्त दोनो समाजसेवियों ने केंद्र व प्रदेश सरकार का इस ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए मांग किया है कि कम्पनी के "सी ई ओ" सहित जिम्मेदार "प्रवंधन" पर अभियोग पंजीकृत करा शीघ्र इनकी गिरफ्तरी की जाए और जब तक स्थायी मानक के अनरूप डैम का निर्माण न हो जाये प्लांट को बन्द किया जाए।