हम योद्धा हैं लड़ेंगे, जीतेंगे या शहीद हो जाएंगे


* ओपी गौर *सवा सौ करोड़ आबादी के देश में अधिकांश लोग कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध में लड़ रहे सैनिक हैं। बचे हुए लोगों में कुछ कायर हैं तो कुछ दुश्मन से मिले हुए छिपे हुए देशद्रोही। हमारा पहला लक्ष्य लड़ना, जीतना या शहीद हो जाना है। दूसरा पर साथ साथ चल रहा लक्ष्य इन कायरों और देशद्रोहियों से भी निपटना है। कायर और देशद्रोहियों को सफल नहीं होने देंगे वहीं हम अपने संकल्प की दम पर हम कामयाब होंगे।
जब सैनिकों को युद्ध के लिये कूच का आदेश मिलता है तो वह युद्ध करता है। वह न दुश्मन की ताकत से डरता है न अपने हथियारों और दूसरी कमजोरियों की आड़ में लड़ने से इंकार करता है। लेकिन पूरा देश दुश्मन से सीधे दो दो हाथ करने वाला सैनिक नहीं होता है। दुश्मन से सीधे टकराने वालों के अलावा बाकी ऐसे योद्धा देशवासी होते हैं सपोर्ट सिस्टम का हिस्सा बन जाते हैं। वे भी अपने सिस्टम को नहीं गरियाते बल्कि, जो और जैसा भी सिस्टम होता है उसी की दम पर सैनिकों की मदद करते हैं और उनका हौसला बनाये रखने प्राणपण से जुटे रहते हैं। साथ ही सिस्टम को मजबूत करते और संसाधन भी जुटाते चलते हैं। 
कमजोरियों केे बीच युद्ध और शहादत की ढ़ेरों यशोगाथाएं 1962 के भारत-चीन युद्ध के हमने सुनी हैं। संसाधनों की कमी को पूरी करने के लिये 1965 के भारत-पाक युद्ध के लालबहादुर शास्त्री जी के जय जवान जय किसान के नारे से जुड़े प्रेरक प्रसंग भी हमने देखे सुने हैं। 
अब 2020 है और हम कोरोना वायरस के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हाथ में तिरंगा ध्वज लेकर युद्ध में उतरे हैं। जीत हमारा संकल्प है यही हमारा लक्ष्य है। करो या मरो ही हमारा जय घोष। हम जानते हैं कि जरूरत के अनुपात में हम धन बल में कमजोर हैं और संसाधनों में भी। हमारे पास जस्रत से कहीं कम डाक्टर और पेरा मेडिकल स्टाफ हैं। जरूरत से कहीं कम दवाएं और उपकरण हैं। कोरोना वायरस से पीड़ितों ठीक करने के लिये हमारे पास दवा नहीं है। क्योंकि उसे खोजा ही नहीं जा सका है। लेकिन दुश्मन कोरोना वायरस के खिलाफ एक उपाय है कि उसे हम जिंदा रहने का वातावरण नहीं मिलने दें तो वह खुद ही अपनी मौत मर जाता है। इसके लिये सावधानी और सतर्कता में ही विजय मंत्र छिपा है।
इस युद्ध को जीतने के लिये सबसे पहले हमें जो पीड़ित हैं या संदिग्ध हैं, उनकी जल्दी से जल्दी पहचान कर उन्हें अस्पतालों में पहुंचाना है। वहां असली योद्धा डाॅक्टर और पेरा मेडिकल स्टाफ न्यूनतम साधनों ओर खुद की सुरक्षा के लिये उपलब्ध कम साधनों में भी जान हथेली पर रखकर पीड़ितों को बचाने में लगा है। तरीका एक ही है कि इन संदिग्धों को क्वारेंटाइन में रखा जाए और जो पीड़ित हैं उन्हें क्वारेंटाइन के साथ प्रयोगात्मक तौर पर प्रचलित चंद दवाएं दी जाएं। वह सब किया जा रहा है। 
बचाव के लिये साफ सफाई एक अनिवार्यता हैं। इसके बगैर जीतने की कल्पना भी नहीं हो सकती। इसके लिये सफाईकर्मी एक सैनिक की भांति कम सुरक्षा के संसाधनों में भी दिन रात जुटे हैं। 
युद्ध में हमलों में जनता हो भी तो बचाना होता है। कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध में बचाव के लिये लाॅकडाउन एक तरह से बम्हास्त्र है। इसके लिये जनजागरण जरूरी है। वह करीब करीब पूरा है। 21 दिन का देशव्यापी लाॅकडाउन चल रहा है जो बढ़ भी सकता है जिसके लिये सब तैयार हैं। साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग है ताकि वायरस हो भी तो वह एक व्यक्ति से दूसरे में नहीं जा पाए। 
सारी लड़ाई में कमजोरी ज्यादा कहां है? एक तो है मीडिया का एक बडा तबका जो जनता को जगाने और सावधान करने के नाम पर संसाधनों - धन, उपकरण, मानव संसाधनों की कमी पर इस तरह से प्रकाश डाल रहा है कि जिससे जो लड़ रहे हें उनका मनोबल ही टूट जाए। वास्तव में मीडिया का दोधारी तलवार की तरह इस्तेमाल हो रहा है। मीडिया का छोटा पर प्रभावी हिस्सा जहां मनोबल बनाए रखने में जुटा है वहीं बड़ा और प्रभावशाली तबका शांतिकाल में अपनाए जाने वाली की भूमिका को इस विषम परिस्थिति में भी सही बताकर पूरी ताकत से मनोबल तोड़ने और देश की छवि खराब करने में लगा है। मोटे तौर पर इसका कोई समाधान भी नजर नहीं आता है। क्योंकि कानूनी और संवैधानिक प्रक्रियाएं भी उनके पक्ष में खड़ी नजर आती हैं।
एक अन्य बड़ी कमजोरी सोशल डिस्टेंसिंग जिसे अंतिम व प्रभावी तरीका बताया जा रहा है उसके खिलाफ कहीं धार्मिक तो कहीं सांस्कृतिक कारणों से आबादी और कथित बुद्धिजीवियों का तबका जुटा है। इस कारण से सभी देेशवासियों को उसे पूरी तरह से सोशल उिस्टेंसिंग केे लिये राजी करने में सफलता नहीं मिल पाई है। लोकतंत्र की परंपराओं का दुरुपयोग इसमें सहायक बना हुआ है। देश का वर्तमान नेतृत्व धैर्य का परिचय देते हुए समझाने में लगा है। 
तीसरी कमजोरी हमारी विशाल जन संख्या है जिसे जिंदा रहने तक के लिये सपोर्ट की जरूरत है। भोजन, पानी, आवास उनकी तात्कालिक जरूरत है। इसे हम उनके लिये जुटा भी लें तो उन तक इसे तत्काल पहुंचाना आसान नहीं है। इस काम में जो समय लग रहा है तब तक उनका धैर्य बना रहे यह भी एक और समस्या है। ऐसा घीरज कम है इसका प्रमाण सड़कों पर अपने गांव के लिये निकल चुका तबका है। उसके पास न धन है न भोजन पानी। फिर भी धैर्य टूटने से निकल पड़ा है। सड़कों पर पलायन के दृश्य नजर आ रहे हैं। ये उसी का संकेत हैं। नेतृत्व उसके समाधान में जुटा है। हम इसमें भी उसी प्रकार कामयाब होंगे जिस प्रकार से हमने भारत माता के पुत्र पु़ित्रयों को दुनिया के कौने-कौने से स्वदेश लाने में सफलता पाई है।  
हम आश्वस्त हैं कि लोकतांत्रिक और संवैधानिक ढ़ांचे के बीच ही हम कोरोपा वायरस के खिलाफ लड़े जा रहे इस युद्ध में विजयी होगें। जयहिंद, वंदेमातरम .....
ओमप्रकाश गौड़
अपडेट: 28ः03ः2020  समय: 08ः22