*काट डालो शास्त्रों में वे सारे वचन जो स्त्रियों के खिलाफ लिखे हैं!* - *ओशो*


कौन हैं ये शास्त्रविद? पुरुष ही लिखते हैं, पुरुष ही व्याख्याएं करते हैं। और स्त्रियां भी खूब हैं! पुरुषों के लिखे शास्त्र, पुरुषों के द्वारा की गई व्याख्याएं और इन्हीं को अंगीकार कर लेती हैं। थोड़ा जागो अब!



      इसलिए मैं उन स्त्रियों पर भी बोला हूं जिन पर कोई कभी नहीं बोला—सहजो पर, दया पर, मीरा पर। इनके भजन तो गाए जाते रहे, कम से कम मीरा के भजन तो गाए जाते रहे; लेकिन कोई कभी बोला नहीं, किसी ने कभी व्याख्या नहीं की। मैं जान कर बोला हूं। इसीलिए जान कर बोला हूं ताकि इनको समान प्रतिष्ठा मिले। कबीर, नानक और दादू के साथ मीरा, सहजो और दया को भी प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए। महावीर, बुद्ध के साथ—साथ कश्मीर में हुई लल्लेश्वरी, राबिया, थेरेसा, इनको भी वही जगह मिलनी चाहिए।* स्त्रियों को थोड़ा आगे आना होगा, थोड़ी घोषणा करनी पड़ेगी। आधी संख्या है स्त्रियों की पृथ्वी पर। काट डालो शास्त्रों में वे सारे वचन जो स्त्रियों के खिलाफ लिखे हैं!अगर तुम्हारे घर में रामायण हो, काट डालो वे सारे वचन जो स्त्रियों के खिलाफ लिखे हैं। डरना मत बाबा तुलसीदास से, मैं जिम्मेवार हूं! काट डालो उन—उन बातों को जो स्त्रियों के विरोध में सदियों में कही गई हैं। फाड़ दो वे पन्ने, आग लगा दो उन शास्त्रों में, क्योंकि वे झूठे हैं, बुनियादी झूठ पर खड़े हैं, वे पुरुष के अहंकार से निर्मित हुए हैं। यह क्या पागलपन की बात है कि शास्त्रविदो का कहना है कि स्त्री—जाति के लिए वेदपाठ, गायत्री मंत्र श्रवण एवं ओम का उच्चारण वर्जित है!


ओम पर किसी का ठेका है? ओम किसी की बपौती है? और जब भीतर शांति गहन होगी तो ओंकार का नाद अपने आप होता है, कोई करता थोड़े ही है। फिर क्या करोगे? फिर क्या जबरदस्ती उसका गला घोंट कर रोक दोगे? ओंकार तो इस जगत की अंतर— ध्वनि है! इस जगत के प्राण का स्वर है! इस जगत के भीतर समाया हुआ संगीत है, अनाहत नाद है! वह तो पुरुष शांत हो तो सुनाई पड़ेगा, स्त्री शांत हो तो सुनाई पड़ेगा।


ओशो