विश्वव्यापी विषाणु कोरोना से जंग लड़ने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन के दूसरे चरण में दसवें दिन बाजार को आंशिक रूप से खोलने का देश में स्वागत भी हुआ है और विरोध भी ।विरोध वे लोग कर रहे हैं जिनके मन में संकीर्णता है और समर्थन वे लोग कर रहे हैं जो जिंदगी की हकीकत से वाकिफ हैं ।केन्द्र सरकार ने बाजार खोलने के लिए अलग-अलग मापदंड बनाये हैं इनसे जिंदगी आसान होगी और जंग को भी जारी रखा जा सकेगा ।
कलियुग के इस महाभारत में इसी देश ने चार दिन का लकडाउन किया तो किसी ने 57 दिन का ।भारत ने 42 दिन का लॉकडाउन किया है और कहते हैं कि अपेक्षित परिणाम ही हासिल किये हैं ।मैने आरम्भ से ही ये लड़ाई मैदान में लड़े जाने का समर्थन किया है हालांकि वैज्ञानिक सोच इसके विपरीत है ।खुशी इस बात की है कि हमारे यहां वैज्ञानिक पक्ष का साथ दिया गया और आज भी हम विज्ञान के साथ ही खड़े हैं ।लेकिन दुर्भाग्य ये है कि हमारे यहां हर निर्णय राजनीति से प्रेरित माना जाता है ।
बाजार खोलने के फैसले से वे ही लोग नाखुश हैं जो प्रधानमंत्री जी के कहने पर ताली-थाली बजाने में सबसे आगे थे अब उन्हें ही शिकायत है कि साकार ने नवदुर्गा रामनवमी और हनुमान जयंती पर तो बाजार नहीं खोले लेकिन रमजान पर खोल दिए ।भक्तों को विज्ञान समझाना कठिन काम है वे अनुमान जल्द समझ लेते हैं ।भक्तों को लगता है कि सरकार 'तुष्टीकरण कर रही है ।हो सकता है कि ये सच भी हो लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता ।
देखिये बाजार आज नहीं तो कल खोलने ही पड़ेंगे ।एक जंग लड़ने के लिए ताउम्र तो कोई हर में छिपकर नहीं बैठ सकता !सर्वाधिक जनहानि उठाने वाला अमेरिका भी भारत की तरह लॉकडाउन करने का साहस नहीं जुटा सका । ऐसा होता है आगे भी होगा ।कोरोना का जनक चीन भी भारत की तरह बंद नहीं हुआ वहां भी जंग जारी है मैंने पहले ही कहा था कि जंग आखिर में इंसान ही जीतेगा विषाणु नहीं और आज हो ही ही यही रहा है ।
कोरोना रोता हुआ अपने घर वापस जाये सके लिए जरूरी है कि बाजार खोलने के लिए दी गयी छूट का ईमानदारी से पालन किया जाए सरकार को हालात की समीक्षा के साथ ही अन्य सामाजिक गतिविधियों को भी अनुमति देना होगी ।अभी इस बावत कियेगये प्रावधान व्यावहारिक नहीं हैं ।अब जब भी जिंदगी मामूल पर आएगी तब खतरे तो उठाना ही पड़ेंगे इसलिए जितनी जल्द हो आवागमन पर लगी रोक को भी शिथिल किया जाना चाहिए ।
लम्बे लॉकडाउन से देश को अकल्पनीय आर्थिक नुक्सान हुआ है इसकी भरपाई कर पाना आसान नहीं होगा। बीमार और आचार अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने में बहुत समय लगेगा ।ये समय भी संकट का ही समय होगा लेकिन हमें उम्मीद है कि हम इस मोर्चे पर भी जीतेंगे ।हम अक्षय थे अक्षय रहेंगे ।अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएं
@ राकेश अचल
खुलने दो बजार मालिक धीरे -धीरे ** राकेश अचल **