कोरोना के पीछे सिर्फ चिमगादड़ नहीं  ***राकेश अचल ***


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बीते साल दिसंबर में एक चिमगादड़ की देह से मनुष्य देह में प्रविष्ट हुए कोरोना विषाणु ने पिछले चार माह में दुनिया भार में कहर बरपा किया हुया है लेकिन इसका सबसे बड़ा खमियाजा महाबली अमेरिका को उठाना पड़ा है इससे लगता है कि कोरोना का असल निशाना अमेरिका ही था ,इस विषाणु से अमेरिका अब तक अपने 14695  नागरिकों की जान गंवा चुका है ।
चूंकि मै कोई वैज्ञानिक नहीं हूँ लेकिन अपने अनुभव से इतना दावा कर सकता हूँ कि इस महामारी के पीछे सिर्फ दैवीय प्रकोप नहीं बल्कि दुनिया के बाजारों पर कब्जा करने के लिए मची होड़ भी कहीं न कहीं है ।इस विषाणु ने चीन   को जितना नुक्सान नहीं पहुंचाया उससे कहीं ज्यादा अमेरिका और पूरे योरोप को नुक्सान पहुंचाया है। भारत पर भी इस विषाणु का आक्रमण हुआ है लेकिन भारत ने हिकमत अमली से इस आक्रमण को झेल लिए और यहां उतने शिकार कोरोना को नहीं मिले जितने की उम्मीद उसे थी ।जबकि हिमालय पार कर कोरोना को सबसे पहले भारत को ही नेस्तनाबूद करना था ।
कोरोना का मुंह सुरसा जैसा हो रहा है,दुनिया जितना इससे बचने की कोशिश कर रही है ,इसका प्रकोप उतना ही तेजी से बढ़ रहा है।ये आलेख लिखे जाने तक कोरोना दुनिया के 15 ,18783  लोगों को संक्रमित कर इनमें से 88505  लोगों की जान ले चुका है,केवल 330590  लोग ही इस विषाणु को चकमा देकर अपनी   जान बचा पाए हैं ,48079  मरीजों के बचने के आसार बहुत कम हैं ।सवाल ये है कि सुरसा को मनुष्यता की परीक्षा लेने के लिए आखिर किसने विश्व भ्रमण पर भेजा है /कौन है जो मनुष्यता को इतनी बेरहमी से मिटा देना चाहता है ।
कोरोना संक्रमित मरीजों की जांच में अमेरिका दुनिया में सबसे आगे है ।अमेरिका में अब तक 2209041  लोगों की जांच की गयी जो सर्वाधिक है । जबकि चीन ने अपने यहां के आंकड़े छिपा ही लिए ।अमेरिका के बाद जर्मनी ने सबसे ज्यादा जांच कराई ,जर्मनी में 2349  लोग ही इस विषाणु का शिकार बन पाए। इटली में सर्वाधिक 17669  लोग कोरोना का शिकार बने ।सारा कोप इटली पर ही उतार दिया इस विषाणु ने ।भारत में अभी केवल 178  लोग ही कोरोना की खुराक बने हैं जबकि हमारे यहां जांच की गति धीमी है लेकिन हमने अभूतपूर्व लाकडाउन कर दिखाया ।
कोरोना एक और जहां मनुष्यता के लिए अभिशाप बन गया है वहीं दुनिया के अनेक देश इस आपदा के चलते अपनी अनेक नाकामियों को छिपाने में भी कामयाब रहे हैं,दुर्भाग्य से ऐसे देशों की सूची में भारत का नाम भी शामिल है ।भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई शहरी इलाकों में ही लड़ी जा रही है। देहात में तो लोग भूख से लड़ रहे हैं,भूख से लड़ाई खत्म हो तो कोरोना से लड़ाई लड़ी जाये ।भूख और कोरोना से जंग में कौन,कहाँ लड़ और मर रहा है कहना कठिन है क्योंकि हमारे यहां कोरोना के साथ ही सियासत भी अपना काम पूरी मुस्तैदी से कर रही है। सियासी लाभ के लिए राजनीतिक दलों ने अपने कार्यकार्ताओं को कमर कसकर मैदान में उतारने का फैसला किया है,क्योंकि राजनीतिक दल जानते हैं कि कोरोना आज है,कल चला जाएगा लेकिन सत्ता का संघर्ष  तो सतत चलने वाला है। 
भारत में कोरोना से लड़ी जा रही जंग सराहनीय होते हुए भी उसी रंग  में रंगी जा चुकी है जिसमें कि पुलवामा को रंगा गया था ।तब्लीगी जमात की मूर्खताओं ने इस जंग को सियासत के हिसाब से ध्रुवीकरण करने का अवसर दे दिया ।कोरोना के खिलाफ जंग जातियों के खिलाफ भी लगने लगी है ।इस विषय पर ज्यादा कहना अपनी खाल खिंचवाना है इसलिए मै वापस मूल विषय पर आता हूँ और कहता हूँ कि हमें अपनी आबादी की रक्षा करने के साथ ही अपने बाजार की,अपने रूपये की ,अपने किसान की,अपने कुटीर उद्योगों की सेहत का भी ख्याल करना चाहिए अन्यथा कोरोना से जंग जब हम जीतेंगे तब हमारे सामने रीते मैदान और भाँय-भाँय करती बस्तियां होंगी ।अराजकता होगी और हमारा राष्ट्रवाद अपने आप पर आंसू बहा रहा होगा ।
@ राकेश अचल  ।