कोरोना सप्तपदी के साथ बंधा अवाम  **************


समय ऐसा है कि सरकार के किसी भी कदम के विरुद्ध कुछ कहा नहीं जा सकता,हाँ में हाँ मिलाना ही अब राष्ट्रवाद है। विश्वव्यापी कोरोना संकट से निबटने के लिए केंद्र ने आज फिर तीन सप्ताह का सकल लॉकडाउन का ऐलान किया है ,हम न इसका स्वागत करते हैं और न विरोध क्योंकि आज ही हमारी आँखों के सामने बाइस साल की एक लड़की  के दुधमुंहे बच्चे का मुरझाया चेहरा था जिसे दो दिन से खाने को कुछ नहीं मिला ।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कोरोना संकट से जूझने में अपने आपको युग-पुरुष घोषित करने का अनजाना प्रयास न भी कर रहे हों लेकिन आज स्थिति ये ही है कि कोरोना के खिलाफ उठाये गए सरकारी कदमों से यदि लोग मौत के मुंह में जाने से बचे भी हैं तो उन्हें मौत ने भूख और बेरोजगारी के रूप में अपना शिकार बना लिया है ।स्थिति भयावह है क्योंकि अब असहाय महिलायें अपने बच्चों को भूख से तड़फता न देखकर उनकी हत्या करने पर विवश हो रहीं हैं ,लेकिन लाकडाउन की मियाद बढ़ाते समय ऐसे लोगों के बारे में कोई स्पष्ट सन्देश नहीं दिया गया है ।
कोरोना संघर्ष को लेकर मैदान  में डटे सरकारी अमले की नीयत पर कोई उंगली नहीं उठा सकता,मै भी नहीं,क्योंकि वे इस आपदा के समय में जितना कुछ बेहतर कर सकते हैं कर रहे हैं लेकिन सरकार की नीतियां व्यावहारिक नहीं हैं ।हकीकत ये है कि हम अपने घरों में टीवी के सामने बैठकर अपनी पाककला का शानदार प्रदर्शन तो करने में लगे हैं लेकिन हमें जमीनी हकीकत का कोई अंदाजा नहीं है ।हम जो खबरें लिखते हैं,सोशल मीडिया पर प्रवचन देते हैं छह क्या बारह सप्ताह का लॉकडाउन झेल लेंगे लेकिन उनका क्या जिनके पास एक दिन का खाना नहीं है ?
सरकार ने लॉकडाउन लागू करते समय भी भावी व्यवस्थाओं का सही आकलन नहीं किया था जिसका खमियाजा पूरे देश के गरीब मजदूरों-किसानों ने भुगता और अब दूसरे  चरण के लॉकडाउन  के समय भी पूर्व में सामने आई व्यवस्थाओं को सुदृढ़ नहीं किया गया ।गांवों की तो छोड़िये संभाग मुख्यालयों पर जनता परेशान है। किसी के पास दवा नहीं है ,किसी के पास राशन ।सड़क पर निकले तो लॉकडाउन के उल्लंघन का आरोप और पुलिस की लाठियां जरूर हैं ।आप यकीन नहीं मानेगे लेकिन विश्वास कीजिये कि मै 22  मार्च से अपने घर के बाहर नहीं निकला लेकिन एक पत्रकार होने के नाते मेरा वाट्सअप दुर्दशा की सूचनाओं से अटा पड़ा है ।खुद मेरे पास नगदी समाप्त है,एटीएम जाने का साहस नहीं ,पता नहीं कब पुलिस कचूमर निकाल दे ।किरायेदार ने किराया नहीं दिया और सरकार ने शृद्धानिधि।खाता मुंह चिढ़ा रहा है 
            लॉकडाउन के दूसरे चरण  के दौरान कोरोना मरेगा या नहीं लेकिन अवाम को जरूर मरना पड़ेगा ।भूख से ,लाचारी से ,महामारी से ।एक शहर से दूसरे शहर की तो छोड़िये आप एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले तक नहीं  आ-जा सकते ।अपने वाहन से छोड़िये पैदल नहीं आ -जा सकते ।युद्धकाल में भी ऐसी दुरूह परिस्थितियां देश ने नहीं देखीं ।लेकिन मजबूरी का नाम कोरोना है ।
सब जानते हैं कि हम गरीब देश हैं और हमारे पास न आपदाओं से जूझने के संसाधन है और न महामारियों से निबटने के साधन ।हम चाहे जितनी सप्तपदियाँ गाँठ से बाँध लें लेकिन सामने मुंह खोले खड़ी चुनौतियों से जूझे बिना आगे नहीं बढ़ सकते। हमें इस बात की सुविधा है कि हम अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को आरोपित कर लें लेकिन हम अपनी उपलब्धियों और खामियों के बारे में कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं हैं ।
अर्थव्यवस्था की कीमत मनुष्यता बचाने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन आप ये क्यों नहीं मानते की संघर्ष और संसाधनों का काम सतत चलता है इसे रोक कर आप विजयश्री हासिल नहीं कर सकते। लोग कोरोना से बच जाएँ और भूख से मर जाएँ ये कौन सा कल्याणकारी राज्य का फार्मूला है ?जिन राज्य सरकारों ने लाकडाउन की मियाद प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय उदबोधन से पहले ही बढ़ा दी थी वे भाजपा की सरकारें नहीं थीं, उनकी मजबूरी थी और यही मजबूरी पूरे देश की मजबूरी बन गई।लोग सीने पर पत्थर रखकर भूखे  बैठे  हैं,अपने सगे-संबंधियों की अंत्येष्ठियों में शामिल नहीं हो पा रहे हैं ,ये कैसी हृदयहीनता है ।आपके अस्पताल इन दिनों कोरोना के अलावा किसी दूसरी बीमारी का इलाज करने को तैयार नहीं है। निजी क्लिनिक बंद हैं ऐसे में बच्चे और बूढ़े आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ ?उनका तो कोई मालिक ही नहीं है ।इस आपदा में जो समर्थ हैं वे ही ज़िंदा हैं बाक़ी सब अभिशप्त ,राम जी के भरोसे ।
मै फिर से प्रधान मंत्री जी के निर्णय को राष्ट्रहित  में मानते हुए उसका समर्थन करते हुए दोहराना चाहता हूँ कि सरकारें हकीकत से मुंह न मोड़ें,व्यावहारिक फैसले लें ।हमें कोरोना और भूख से एक साथ लड़ना है ।दोनों ही मोर्चे तब फतह होंगे जब हम पहले भूख का मोर्चा न हारें ।भूखे पेट जब भजन नहीं हो पाता तब कोरोना से संघर्ष  कैसे होगा, कल्पना की जा सकती है ?।नयी सप्तपदी में बंधे हम लोग एकजुट हैं ,एकजुट रहेंगे लेकिन कब तक ?जब जान और जहान दोनों होंगे तब न !
@ राकेश अचल