कोरोनाकाल में सियासी कर्मकांड *****

**राकेश अचल **
मध्य्प्रदेश सचमुच अजब-गजब है।यहां कब ,क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता ।एक महीने से बिना फ़ौज-फांटे के कोरोना से लड़ रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आज अपनी पलटन में आधा दर्जन नए सिपाहसालार भर्ती करने जा रहे हैं ।बिना फ़ौज के कोरोना के खिलाफ लड़ने वाले शिवराज को इसलिए भी कोसा जा रहा था कि वे एक महीने में भी अपनी सरकार नहीं बना पाए। शिवराज के सर पर चौथी बार ताज २३ मार्च को रखा गया था ।२० मार्च को उनकी पार्टी कांग्रेस सरकार को गिराने में सफल रही थी ।
सब कुछ ठीक रहा तो आज शाम भोपाल में शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में पूर्व में मंत्री रह चुके डॉ नरोत्तम मिश्रा ,गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह के साथ दो-तीन ऐसे लोग भी मंत्री बनाये जायेंगे जो विधानसभा के सदस्य नहीं हैं ।ये वे लोग हैं जिन्होंने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिराने के लम्बे खेल में विधानसभा से त्यागपत्र दिया था ,सियासी सौदे के मुताबिक़ इन्हें विधानसभा उपचुनाव के पहले ही छह माह के लिए मनत्री बनाया जाएगा ।
मजे की बात ये है कि कांग्रेस के दिग्गज ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए अपना राजनीतिक भविष्य दांव पर लगाने वाले 22 विधायकों में से फिलहाल केवल दो या तीन की ही लाटरी खुल रही है।सिंधिया के जिन समर्थकों को मंत्रिपद की शपथ दिलाये जाने की चर्चा है उनमने कांग्रेस की सरकार में मंत्री रहे तुलसी सिलावट,गोविंद सिंह राजपूत और बिसाहूलाल सिंह का नाम चर्चा में है ।सिंधिया के जिन समर्थकों को मंत्री बनाया जा रहा है उनके नाम खुद सिंधिया ने ही दिए हैं ,मुमकिन है कि उन्होंने मंत्री बनाये जाने के लिए कोई पैनल दिया हो और उसमें से भाजपा नेतृत्व ने अपनी सुविधा से नाम ले लिए हों ।
सियासत सौदा न होती तो शायद ये सब नहीं होता ।भाजपा को भी नैतिकता का त्याग कर सदन के बाहर के लोगों को मंत्री नहीं बनाना पड़ता लेकिन आज की सियासत में नैतिकता दोयम दर्जे की चीज हो गयी है ।मेरा मानना है कि -मंत्री बनने से मंत्री का फायदा होता है,जनता का नहीं ।मुमकिन है कि आप मुझसे इत्तफाक न रखते हों लेकिन मेरी बात से असहमत होने का आपको पूरा हक है ।अब सवाल ये ही है कि क्या नए मंत्रियों के आने के बाद प्रदेश सरकार धरातल पर रफ्तार के साथ काम करने लगेगी ?यदि हाँ तो फिर कुछ कहना ही नहीं है लेकिन यदि नतीजे सामने न आये तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा ।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को याद रखना होगा कि वे जिन सिंधिया समर्थकों को अपनी कैबिनेट में शामिल करने जा रहे हैं वे वही लोग हैं जिन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की नाक में दम कर दिया था ।इस सरकार में भी इन मंत्रियों की भूमिका बहुत कुछ बदलने वाली नहीं है ।शिवराज सिंह ने यदि सिंधिया की जरा भी उपेक्षा की तो ये मंत्री उधार का सिंदूर मांग में भरकर सुहागिन हुई सरकार को विधवा बनाने में कोई सनकोच नहीं करेंगे ।
सिंधिया समर्थकों को इस बात का अहसास है कि वे भाजपा में फिलहाल अतिथि व्याख्याता जैसी हैसियत में ही हैं। उन्हें स्थायित्व पाने के लिए अभी कयी बार अग्नि परीक्षा देना पड़ेगी ।क्योंकि मूलत:कांग्रेसी अंत:करण को सरसिज करना बहुत आसान काम नहीं है ।कांग्रेसी कमल बनने की चाह में भाजपा के दलदल में उत्तर तो गए हैं लेकिन ये कहना कठिन है कि वे यहां भीतर धंसेंगे नहीं और कमल बन कर शीघ्र ही खिल उठेंगे ।ये आशंका निर्मूल नहीं है ।इसके पीछे बाकायदा तर्क हैं जो दिए जा सकते हैं ।
बहरहाल हम नए मंत्रियों को शुभकामनाएं और बधाइयां देने में कोई कंजूसी नहीं करने वाले क्योंकि ऐसा करना फिर से सियासत हो जाएगी। हमारे लिए तो सब एक जैसे हैं ।हमारा तो यही कहना है कि अब प्रदेश में कामकाज गतिशील होना चाहिए। अब न तो पहले की तरह तबादला उद्योग चलने कि जरूरत है और न कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित करने की ।प्रदेश की जनता उम्मीद कर सकती है कि अब प्रदेश को शिवराज सिंह चौहान के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनुभवों का लाभ भी आसानी से मिल सकेगा ।जनता को इस बात से फिलहाल कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन,किस दल का है ?
विधानसभा का गणित कुछ ऐसा है कि 230 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की संख्या के लिहाज से मंत्रिमंडल में अधिकतम 15 प्रतिशत यानी 35 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। अब 34 व्यक्तियों को मंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन, सामान्यत: रणनीतिक तौर पर मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल में कुछ पद रिक्त रखते हैं। कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि केवल 9-10 मंत्रियों को ही शपथ दिलाई जा सकती है।चौहान सरकार के पास अभी काफी समय है जिसमें वे इस सुविधा का इस्तेमाल कर सकेंगे ।फिलहाल एक ही चीज अजूबी सी है कि मंत्रिमंडल में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की अनदेखी की गयी है।ये जानबूझकर किया गया है या मात्र संयोग है ,कहा नहीं जा सकता ।